Thursday 5 January 2023

सम्मेद शिखर मसले का मिल बैठकर हल निकालना जरूरी



झारखंड स्थित जैन समाज के पवित्र तीर्थस्थल सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के झारखंड सरकार के निर्णय के विरुद्ध पूरे देश में जैन समाज आंदोलित और आक्रोशित है | एक वयोवृद्ध मुनि की तो अनशन के चलते मृत्यु तक हो गयी | जैन समुदाय की चिंता का विषय ये है कि उनके प्रमुख तीर्थस्थल को पर्यटन स्थल का रूप देने के बाद वह आमोद – प्रमोद के साथ ही उन सब सुविधाओं से परिपूर्ण हो जायेगा जो जैन  जीवन शैली में निषिद्ध हैं | मसलन वहां बड़े – बड़े होटल खुलेंगे जिनमें माँस – मदिरा के  सेवन के अलावा पर्यटकों  की  मौज - मस्ती से भी इस तीर्थ स्थल के सात्विक वातावरण पर तामसी प्रवृत्ति हावी होगी | जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार इस क्षेत्र में आदिवासी समाज का भी कोई धार्मिक स्थल है | आदिवासी बहुल इस राज्य में  झामुमो (झारखण्ड मुक्ति मोर्चा) के हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं जो अपने समुदाय के लोगों को संतुष्ट करने के लिए सम्मेद शिखर में पर्यटन को विकसित करना चाह रहे हैं | साथ ही  जिस तरह जैन समाज इस मुद्दे पर संगठित है उसी तरह से श्री सोरेन की पार्टी आदिवासी समुदाय के  शक्ति प्रदर्शन  की तैयारी कर रही है | यदि ऐसा हुआ तब टकराव की स्थिति पैदा होना स्वाभाविक है | हालाँकि जैन धर्म को मानने वाले अहिंसा में विश्वास करते हैं इसलिए उनके आन्दोलन शांतिपूर्ण होते हैं | इसी तरह आदिवासी समुदाय भी  सामाजिक अनुशासन से बंधा होने के कारण टकराव से बचता है | लेकिन जिस बात का डर है वह ये कि आदिवासियों के बीच नक्सली और ईसाई मिशनरियों की जो घुसपैठ है वह दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य उत्पन्न करते हुए अपना उल्लू सीधा कर सकती है | ये सम्भावना भी जताई जा रही है कि केंद्र सरकार अपने अधिकार का उपयोग करते हुए कोई ऐसा निर्णय लेगी जिससे इस विवाद को नासूर बनने से रोका जा सके | लेकिन उसके सामने भी ये समस्या है कि एक पक्ष को खुश करने में दूसरा नाराज न हो जाये |  केंद्र में बैठी भाजपा सरकार के लिए भी इस मसले पर ठोस निर्णय करना आसान नहीं रहेगा क्योंकि इसी वर्ष जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होना हैं उनमें जैन और आदिवासी मतदाता अनेक सीटों पर निर्णायक संख्या में होने से केंद्र सरकार किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले दसियों बार सोचेगी ताकि कर्नाटक , म.प्र , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की चुनावी संभावनाएं प्रभावित न हों | समस्या कांग्रेस के सामने भी है क्योंकि वह झारखंड सरकार में हिस्सेदार रहने  से सम्मेद शिखर विवाद में पक्ष बने बिना नहीं रहेगी | राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी सरकार होने से उसे भी दोनों समुदायों के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी | इस मामले में झामुमो पूरी तरह निश्चिंत है क्योंकि झारखंड में उसका जनाधार मुख्यतः आदिवासी समुदाय के बीच ही है इसलिए वह छोटे से जैन वोट बैंक को नजरअंदाज भी कर सकता है जबकि भाजपा और कांग्रेस के लिए ऐसा  करना बेहद कठिन है | लेकिन एक  पहलू ये भी है कि इस विवाद की आड़ में कुछ शरारती तत्व जैन समाज को मुख्यधारा से अलग करने का प्रयास करने में जुट गए हैं| इसके लिए सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों का उपयोग जिस तरह से किया जा रहा है वह चिंता  का बड़ा कारण है | जैन समुदाय भले ही राजनीतिक कारणों से अल्पसंख्यक दर्जे में रख दिया गया हो लेकिन वह मुस्लिम और ईसाई समाज से सर्वथा भिन्न है | उसकी  पहिचान मुख्य तौर पर व्यवसायी के रूप में होने से वह समाज की मुख्यधारा में पूरी तरह रचा बसा है और उन्मादी सोच का भी उसमें कोई स्थान नहीं है | इस आधार पर सम्मेद शिखर मुद्दे पर सामाजिक विद्वेष पैदा करने की किसी भी साजिश पर निगाह रखना जरूरी है | इस तरह के विवाद अन्य राज्यों में भी  होते रहते हैं | बेहतर है उन्हें सभी पक्ष मिलकर इस तरह सुलझा लें जिससे कि आपसी सौहार्द्र और समन्वय बना रहे | सबसे बड़ी बात ये है कि देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं एक आदिवासी हैं | उनके अलावा भी आदिवासी समुदाय के  अनेक राजनीतिक नेता और नौकरशाह महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं | उन सबको चाहिए वे जैन समाज के साथ बैठकर बीच का रास्ता निकालें | आदिवासियों  के जो सामाजिक मुखिया हैं उन्हें भी  संवाद की स्थिति बनाकर विवाद का समुचित हल निकालने हेतु पहल करनी चाहिए | देश वैसे भी अनेकानेक घरेलू समस्याओं से जूझ रहा है | राजनीति के सौदागर ऐसे मामलों में आग पर पानी की बजाय घी डालने से बाज नहीं आते | संदर्भित विवाद में भी ऐसा ही होता लग रहा है | बेहतर होगा  दोनों पक्ष  समझदारी  का परिचय देते हुए राजनीतिक जमात को इस मुद्दे से दूर ही रखें अन्यथा मामला और उलझता जाएगा क्योंकि वोटों की फसल जहरीले बीजों से ही लहलहाती है |

रवीन्द्र वाजपेयी 


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