Tuesday 10 January 2023

वरना जोशीमठ जैसे हादसे होते ही रहेंगे



अब ये तय हो चुका है कि जिस तरह टिहरी बाँध बन जाने से गढ़वाल अंचल के अनेक स्थान जलमग्न हो गये उसी तरह जोशीमठ का बड़ा हिस्सा भी अतीत होने जा रहा है | जो स्थितियां अब तक सामने में आई हैं उनके अनुसार उसे  खाली करने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं है | उसके साथ ही सैकड़ों अन्य गाँवों में  भी विस्थापन  प्रारंभ हो गया है | जिस तरह से वहां धरती धंस रही है उसे देखते हुए किसी बड़े भूगर्भीय बदलाव की आशंका से लोगों में दहशत है | अपना आशियाना उजड़ते देख रहे लोगों के मन पर क्या बीत रही होगी ये वे ही जानते हैं | जोशीमठ का स्वरूप क़स्बानुमा ही है | सर्दियों में भगवान बद्रीनाथ यहीं आकर विराजते हैं | शंकराचार्य जी की पीठ भी यहीं है | बद्रीनाथ धाम का यह प्रवेश द्वार होने से भी महत्वपूर्ण है | चीन सीमा के सन्निकट होने से यह सैन्य दृष्टि से काफी संवेदनशील माना जाता है | बद्रीनाथ के अलावा फूलों की घाटी और औली नामक पर्यटन स्थल जाने के लिए भी जोशीमठ शुरुआती स्थल है | शाम के बाद चूंकि उक्त  स्थलों तक जाने की अनुमति नहीं होती , लिहाजा ये  सैलानियों और पर्यटकों के रात्रिकालीन विश्राम का केंद्र बन गया था | औली को पर्यटन स्थल के रूप में  काफ़ी बाद में विकसित किया गया लेकिन बद्रीनाथ की यात्रा तो सदियों से होती आ रही है | पहले ज़माने में  तीर्थयात्री पैदल आते थे और  रास्ते भर स्थानीय लोगों के लकड़ी से  बने मकान उनके आश्रय स्थल होते थे जिन्हें चट्टियां कहा जाता था | लेकिन जब से सडकें बनीं और मोटर वाहन से आना - जाना सुलभ हुआ तब से जोशीमठ बद्रीनाथ के पहले रात्रिकालीन पड़ाव बन गया | और  वहां स्थानीय लोगों के साथ ही बाहरी व्यवसायियों ने होटल और अतिथि गृह बनाने शुरू कर दिये  | ध्यान  देने वाली  बात ये है कि दशकों पूर्व तकनीकी रिपोर्ट में दी गई चेतावनी का उल्लंघन करते हुए भी इसको कस्बे से शहर बनाने की कोशिश होती रही | पहाड़ी भूमि  की क्षमता और तासीर को उपेक्षित करते हुए  निर्माण के लिए पहाड़ों को खोदा - तोड़ा गया जिसका दुष्परिणाम अब जाकर नजर आया | आज वहां दो आलीशान होटल धराशायी किये जा रहे है | पूरे शहर को तीन हिस्सों में बांटकर लोगों को सुरक्षित स्थान पर रखने की योजना भी बन गई है | केन्द्र सरकार हर स्थिति से निपटने को तैयार है | जोशीमठ के लोगों को बचाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में हो रही बैठकें इसका प्रमाण है | लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि एक बार फिर आग लगने पर कुआ खोदने की परम्परा दोहराई जा रही है | उत्तरकाशी सहित उत्तराखंड के अनेक इलाकों में भूस्खलन की घटनाओं से बहुत नुकसान हो चुका है | पहाड़ से मलबा गिरने के कारण अनेक स्थानों पर नदी का जलस्तर ऊपर उठ जाने से दर्जनों  गाँव उजड़ने को मजबूर हो गए | ये स्थिति केवल गढ़वाल में नहीं अपितु समूचे उत्तराखंड और हिमाचल के अनेक स्थानों की है | हिमालय पर्वतमाला भूकम्प की दृष्टि से बेहद संवेदनशील होने के कारण उसमें  चल  रहे विकास कार्यों  से होने वाले नुकसान की अनदेखी के कारण कब क्या हो जाए ये फ़िलहाल तो कोई नहीं बता पायेगा लेकिन जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए न  तो प्रकृति को दोष दे सकते हैं और न ही पर्वतों और नदियों को क्योंकि  उनकी अपनी दुनिया है जिसमें मानवीय दखलंदाजी एक सीमा तक ही  स्वीकार्य है | लेकिन ज्योंही मनुष्य अपने ज्ञान और उससे अर्जित शक्ति पर अहंकार करते हुए प्रकृति से छेड़खानी करता है तो एक सीमा  के बाद वह अपना  क्रोध व्यक्त किये बिना नहीं मानती | पर्वतों की दुर्गम तीर्थ यात्रा के पीछे का उद्देश्य भी आमोद - प्रमोद नहीं था | इसीलिए उसमें होने वाले कष्टों में भी यात्री आनंद की अनुभूति करते थे | लेकिन अब समूचा परिदृश्य बदल गया है | तीर्थयात्रा और पर्यटन के घालमेल का परिणाम ही जोशीमठ के मौजूदा हालात के तौर पर सामने है | आजकल वन्य प्राणियों के बस्तियों में घुसने और जहरीले सर्पों के घरों में डेरा ज़माने की खबरें आये दिन सुनाई देती हैं | इसका कारण उनके ठिकाने में किया जाने वाला अतिक्रमण है | जंगलों की बेरहमी से कटाई और शहरों के असीमित विस्तार की वजह से इन प्राणियों के संसार  में मानवीय दखल के  कारण मजबूरी या प्रतिशोधस्वरूप वे हमारी बस्ती और घरों में आने लगें तो उनका कसूर नहीं है | प्रकृति की जो रचना है उसको नुकसान पहुँचाने की भारी कीमत चुकाने के बावजूद भी हमें अक्ल नहीं आ रही तो फिर जोशीमठ जैसे हादसों की पुनरावृत्ति होती रहेगी |

रवीन्द्र वाजपेयी 

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