Saturday 21 January 2023

अफसरशाही तो घोड़ा है घुड़सवार का जैसा दम वैसा ही चलेगा



 
म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वैसे तो हर समय चुनावी मूड में रहते हैं लेकिन बीते कुछ समय से उनकी  सक्रियता और बढ़ गयी है | इसका कारण इस वर्ष के आखिर में होने वाले प्रदेश विधानसभा के चुनाव हैं | पांच साल पहले मिली पराजय की वजह से श्री चौहान इस बार किसी भी तरह की गुंजाईश छोड़ने तैयार नहीं  और धुआंधार  दौरों के माध्यम से जहां जनता से सीधे संवाद कर रहे हैं वहीं अपने मंत्रीमंडल में कसावट लाने के लिए भी प्रयासरत हैं | इसी क्रम में प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठकें करते हुए वे उन्हें नसीहत दे रहे हैं | गत दिवस उन्होंने आईएएस मीट को संबोधित करते हुए कहा कि जानते नहीं हो मैं कौन हूँ , का भाव अहंकार को अभिव्यक्त करता है | और भी कुछ बातें  प्रशासनिक अधिकारियों से उन्होंने कीं | बीते कुछ समय से मंच से ही अफसरों को निलम्बित कर चर्चा में रहने वाले श्री सिंह ने कल की मीट में बजाय डांट फटकार के कुछ जिलों के जिलाधीशों द्वारा किये गए अच्छे कार्यों की सराहना कर बाकी को उनसे प्रेरणा लेने कहा | मुख्यमंत्री ने ये भी स्वीकारा कि निचले स्तर से आने वाली रिपोर्ट  मौके पर जाकर देखने पर गलत साबित होती है | इसलिए अधिकारियों को कार्यालय और कार्यक्षेत्र  में समन्वय बिठाना चाहिए | प्रशासनिक अधिकारी और उस पर भी आईएएस की कार्यप्रणाली का निष्पक्ष  सर्वेक्षण किया जाए तो ये निष्कर्ष निकलकर सामने आयेगा कि आज भी अफसरशाही की मानसिकता ब्रिटिश  राज से प्रेरित और प्रभावित है | हालाँकि उक्त मीट में मुख्यमंत्री द्वारा  प्रशंसित अधिकारी निश्चित रूप से औरों से अलग हैं | उनके अतिरिक्त भी अनेक प्रशासनिक अधिकारी हैं जो अफसरी ठसक से अलग जनता के बीच घुल मिलकर लोकप्रिय हो जाते हैं | लेकिन ये भी कड़वा सच है कि जो प्रशासनिक अधिकारी जनता की अपेक्षाओं पर उतरकर लोकप्रियता हासिल करता है वह जनप्रतिनिधियों की निगाहों में खटकने लगता है और बिना किसी ठोस वजह से रातों - रात उसका तबादला कर दिया जाता है | वहीं कुछ अकर्मण्य और भ्रष्ट अधिकारी जनता की नाराजगी के बावजूद महज इसलिए जमे रहते हैं क्योंकि उनकी सत्ता के गलियारों में अच्छी खासी पकड़ है और वे राजनेताओं की जरूरतों को पूरा करने की कला में पारंगत होते हैं | बहरहाल मुख्यमंत्री ने जो समझाइश नौकरशाहों को दी वह इसलिए सामयिक और सार्थक है क्योंकि विधानसभा चुनाव के पूर्व उनकी सरकार के कार्यों का मूल्यांकन जनता करेगी और ऐसे में सचिवालय से निकली अच्छी योजना का लाभ जन साधारण तक पहुँच सका या नहीं ये  स्पष्ट होना जरूरी है | लगे हाथ मुख्यमंत्री को अपने मंत्रियों और भाजपा के विधायकों पर भी ये जिम्मेदारी डालनी चाहिए कि वे  लोगों के बीच जाकर जमीनी सच्चाई का सही आकलन करते हुए  ये बताएं कि विकास कार्यों और जन कल्याण की योजनाओं पर कितना अमल हुआ |  अगले कुछ महीने सत्ता में बैठे राजनेताओं के लिए काफी मेहनत भरे होंगे और उन्हें अपने को जनहितैषी साबित करने के लिए पसीना बहाना पड़ेगा किन्तु यदि नौकरशाहों ने अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया तो केवल उन्हें कठघरे  में खडा कर वे अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते | ये बात अनुभव आधारित है कि संसदीय लोकतंत्र में निर्वाचित जन प्रतिनिधि यदि उदासीन और अक्षम है तभी नौकरशाही निरंकुश होती है | इसके ठीक विपरीत  जनता के चुने प्रतिनिधि योजनाओं के क्रियान्वयन के प्रति जागरूक रहते हैं तो फिर कोई कारण नहीं कि कार्यालय और कार्यक्षेत्र में सामंजस्य का अभाव रहे और अफसशाही सरकार चला रहे नेताओं को गलत जानकारी देती रहे | इस बारे में उ.प्र के मुख्यमंत्री रहे स्व. कल्याण सिंह का ये कथन उल्लेखनीय है कि नौकरशाही वह घोड़ा है जिसकी चाल और गति  सवार की योग्यता और क्षमता पर निर्भर करती है | उस दृष्टि से देखा जाए तो श्री चौहान वर्तमान में देश के सबसे अनुभवी मुख्यमंत्री हैं जो थोड़ा सा समय छोड़कर लगातार सत्ता में बने हुए हैं | ऐसे में उनके द्वारा प्रदेश के आईएएस अधिकारियों के समक्ष ये स्वीकार करना कि निचले स्तर से आने वाली जानकारी मैदानी स्तर पर जाकर देखने पर  भिन्न नजर आती है , सोचने को बाध्य करती है |  विधानसभा चुनाव के साल में मुख्यमंत्री की सक्रियता और कड़क रवैया बेशक जनता को पसंद आ रहा है लेकिन इसके साथ ही उन कारणों को दूर करने की तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए जिनके कारण अफसरशाही  अपने को मालिक समझकर जनता के प्रति उपेक्षापूर्ण  व्यवहार करने से बाज नहीं आती | आजादी के 75 साल बाद भी अंग्रेजी राज वाली प्रशासनिक संस्कृति का बना रहना विडंबना ही है |

रवीन्द्र वाजपेयी 

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