Wednesday 25 January 2023

बेहूदा बयान देने वाले से भी तो किनारा करें राहुल



कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे जाने पर उनकी चौतरफा आलोचना हुई | यद्यपि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के एक और प्रभारी जयराम रमेश ने बिना देर किये उसे उनकी निजी राय बताते हुए कांग्रेस द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन करने की बात भी कही लेकिन जब ऐसा लगा कि श्री सिंह का गैर जिम्मेदाराना बयान पार्टी के साथ तक्षक नाग की  तरह लिपट गया है जिसे अलग नहीं करने पर भारत जोड़ो यात्रा का अंतिम चरण बदनामी  में बदल जायेगा तब राहुल गांधी खुद सामने आये और उन्होंने दिग्विजय के बयान को बेहूदा बताते हुए कहा कि हालांकि उन जैसे वरिष्ट नेता के बारे में ऐसा कहना उनको बुरा लग रहा है किन्तु वे उनकी निजी राय की कद्र नहीं करते | श्री गांधी ने साथ ही ये भी कहा कि सेना अपना काम बहुत अच्छे तरीके से कर रही है और उससे सबूत मांगने की जरूरत नहीं है | लेकिन जब उनसे पूछा गया कि सेना के बारे में बेहूदा बातें कहने वाले नेता के विरूद्ध पार्टी कार्रवाई क्यों नहीं करती तब श्री गांधी ने पार्टी के भीतर  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होने की बात कहते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में बेहूदा बातें भी सामने आ ही जाती हैं | इस तरह एक तरफ तो उन्होंने श्री सिंह के बयान से होने वाले नुकसान से कांग्रेस को बचाने के लिए उनसे असहमति व्यक्त करते हुए बेहूदा जैसा शब्द उसके लिए इस्तेमाल किया लेकिन दूसरी तरफ उनके विरुद्ध कोई कदम उठाने का साहस भी वे नहीं दिखा सके | और फिर अपनी आदतानुसार भाजपा और रास्वसंघ के बारे में घिसे – पिटे आरोप लगाने लगे | राहुल की यही दुविधा कांग्रेस की वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार है | सोशल मीडिया पर इसीलिये उनकी तीखी आलोचना करते हुए लोगों ने लिखा कि ये सब पूरी तरह से प्रायोजित था जिसके अंतर्गत पहले तो दिग्विजय से सेना के बारे में आपत्तिजनक बयान दिलवाकर सनसनी पैदा की गई और उसके बाद उनकी आलोचना कर श्री गांधी ने अपनी छवि सुधारने का दांव चला | पूरे देश में थू – थू होने के बाद खुद श्री सिंह ने भी सेना के प्रति सम्मान दर्शाता हुआ ट्वीट जारी किया | लेकिन श्री गांधी द्वारा आलोचना के बावजूद उनके विरूद्ध किसी भी तरह की कार्रवाई से इंकार किये जाने से उस आरोप की पुष्टि होती है कि उनका बयान किसी रणनीति का हिस्सा ही था और यदि ये सही नहीं है तब ये कहना गलत न होगा कि श्री गांधी में कड़े निर्णय लेने की क्षमता नहीं है | माना कि औपचारिक तौर पर वे कांग्रेस संगठन में किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं लेकिन असलियत तो यही है कि वे कुछ न होते हुए भी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं | ऐसे में कम से कम उन्हें इतना तो करना ही था कि श्री सिंह को अपनी यात्रा से अलग करते हुए वापस जाने को कहते | श्री गांधी को ये सोचना चाहिए था जिस जम्मू कश्मीर में उनकी यात्रा का समापन होना है वह सेना के शौर्य  और कुर्बानियों के कारण ही भारत का हिस्सा है वरना कभी का पाकिस्तान उसे हथिया चुका होता | श्री गांधी की  इस यात्रा का नाम भारत जोड़ो है और ऐसे में उसके संयोजक द्वारा देश की अति सम्मानित सशस्त्र सेना के पराक्रम  का प्रमाण माँगना घोर आपत्तिजनक है | सेना द्वारा भी इस पर अपना विरोध दर्ज कराया गया है | ये देखते हुए कांग्रेस पार्टी भले ही श्री सिंह के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करती किन्तु श्री गांधी उन्हें अपनी यात्रा से दूर कर सेना के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते तब श्री सिंह  द्वारा संदर्भित विवादास्पद बयान को बेहूदा बताने वाली उनकी बात को प्रामाणिक माना जा सकता था | कभी – कभी तो ऐसा लगता है कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या राहुल गांधी ही  हैं जो पार्टी की पूरी निर्णय प्रक्रिया तो अपने हाथ में कैद करके रखते हैं लेकिन समय पर निर्णय नहीं करते | पंजाब इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जहां उनके  द्वारा फैसला टालते रहने के कारण पार्टी पूरी तरह घुटनों के बल आ गई | म.प्र में उनके निकटस्थ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उनके अनिर्णय के कारण पार्टी छोड़ गए | यही हाल गुजरात में हार्दिक पटेल के साथ हुआ जो राहुल की कार्यशैली से खिन्न होकर भाजपा में आ गए | वहीं भारत जोड़ो यात्रा के पंजाब राज्य से गुजरते ही मनप्रीत बादल कांग्रेस से त्यागपत्र दे बैठे | असम के मौजूदा मुख्यमंत्री हिमान्ता  बिस्व सरमा ने तो कांग्रेस छोड़ते समय श्री गांधी  की  बेरुखी को ही कारण बताया था | और भी ऐसे उदाहरण हैं जिनमें उनकी लापारवाही के कारण कांग्रेस को शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी | ऐसे  में सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने वाले दिग्विजय सिंह की बात को बेहूदा बताने के बाद भी यदि  श्री गांधी उनको अपने साथ रखे हुए हैं तब फिर उनकी आलोचना भी महज दिखावा ही कही जायेगी |  

रवीन्द्र वाजपेयी 


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