Saturday 28 January 2023

बिना तराशे हीरों की परख होने से पद्म अलंकरणों का सम्मान बढ़ा



गणतंत्र दिवस पर घोषित पद्म अलंकरण अक्सर आलोचना का शिकार होते रहे हैं। विशेष रूप से राज नेताओं और अभिनेताओं को दिए जाने वाले अलंकरणों के औचित्य पर ज्यादा उंगलियां उठती हैं। सिफारिशों के साथ ही तुष्टीकरण भी इन अलंकरणों की पृष्ठभूमि में रहता था। मोदी सरकार ने पद्म पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया को काफी सुधारा है । हालांकि उच्च स्तर पर सिफारिश और पक्षपात  पूरी तरह समाप्त हो गया ये कहना तो अतिशयोक्ति होगी । इस बार भी एक दो अलंकृत विभूतियां हैं जिनके चयन पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है । लेकिन अधिकतर निर्णय अपनी सार्थकता साबित करते हैं। विशेष रूप से पद्मश्री हेतु चयनित लोगों में ऐसे नाम ज्यादा हैं जो पद , पैसा और प्रतिष्ठा से दूर रहकर अपने  कर्मक्षेत्र में योगदान देते रहे। अन्यथा इन पुरस्कारों को लेकर ये अवधारणा स्थापित हो चुकी थी कि इसकी रेवड़ी कुछ चुने हुए तबकों के लिए ही आरक्षित है । लेकिन बीते कुछ वर्षों से इन अलंकरणों के लिए चयन प्रक्रिया का  लोकतंत्रीकरण करते हुए ऑनलाइन आवेदन के साथ ही अनुशंसा की  व्यवस्था की गई । उसका लाभ ये हुआ कि वंचित वर्ग की उन प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाने लगा  जो चकाचौंध से दूर रहकर सेवा , समर्पण और साधना में रत रहे किंतु बदले में कभी यश , कीर्ति और धन की कामना नहीं की । आजादी के बाद जब पद्म अलंकरणों की व्यवस्था की गई तब निश्चित तौर पर इनके लिए सुयोग्य पात्रों का चयन होता रहा किंतु धीरे धीरे प्रक्रिया पर राजनीति हावी होने  से ऐसे अनेक लोग अलंकृत होने लगे जो सत्ता प्रतिष्ठान के करीब मंडराया करते थे। एक लॉबी विशेष ने साहित्य , कला और संस्कृति के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमा रखा था। इन्हीं कारणों से पद्म पुरस्कारों की घोषणा होते ही  विवाद और आलोचनाओं की शुरुआत हो जाती। यहां तक कहा जाने लगा कि ये अलंकरण महत्वहीन हो चुके हैं लिहाजा इन्हें बंद कर देना चाहिए। देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न तक के लिए राजनीतिक दबाव आने लगे जिससे क्षेत्रीय और भाषायी तुष्टीकरण भी उसके आधार बनने लगे। इसी तरह पद्म विभूषण और पद्म भूषण का निर्णय भी उपकृत करने के साथ ही वोट बैंक के नजरिए से होने से पद्म अलंकरणों के प्रति जनमानस में जो अदरभाव था उसमें क्षरण होने लगा। लेकिन 2014 के बाद से इनकी चयन प्रक्रिया को बजाय कुछ लोगों के हाथों में कैद रखने के सीधे आम जनता से जोड़ने का परिणाम है कि समाज के उस वर्ग तक को अलंकृत होने का सौभाग्य मिलने लगा जिनके लिए राष्ट्रपति भवन में देश के प्रथम नागरिक से सम्मानित होने की कल्पना तो दूर की बात थी , वे अपने जिले के कलेक्टर से मिलने तक से वंचित थे। कला , शिक्षा , चिकित्सा और समाजसेवा के क्षेत्र में निष्काम कर्मयोगी की तरह मौन तपस्वी की भूमिका का निर्वहन कर रहे लोगों को पद्म अलंकरण प्रदान  करने से इन नागरिक सम्मानों की विश्वसनीयता निःसंदेह बढ़ी है। मोदी सरकार इसके लिए निश्चित रूप से बधाई की हकदार है। यद्यपि  दरबारी मानसिकता के जिन लोगों ने अनेक दशकों तक पद्म अलंकरणों की बंदरबांट की उन्हें इस नई व्यवस्था से निश्चित रूप से परेशानी होती होगी किंतु ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि जब देश के सर्वोच्च सत्ताधीशों के समक्ष चलता हुआ किसी सुदूर इलाके का निर्धन व्यक्ति साधारण वस्त्रों में राष्ट्रपति के पास तक पहुंचता है तब पंक्ति के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक लोकतंत्र की रोशनी पहुंचने की उम्मीद को बल मिलता है। गत वर्ष तो एक दलित वर्ग की एक महिला समाज सेविका पद्मश्री प्राप्त करने आई तो उसके पांव में चप्पल तक न थी और उसके सम्मान में प्रधानमंत्री तक उठकर खड़े हो गए। एक आदिवासी महिला ने अलंकरण प्राप्त करने के बाद जब राष्ट्रपति के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया तो पूरा सभागार उस महिला की निश्छलता से अभिभूत होकर रह गया। अलंकरण हासिल करने वालों में ऐसे अनेक व्यक्ति होते हैं जिन्हें फोटोग्राफर की तरफ देखने के लिए भी स्वयं राष्ट्रपति को कहना पड़ता है। ये सब देखकर ये एहसास होता है कि कम से कम पद्म अलंकरणों में तो अंत्योदय लागू हुआ है। इस वर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भी जिन लोगों को पद्म अलंकरण प्रदान किए गए उनमें से पद्मश्री श्रेणी में ज्यादातर नाम ऐसे लोगों के हैं जिनके बारे में उनके शहर , गांव या बस्ती के लोग भी कभी सोच नहीं सकते थे क्योंकि वे किसी राजनेता के कृपा पात्र नहीं हैं। म.प्र में लोक कला के लिए  पदमश्री प्राप्त एक महिला के पास तो रहने का मकान तक नहीं है और वह टपरेनुमा घर में परिवार सहित जीवन यापन करती है। आदिवासी समुदाय की इस महिला की चित्र प्रदर्शनी देश विदेश में लगने के बाद भी वह उपेक्षित ही रही। पद्मश्री की घोषणा होते ही अब सब उसे जानने के लिए आ रहे हैं। यद्यपि साहित्य और कला के लिए दिए जाने वाले अन्य सम्मानों में  पद्म अलंकरणों जैसी निष्पक्षता अभी चर्चा में नहीं आई । उसी तरह से इन विधाओं में की जाने वाली नियुक्तियों में पारदर्शिता भी पूरी तरह महसूस नहीं होती किंतु पद्म अलंकरणों के वितरण में मोदी सरकार ने वाकई शानदार काम किया है और इसके लिए अलंकृति विभूतियों के साथ वह भी बधाई की हकदार है। इसका सकारात्मक  परिणाम ये है कि अब पद्म अलंकरणों को समाप्त करने की मांग नहीं सुनाई देती और समाज का वह वर्ग भी इन अलंकरणों की उम्मीद करने लगा है जिसकी पहुंच सत्ताधीशों तक नहीं है।

रवीन्द्र वाजपेयी 


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