Monday 9 January 2023

प्रवासी सम्मेलन से भारत की वैश्विक भूमिका और मजबूत होगी



म.प्र की  व्यवसायिक राजधानी इंदौर में 17 वें भारतीय प्रवासी दिवस का आयोजन मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में भारत की भूमिका के मद्देनजर बेहद महत्वपूर्ण और सामयिक है | विश्व के अनेक देशों में जाकर बस गए भारतवंशियों को अपनी मातृभूमि से भावनात्मक तौर पर जोड़े रखने में प्रवासी दिवस का यह आयोजन बहुत सहायक साबित हुआ है | 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी घोषणा की थी और 2003 में प्रथम प्रवासी सम्मलेन आयोजित हुआ | इंदौर का यह 17 वाँ आयोजन है | इसका महत्व इसी से समझा जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहाँ आज इसको संबोधित किया वहीं कल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इसके समापन में शामिल होंगी | विदेश मंत्री एस. जयशंकर विगत अनेक दिनों से इंदौर में आयोजन की तैयारियों में जुटे हुए हैं | इस आयोजन की तिथि 9 जनवरी रखने के पीछे कारण ये है कि 1915 में इसी तारीख को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे | दरअसल प्रवासी सम्मलेन की सोच उस समय पैदा हुई जब वाजपेयी सरकार द्वारा 1998 में किये गए परमाणु परीक्षण के बाद  अमेरिका सहित अनेक पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे | तब वाजपेयी जी ने  विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों का आह्वान  किया और उन्होंने भारत में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भेजकर उन प्रतिबंधों के विरूद्ध मजबूती से खड़े होने में देश को सक्षम बनाया | 2003 के बाद से अप्रवासियों को परदेशी न  मानते हुए वतन के प्रति उनके मन में जो भावना है उसे और सुदृढ़ करने का प्रयास लगातार चलता रहा है | बाद में आई सरकारों ने भी उसके महत्व को समझा जिसका अनुकूल परिणाम देखने मिला  है | प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री मोदी ने प्रवासियों से सम्पर्क बढ़ाने पर काफी जोर दिया | इसीलिये वे अपनी हर प्रमुख विदेश यात्रा में वहां रह रहे भारत वंशियों से मिलकर उन्हें भारत से जोड़े रखने का प्रयास करते हैं | इस बारे में ये  उल्लेखनीय है कि आज  भारतीय मूल के लोग सारी दुनिया में फैल चुके हैं | उनमें बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिन्होंने अपने परिश्रम और योग्यता से सम्मान और समृद्धि अर्जित कर ली है | अपनी जन्मभूमि को छोड़कर गये इन लोगों की मन में ये भावना आ  चुकी है कि उन्हें भारत को विकसित देश बनाने के लिए कुछ करना चाहिए | प्रवासी दिवस का आयोजन उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है | इसके जरिये पूंजी निवेश तो आता ही है भारतीय संस्कृति के प्रति उनके मन में जो श्रृद्धा और प्रेम है वह भी मजबूत होता है | अमेरिका , कैनेडा और ब्रिटेन जैसे समृद्ध देशों में सुविधाजनक जीवन यापन कर रहे भारतीय मूल के लोगों में अपनी मातृभूमि को विश्व के विकसित देशों की कतार में खड़ा करने की जो ललक विगत 10 – 15 साल में जागी है उसका काफी श्रेय प्रवासी सम्मलेन को दिया जा सकता है | सूचना तकनीक के विकास के बाद से भारत ने सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में जो चमत्कारिक प्रगति की उसकी वजह से बड़ी संख्या में भारतीय युवक विदेशों में जाकर काम कर रहे हैं | निश्चित रूप से उन्हें वहां बेहतर अवसर उपलब्ध हैं | लेकिन देश से दूर रहकर भी इसके विकास से जुड़े रहने की भावना उनके मन में जीवंत रहे इसके लिए उनसे संपर्क और संवाद बनाये रखना देश के दूरगामी  हितों में है | भारत सरकार ने प्रवासी भारतीयों से संपर्क स्थापित रखने के लिए ही अप्रवासी भारतीय मंत्रालय भी बना  रखा है जो उनकी तमाम  समस्याओं का समाधान करता है | इस मंत्रालय की वजह से विदेशों में बसे भारतवंशियों को  अपने देश के साथ जुड़े रहने में काफी सुविधा हुई है | इंदौर में प्रवासी सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब पूरा विश्व कोरोना के बाद की परिस्थितियों से जूझ रहा  है | दूबरे में दो आसाढ़ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए रूस और यूक्रेन युद्ध जैसी मुसीबत आ खड़ी हुई जिसकी वजह से तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराने लगा है | ऐसे में भारत की भूमिका पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं | न सिर्फ आर्थिक अपितु कूटनीतिक क्षेत्र में भी हमारा प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है | इस उपलब्धि में सरकार की नीतियां तो प्रशंसा की पात्र हैं ही किन्तु अप्रवासी भारतीयों की भूमिका को भी इसका श्रेय जाता है | अमेरिका , कैनेडा , ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की राजनीति में भारतीय मूल के लोगों का  महत्वपूर्ण पदों पर बैठना इसका प्रमाण है | उस दृष्टि से इंदौर का सम्मेलन  रणनीतिक दृष्टि से भी काफी महत्त्व रखता है | प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का इसमें आकर  विदेशों से आये प्रतिनिधियों को सम्मानित करना एक  बुद्धिमत्तापूर्ण कदम है | उम्मीद की जा सकती है कि इसके जरिये भारत अपनी वैश्विक भूमिका को और मजबूत कर  सकेगा |

 रवीन्द्र वाजपेयी 

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