Friday 6 January 2023

वरना पेट्रोल से भी महंगा बिकेगा पानी



जल ही जीवन है का नारा जगह – जगह देखने मिल जाता है | इस पर बौद्धिक चिंतन – मनन भी खूब होता है | वैश्विक तापमान बढ़ने की वजह से अब तो पृथ्वी पर  ध्रुव क्षेत्रों के ग्लेशियर तक पिघलने लगे हैं जिसकी वजह से समुद्री जल का स्तर बढ़ने और तटवर्ती शहरों के अलावा मालदीव जैसे टापू नुमा देशों के डूब जाने की आशंका है | ये कहना गलत नहीं है कि जिस तरह 20 वीं सदी में कच्चे  तेल के स्रोतों पर कब्ज़ा करने के लिए महाशक्तियाँ आपस में टकराती रहीं ठीक वैसी ही आशंका 21 वीं सदी के उत्तरार्ध में जलस्रोतों पर आधिपत्य हेतु हो सकती है | बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिक क्रांति ने परम्परागत जल प्रबन्धन की व्यवस्था को पूरी तरह बदलकर रख दिया | जल के उपयोग हेतु  किया जाने वाला श्रम तकनीक के विकास की वजह से कम हो जाने के कारण उसका उपयोग फिजूलखर्ची की सीमा तक जा पहुंचा | जिसका प्रमाण नगर निगम  के नलों से आने वाले पानी से मोटर वाहन धोये जाने के रूप में देखा जा सकता है | उस दृष्टि से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास के साथ ही जल संरक्षण इस सदी की सबसे प्रमुख प्राथमिकता है | इसलिए गत दिवस म.प्र की राजधानी भोपाल में आयोजित वाटर विजन 2047 सेमीनार को आभासी माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से जल संरक्षण हेतु जागरूक रहने का जो आह्वान किया वह पूरी तरह सामयिक है | केंद्र सरकार के जलशक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित सेमीनार में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं | निश्चित रूप से यह विषय पूरे देश के लिए चिंता का कारण है | विकास दर के आधार पर भारत को दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था की मान्यता मिलना गौरवान्वित करता है किन्तु इसी के साथ ये भी विचार योग्य है कि बड़ी संख्या में छोटी – छोटी नदियाँ अस्तित्वहीन हो चली हैं | गावों  और शहरों में सैकड़ों साल पहले बने तालाब लापरवाही के चलते प्रदूषित होने के बाद सूखते गए | ऐसा ही हश्र कुओं का हुआ | धरती के सीने को छेदकर जल निकालने की तरकीब और तकनीक ने पानी के परम्परागत स्रोतों को नष्ट करने में प्रमुख भूमिका निभाई | जब तक पानी प्राप्त करना श्रम साध्य था तब तक उसकी अहमियत का एहसास सभी को था लेकिन ज्यों  – ज्यों उसे पाने में आसानी होती गई त्यों – त्यों उसके संचय का संस्कार भी लुप्त होता गया | विकास की वासना में हम ये भूल गए कि प्रकृति हमें जो भी देती है उसकी सीमा का उल्लंघन समूची मानव जाति के लिए विनाश का आधार बन रहा  है | भारत जैसे देश में जहाँ का मौसम विविधताओं से भरा है , जल संरक्षण मौजूदा समय की सबसे बड़ी जरूरत है | ऐसे में जब प्रधानमंत्री द्वारा प्रारम्भ अटल जल योजना के अंतर्गत प्रत्येक घर में नलों द्वारा पानी पहुंचाए जाने पर जोरदार काम चल रहा है तब जल स्रोतों के साथ ही वर्षा जल का संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए | खेतों को सींचने के लिए भी ड्राप इरीगेशन की जो तकनीक इजरायल ने दी है उसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाना जरूरी है | सबसे बड़ी जरूरत है भवनों  की छतों से वर्षा के जल को वाटर हार्वेस्टिंग के जरिये सहेजने की | नये घरों के निर्माण हेतु इसकी अनिवार्यता के बावजूद नगरीय निकायों की  अनदेखी इस दिशा में किये जाने वाले प्रयासों को फलीभूत नहीं होने देती | केंद्र सरकार को चाहिये वाटर हार्वेस्टिंग को कानूनी अनिवार्यता का रूप दे | इसकी मदद से प्रति वर्ष अपार जलराशि बेकार होने से बचाये जाने के अलावा निकटवर्ती भूजल स्तर उठाने में भी मदद मिलेगी | जल का संरक्षण , संग्रहण और संवर्धन तीनों पर एक साथ अमल किये जाने का युद्धस्तर पर प्रयास होना चाहिए | लेकिन जैसा श्री मोदी ने अपने सम्बोधन में कहा जब तक जनता  स्वप्रेरित होकर इस अभियान में सहभागिता नहीं देती तब तक लक्ष्य कितने भी बड़े तय कर  लिए जावें और योजनाओं का खाका तैयार हो जाये लेकिन जमीन पर नतीजे नहीं दिखाई देंगे | उन्होंने स्वच्छता अभियान का हवाला देते हुए कहा कि वह इसीलिये प्रभावशाली हो सका क्योंकि वह जनता का अभियान बन गया  | 140  करोड़ की आबादी के लिए  रोटी , कपड़ा  और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ ही उसे जीवन यापन  हेतु जल की पर्याप्त आपूर्ति भी उतनी ही जरूरी है | कविवर रहीम सैकड़ों साल पहले बड़े ही सरल शब्दों में कह गए थे कि रहिमन पानी राखिये , बिन पानी सब सून | उनके इन चंद शब्दों में निहित अर्थ को समझकर उसे अपने आचरण में चरितार्थ करना ही मानवता की निरंतरता का मूल मंत्र हैं | प्रधानमंत्री श्री मोदी भविष्य के लिए जिस प्रकार का ढांचा खड़ा करना चाहते हैं उसमें जन सहयोग की भी महती जरूरत है | जल संरक्षण के बारे में सोचते समय हमें केवल अपने नहीं  अपितु अपनी संतानों की प्यास बुझाने के बारे में भी  सोचना चाहिए | वरना वह दिन दूर नहीं जब बाजारवादी ताकतें  पानी को पेट्रोल से भी महंगा कर देंगी |

रवीन्द्र वाजपेयी 

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