Tuesday 17 January 2023

तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ रहा यूक्रेन संकट



यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध को एक साल होने आ रहा है | 24 फरवरी 2022 को रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने विश्व जनमत को ठेंगा दिखाते हुए यूक्रेन पर बम बरसाना शुरू दिया | शुरुआत में लग रहा था कि यूक्रेन पिद्दी साबित होकर कुछ दिनों में ही घुटने  टेक देगा किन्तु अमेरिका सहित अनेक यूरोपीय देशों ने अपने दूरगामी हितों के मद्देनजर उसे आर्थिक और सामरिक सहायता देकर  मुकाबला करने का हौसला प्रदान किया | यही वजह है कि बुरी  तरह बर्बाद हो जाने के बावजूद वह आज भी रूस का सामना कर रहा है | हालाँकि पूरा देश धीरे – धीरे खंडहर बनता जा रहा है | बिजली , पानी , चिकित्सा और शिक्षा जैसी तमाम व्यवस्थाएं चौपट हो चुकी हैं | रूस के हवाई हमले रोजमर्रे की गतिविधि हो गए हैं | नागरिक ठिकानों पर मिसाइलें दागकर पुतिन अपनी  बदहवासी का परिचय दे रहे हैं | बीच – बीच में परमाणु हमले की धमकी भी सुनाई देती है | 11  महीने में  रूस अब तक जीत क्यों नहीं सका और यूक्रेन ने अब तक पराजय स्वीकार क्यों नहीं की ये हैरानी का विषय है | यदि रूस बिना जीते कदम पीछे खींच ले तो भी जितना नुकसान इस युद्ध में यूक्रेन का  हुआ है उससे उबरने में  उसे अनेक दशक लग जायेंगे | इस युद्ध का कारण रूस द्वारा यूरोपीय देशों को निर्यात की जाने वाली गैस और कच्चे तेल के आपूर्ति में यूक्रेनी भूमि और बंदरगाहों के उपयोग का अधिकार है | 2014 में इसी उद्देश्य से उसने उसके बेहद महत्वपूर्ण बंदरगाह क्रीमिया पर बलात कब्जा कर लिया था जो एक तरह का परीक्षण था | जब पुतिन ने देखा कि  उस कदम का दुनिया में ख़ास विरोध नहीं हुआ तब उन्होंने दूसरे चरण में दोनों देशों की सीमा पर स्थित अनेक यूक्रेनी  राज्यों में अलगाववादी आन्दोलन खड़े कर उन्हें अपने देश में शामिल करने की रणनीति बनाई | युद्ध शुरू करने के बाद कुछ हिस्सों में इकतरफा जनमत संग्रह करवाकर उनका विलीनीकरण भी कर लिया | इस युद्ध का अर्थव्यवस्था के साथ ही   वैश्विक शक्ति संतुलन पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा है | शुरुआत में युद्ध की प्रत्यक्ष वजह यूक्रेन द्वारा अमेरिकी वर्चस्व वाले नाटो नामक सैन्य संधि से जुड़ने का फैसला माना  गया था जिसके अंतर्गत अमेरिका की फौजें रूस की सीमाओं के निकट आकर बैठ जातीं जो पुतिन को गंवारा नहीं था | इसीलिये उन्होंने  उसके पहले ही हमला कर दिया गया | यूक्रेन इसके बारे में बेखबर नहीं था लेकिन उसे भरोसा रहा कि अमेरिका उसकी ढाल बनकर खड़ा  हो जायेगा किन्तु यहीं वह धोखा खा गया | चूंकि उसके नाटो से जुड़ने की प्रक्रिया अंतिम रूप नहीं ले सकी थी लिहाजा अमेरिका ने सीधे मैदान में आने की जगह दूर रहकर सहायता करने की नीति अपनाई | दरअसल अफगानिस्तान से लस्त – पस्त होकर निकले अमेरिका को ये डर सता रहा था कि कहीं यूक्रेन की आग में उसके हाथ न झुलस जाएँ | इसी कारण वह और उसके साथी यूक्रेन को रूस से टकराने के लिए मदद तो देते रहे जिससे रूस का मंतव्य अब तक पूरा नहीं  हो सका | लेकिन इस युद्ध के जारी रहने से दुनिया के सामने आर्थिक संकट के साथ ही अशांति की समस्या भी पैदा हो गयी है | लड़ाई जिस मोड़ पर आकर अटकी है उसे देखते हुए परिस्थितियाँ लघु विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही हैं जिसका  अंजाम परमाणु युद्ध के रूप में दुनिया को भोगना पड़ सकता है | और ऐसा हुआ तब पाकिस्तान जैसे गैर जिम्मेदार देश अपनी परमाणु शक्ति का अविवेकपूर्ण उपयोग कर सकते हैं | लेकिन इस सबके बीच संरासंघ की लाचारी जिस तरह से सामने आई है उसे देखते हुए उसकी उपयोगिता और प्रभाव पर विचार किया जाना जरूरी है | ऐसा लगता है वह कुछ विश्व शक्तियों का बंधुआ बनकर रह गया है | वरना अभी तक  बैठकर विवाद सुलझाने की पहल उसे करनी थी | अतीत में ऐसी ही परिस्थितियों के दौरान संरासंघ ने अपनी सेना  तैनात कर युद्ध रोकने का प्रयास किया था | लेकिन मौजूदा संकट में  उसकी तरफ से ऐसी किसी भी पहल की जानकारी नहीं मिली | इससे लगता है उसने दुनिया को चंद बड़ी ताकतों  के रहमो करम पर छोड़ दिया है | ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पृथ्वी के किसी भी कोने में होने वाली लड़ाई के पीछे विश्वशक्तियों की भूमिका रहती है | यही खेल यूक्रेन में रूस खेल रहा है जिसे विश्व संगठन हाथ पर हाथ धरे बैठा  देख रहा है | ऐसे में इस संगठन की उपयोगिता पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है | दरअसल जब तक वह  महज पांच बड़े देशों की मर्जी से बंधा रहेगा तब तक उसकी लाचारी इसी तरह बनी रहेगी | ऐसे में जरूरत इस बात की है कि तीसरी दुनिया की उभरती ताकतों के रूप में भारत और ब्राजील को भी इसकी निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जावे | ये सवाल भी उठ रहा है कि संरासंघ के महासचिव ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से अब तक युद्ध रोकने के बारे में बात क्यों नहीं की और की तो नतीजा क्या निकला ? माना कि यह दो देशों के बीच का  मसला है किन्तु आज  दुनिया के एक कोने में होने वाली घटना का असर सब दूर नजर आता है | यदि संरासंघ ने जल्द  कारगर उपाय नहीं किये तो कुछ ताकतवर देश मिलकर अपने स्वार्थ और अहंकार में पूरे विश्व को युद्ध की आग में झोकने से बाज नहीं आयेंगे | रूस और यूक्रेन की लड़ाई  उसी का पूर्वाभ्यास लगता है |


रवीन्द्र वाजपेयी 
 

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