Monday 23 January 2023

राजनेता और अफसर अंधविश्वास फ़ैलाने में सबसे आगे



आजकल म.प्र के बागेश्वर धाम से जुड़े धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री नामक   आध्यात्मिक व्यक्तित्व को लेकर विवाद चल रहा है | उनके द्वारा दिखाए जाने वाले चमत्कारों के पक्ष – विपक्ष में बयानों की बाढ़ आ गई है | हालांकि उनसे जुड़ी चर्चाओं का दौर काफी समय से चला आ रहा है और उन्हें प्राप्त दैवीय शक्तियों के दावे पर उंगलियाँ भी उठती रही हैं | दूसरी तरफ उनके प्रशंसकों और अनुयायियों की संख्या में भी चमत्कारिक रूप से वृद्धि हुई है | दरअसल हाल ही में नागपुर में उनके समागम के दौरान एक निजी संस्था द्वारा उन्हें अपने चमत्कार साबित करने की चुनौती दिए जाने के बाद से विवाद तेज हुआ |  संस्था का कहना है कि उससे घबराकर श्री शास्त्री निर्धारित कार्यक्रम से दो दिन पहले ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर चले गए जहां उनका प्रवचन तय था | वहां पहुंचने के बाद उन्होंने उक्त संस्था की  चुनौती स्वीकार करते हुए उसके पदाधिकारियों को रायपुर आने का न्यौता भी दिया और सार्वजनिक मंच से अपनी ठेठ बुन्देलखंडी बोली में ऐसी बातें कहीं जो विरोधियों  को अशालीन लगीं तो समर्थकों के अनुसार जिस अंचल के श्री शास्त्री रहने वाले हैं वहां आम बोलचाल में ये शब्दावली प्रचलित है |  टीवी चैनल वाले तो ऐसे अवसरों की तलाश में रहते ही हैं लिहाजा उन्होंने उसको हवा देकर अपनी दर्शक संख्या में वृद्धि का दांव चला | चूंकि श्री शास्त्री सनातनी परम्परा के हैं इसलिए हिन्दू समाज का बड़ा वर्ग उनके समर्थन में आ खड़ा हुआ किन्तु उसी के समानांतर वे लोग भी सामने आ गए जिन्हें हिन्दू और हिंदुत्व जैसे शब्दों से कुढ़न है | और फिर चल पड़ा आक्रमण और  प्रत्याक्रमण का दौर | समर्थन करने वाले आलोचकों पर ये कहते हुए चढ़ बैठे कि दूसरे धर्मों के धर्मगुरुओं द्वारा दिखाए जाने वाले चमत्कारों में उन्हें पाखंड क्यों नहीं दिखता ? ऐसे मामलों में राजनीति न हो ये कैसे संभव है इसलिए पक्ष – विपक्ष के नेता भी मैदान में आ गए | सबसे रोचक बात ये है कि सनातन धर्म के ध्वजावाहक जगद्गुरु कहे जाने वाले शंकराचार्यों में से एक ने श्री शास्त्री को उनकी चमत्कारिक शक्ति से जोशीमठ में आ रही दरारें भरने की चुनौती दे डाली वहीं एक अन्य शंकराचार्य उनके समर्थन में आ खड़े हुए | सनातनी परम्परा के एक अति सम्मानित संत ने भी श्री शास्त्री की चमत्कारिक शक्ति को प्रामाणिक मानते हुए उनका बचाव किया | बढ़ते – बढ़ते बात यहाँ तक आ गयी कि चूंकि श्री शास्त्री अन्य धर्मों में चले गए हिन्दुओं की वापसी करवा रहे हैं इसलिए उन पर षडयंत्रपूर्वक हमला किया जा रहा है |  उनके पहले भी अनेक बाबा और संत कहलाने वाले लोग चमत्कार दिखाने के नाम पर कुख्यात हो चुके थे इसलिए ऐसे मामलों में अंधविश्वास की बात सहज रूप से उभरकर सामने आती है | सवाल ये है कि विश्वास और अंधविश्वास के बीच की विभाजन रेखा कौन मिटायेगा ? महाराष्ट्र में अन्धविश्वास फ़ैलाने के विरुद्ध कानून भी है लेकिन उसी राज्य में विभिन्न धर्मों के ऐसे आस्था केंद्र हैं