Saturday 7 January 2023

जोशीमठ : विकास के नाम पर विनाश का पूर्वाभ्यास



क्रिया की प्रतिक्रिया के सिद्धांत का ताजा प्रमाण है उत्तराखंड में जोशीमठ शहर के धंसने की घटना | बीते कुछ दिनों से वहां दहशत का माहौल है | शहर के वाशिंदे रात को चैन की नींद सो नहीं पा रहे | उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि कहीं उनके मकान की छत ही न गिर जाये | बद्रीनाथ धाम जाने वाले मार्ग में जोशीमठ अंतिम पड़ाव है | शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ यहीं विराजते हैं | उत्तराखंड के चार प्रमुख धामों को जाने वाले मार्गों के उन्नयन के साथ ही जोशीमठ में एक सुरंग का निर्माण हो रहा है | जो इस हादसे की वजह मानी जा रही  है | जैसे ही ये पता चला कि शहर धंस रहा है ,  काम बंद कर जांच शुरू कर  दी गयी | प्रशासन के साथ ही आपदा प्रबंधन की टीमें जोशीमठ में मौजूद रहकर  बचाव की  कार्ययोजना बनाने में जुटी है | उधर हल्दवानी से भी इसी तरह की खबर आने से उत्तराखंड के साथ ही केंद्र सरकार की चिंता भी बढ़ गई  है | राहत एवं बचाव की तैयारियों के अलावा नुकसान को कम से कम करने की दिशा में भी प्रयास चल पड़े हैं | वैसे  उत्तराखंड में ये पहली घटना नहीं है जब भूकंप , भूस्खलन , बादल फटने और पहाड़ के धसकने से नदियों में अचानक आई बाढ़ से तबाही मची हो | दूसरे शब्दों में कहें तो प्रकृति निरंतर चेतावनी देती आ रही है कि हिमालय के समूचे क्षेत्र के भूगर्भीय संतुलन को बिगाड़ने से बचें | वृक्षों की  अंधाधुंध कटाई के कारण पहाड़ जिस तरह नंगे हुए उसकी वजह से उनका धसकना शुरू हुआ | पानी के जो झरने कदम – कदम पर नजर आ जाते थे वे धीरे – धीरे लुप्त हो गए | हरियाली कम हुई तो तापमान बढ़ने लगा जिसका असर ग्लेशियरों के पिघलने के तौर पर सामने आ रहा है  | टिहरी बाँध के निर्माण के विरोध में चले आंदोलन के समय जो चेतावनियाँ दी गईं थीं उनको नजरअंदाज किये जाने के नुकसान आज सबके सामने आ चुके हैं | इसी तरह वृक्षों की बेरहम कटाई रोकने के लिये चले चिपको आन्दोलन पर भी ध्यान नहीं दिए जाने से समूचे उत्तराखंड का पर्यावरण प्रभावित हुआ | हिमालय पर्वतमाला के इस क्षेत्र को ठोस चट्टानी मानने की मानसिकता ने विकास की जो रूपरेखा तैयार की उसी का दुष्परिणाम जोशीमठ में उत्पन्न नए खतरे के रूप में प्रकट हुआ है | पहाड़ों का सीना चीरकर विकसित किये जा रहे चौड़े – चौड़े राजमार्ग , नदियों की धारा रोककर लगाये जा रहे पन बिजली संयंत्र , कांक्रीट से बन रहे मकान और साल दर साल यात्रियों की बढ़ती संख्या के कारण वाहनों की धमाचौकड़ी ने देवभूमि कहलाने वाले उत्तराखंड में मानवीय हस्तक्षेप जरूरत से ज्यादा बढ़ा दिया | लेकिन विकास और ज्यादा कमाई के फेर में न सिर्फ सरकार अपितु वहां रहने वाले वाशिंदे भी ये भूल गए कि पहाड़ और प्रकृति की सहनशीलता की सीमा है | जब तक उनसे बर्दाश्त हुआ तब तक वे शांत बने रहे लेकिन जब लगा कि विकास की वासना में अँधा मनुष्य उसकी खामोशी को कमजोरी मानकर अत्याचार जारी रखने पर आमादा है तब उसने पहले तो हलके संकेतों से अपनी नाराजगी व्यक्त की और जब उस पर भी इंसानी दुस्साहस जारी रहा तब उन्हें ये लगने लगा कि साधारण  चेतावनियों से काम नहीं चल रहा और उसी के बाद प्रकृति ने अपना रौद्र रूप विभिन्न तरीकों से प्रदर्शित करना प्रारंभ किया | लेकिन अपने गरूर में डूबी व्यवस्था और अधकचरी आयातित सोच ने विकास के जो मापदंड तय किये उसमें प्रकृति और पर्यावरण पर अत्याचार पहली पायदान थी | विगत कुछ दशक में उत्तराखंड जिस तरह के भूगर्भीय परिवर्तन झेल रहा है वे सही मायनों में आने वाले संकट के संकेत थे किन्तु हमारे कम या बिना पढ़े बुजुर्ग भले ही अंग्रेजी तो क्या ठीक से हिन्दी में भी अपनी बात व्यक्त न कर पाते हों किन्तु वे प्रकृति की भाषा को समझकर उसकी तकलीफें दूर करने में सक्षम थे | लेकिन विज्ञान और तकनीक के जानकार जिस दुनिया में विचरण करते हैं उसमें प्रकृति से सामंजस्य बनाकर चलने के बजाय उससे टकराकर  पराजित करने की जो मानसिकता है उसी का दुष्परिणाम प्राकृतिक आपदाओं के रूप  में समय – समय पर सामने आता रहता है | लेकिन अब चिंता इसलिए बढ़ रही है क्योंकि उनकी पुनरावृत्ति जल्दी – जल्दी होने लगी है | जोशीमठ के अलावा उत्तराखंड के अन्य इलाकों में लगातार आ रही आपदाएं किसी बड़े खतरे का संकेत हैं | बुद्धिमत्ता इसी में है कि बजाय  हठधर्मिता दिखाने के उन गलतियों को सुधारने का प्रयास हो जिनके कारण शीतलता का प्रतीक हिमालय गुस्से से लाल होने लगा है | अब भी यदि हम नहीं चेते तो फिर ये कहना गलत न होगा कि विकास के नाम पर विनाश का पूर्वाभ्यास हो रहा है | 

रवीन्द्र वाजपेयी 

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