जिनके साथ चमत्कार जुड़े हैं और हजारों श्रद्धालु वहां अपनी तकलीफें दूर करने जाते हैं | वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो दैवीय शक्ति प्राप्त कर चमत्कार दिखाने वाले लोगों की मनःस्थिति  का लाभ उठाकर उनका भावनात्मक , आर्थिक और कहीं – कहीं शारीरिक शोषण  तक करते हैं | लेकिन  ये बात केवल हिन्दू समाज के साथ ही नहीं जुड़ी | इस्लाम और ईसाइयत को मानने वाले भी चमत्कारों से प्रभावित होते हैं | अनेक मौलवी झाड़ – फूंक करते हैं वहीं ईसाई समुदाय में चंगाई सभाएं बड़ी संख्या में होती हैं | अन्य धर्मावलम्बी अपने – अपने ढंग से अंधविश्वासों को मानते हैं | लेकिन ऐसे मामलों में हिन्दुओं में ज्यादा खुलापन नजर आता है | मसलन संदर्भित विवाद को ही लें तो दो शंकराचार्यों का परस्पर विपरीत मत ये साबित करता है कि सनातनी परंपरा में आत्ममंथन करने की जो प्रवृत्ति है वही इसकी शक्ति है | धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारिक शक्ति यदि ढोंग हैं तो उनका पर्दाफाश भी होकर रहेगा लेकिन उन्हें जिस तरह से निशाने पर लिया जा रहा है उससे तो ये लगता है कि विघ्नसंतोषी तत्व बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनकर कूद पड़े हैं | जो राजनेता श्री शास्त्री के विरोध में आ खड़े हुए हैं उनकी चिंता का कारण अन्धविश्वास का प्रसार नहीं अपितु वोटों के ध्रुवीकरण से उनके भविष्य को पैदा हो रहा खतरा है | और फिर उन्हें तो ऐसे विषयों पर बोलने का नैतिक अधिकार ही कहाँ रहा जाता है जब उनमें से ज्यादातार मंदिरों में अनुष्ठान करते हुए फोटो खिंचवाकर उनका प्रचार करने में आगे - आगे  रहते हैं | यही हाल समाचार माध्यमों विशेष रूप से टीवी चैनलों का है जो इस तरह के विवादों में बजाय रचनात्मक भूमिका का निर्वहन करने के आग में घी झोकने का काम करते हैं | अंधविश्वास के बारे में ये कहा जाता है कि अशिक्षित या अल्पशिक्षित तबका इसकी जकड़ में जल्दी आता है लेकिन जब शासन चलाने वाले नेता और  आईएएस – आईपीएस अधिकारी तक चमत्कारों के मकड़जाल में फंसे दिखाई देते हैं तब साधारण जनता कैसे पीछे रह सकती है ? पहले धनाड्य वर्ग द्वारा आध्यात्मिक हस्तियों के प्रवचन करवाकर सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित करने का चलन था लेकिन अब राजनीतिक नेता भी ऐसे  आयोजन करने लगे  हैं | विशेष रूप से जहां चुनाव होने वाले होते हैं वहां धार्मिक आयोजनों की बाढ़ आ जाती है |  शिक्षा और ज्ञान – विज्ञान के प्रसार के बावजूद अन्धविश्वास का बढ़ना समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन का विषय है | चूंकि इस विषय के साथ आस्था और समस्याएँ दोनों जुडी होती हैं इसलिये जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर पहुंचना उचित नहीं है | आखिर विज्ञान भी बरसों के शोध के उपरांत जिन मान्यताओं को स्थापित करता है वे ही कुछ समय बाद गलत साबित हो जाती हैं | समाज विज्ञान में भी ऐसा होता है | जब तक विश्वास है तब तक अन्धविश्वास भी रहेंगे क्योंकि कोई भी शोध अंतिम नहीं है |

रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment