Tuesday 3 January 2023

गंगा : मानव की बजाय खुद के कल्याण की मोहताज हो गई



कोलकाता से आई एक रिपोर्ट के अनुसार प. बंगाल में गंगा नदी का जल पीने तो क्या नहाने लायक तक नहीं है | इसकी मुख्य वजह उद्योगों से निकलकर उसमें मिलने  वाला दूषित जल और पदार्थ हैं  | यद्यपि मैदानी इलाकों में आने के बाद से ही गंगा की पवित्रता पर मानवीय दखलंदाजी का दुष्प्रभाव पड़ने लगता है किन्तु प. बंगाल से जो जानकारी आई है उसके अनुसार तो स्थिति बहुत ही खराब है | गंगा शुद्धि अभियान पर अरबों रूपये खर्च होने के बाद भी उसकी दशा सुधरने की बजाय अगर  और बिगड़ रही है तब ये कहना  गलत नहीं  होगा कि प्रयास या तो आधे – अधूरे थे या फिर योजना का क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं किया गया | गंगा के पानी में किस स्थान पर कितना प्रदूषण है ये वैज्ञानिक परीक्षणों से स्पष्ट किया जाता है | उस दृष्टि से प. बंगाल के जो ताजा आंकड़े आये हैं वे भयावह हैं क्योंकि गंगा किनारे रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए वह केवल पवित्र नदी ही नहीं अपितु जल आपूर्ति का स्रोत भी है | उनके रोजमर्रे की जरूरतों में पानी का जो हिस्सा है वह उन्हें गंगा से ही प्राप्त होता है | ऐसे में यदि उसका जल पीने तो क्या नहाने योग्य भी नहीं रहा तब उसका होना निरर्थक है | एक नदी जिसके जल की शुद्धता सदियों से असंदिग्ध रही हो वह यदि विज्ञानं के विकास के साथ ही  प्रदूषित होती चली गयी तो  ये साबित होता है कि प्राथमिकताओं में कहीं न कहीं दिशाहीनता रही | हालांकि गंगा या अन्य नदियाँ एकाएक अपवित्र हो गयी हों ऐसा नहीं है | औद्योगिकीकरण के साथ ही आबादी के असीमित विस्तार ने नदियों के जल को दूषित करना शुरू किया | इसीलिये न सिर्फ गंगा अपितु देश  की सभी छोटी - बड़ी नदियों की दशा एक सी हो गयी है | नालों का गन्दा पानी खुले आम उनमें मिलता हुआ देखा जा सकता है | यहां तक कि सीवर से आने वाला पानी भी निकटस्थ नदी में छोड़ा जाता है | जब शहर छोटे हुआ करते थे तब नाले – नालियों का जल आस पास के खेतों में उपयोग होता था | लेकिन बेतहाशा शहरीकरण  के कारण वे  खेत कांक्रीट के जंगलों  में तब्दील हो चुके हैं | इस वजह से शहरी बस्तियों का निस्तारित  पानी ,   जल स्रोतों को प्रदूषित करने का कारण बन रहा है जिससे  गंगा ही नहीं वरन देश की अधिकतर नदियों के साथ ही कुँए और तालाब का जल शुद्धता गँवा बैठा है | यहाँ तक कि भूजल भी अब पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहा जा सकता | इसके लिए प्रथम दृष्टया तो सरकार ही कसूरवार है क्योंकि जल स्रोतों की  सुरक्षा  और  शुद्धता के लिए उसे जो प्रबंध करने चाहिए थे वे उसने नहीं किये और जो किये भी वे अपर्याप्त होने के साथ ही अव्यवस्था  और भ्रष्टचार का शिकार होकर रह गए | गंगा शुद्धि इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है | हालाँकि ये कहना भी सही नहीं है कि कुछ भी नहीं हुआ लेकिन हालात चूंकि अपेक्षित स्तर तक नहीं सुधर सके इसलिए माना जा सकता है कि प्रयासों में ईमानदारी और प्रतिबद्धता की कमी रही | बहरहाल प.बंगाल से गंगा की दुर्दशा संबंधी जो जानकारी आई है वह केवल सरकार के ही नहीं अपितु  समाज के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए |  ये कहते हुए पल्ला झाड़ लेना गैर जिम्मेदाराना सोच है कि  सरकार , स्थानीय प्रशासन , नगरीय निकाय और उद्योग इसके लिए कसूरवार हैं | नदियों के साथ ही अन्य जल स्रोतों के प्रति श्रृद्धा का भाव रखने वाले समाज में उनकी पवित्रता और सुरक्षा को लेकर जो लापरवाही देखने में आती है वह भी उनका सत्यानाश करने की दोषी है | जिन नदियों में स्नान कर हम पुण्य कमाने की लालसा रखते हैं उन्हें अशुद्ध करने से बड़ा पाप नहीं है | प्रकृति और शुद्ध पर्यावरण हमें ईश्वर की अनुपम देन  है | लेकिन हम उसके प्रति कृतज्ञ होने के बजाय एहसान फरामोश हो चले हैं | राजधानी दिल्ली में छठ पूजा के दिन  श्रृद्धालु यमुना के जिस जल में स्नान और पूजन - अर्चन करते हैं उसके चित्र देखकर घिन आती है | उसके बाद भी लोग उस जल से अपनी धार्मिक आस्था का निर्वहन करते हैं तो उसे श्रद्धा कहें या मूर्खता ये विश्लेषण का विषय है | कोरोना काल में जब लॉक डाउन की वजह से लोग घरों में रहने मजबूर थे तब नदियाँ अपने नैसर्गिक रूप में लौट आई थीं | उस समय के तमाम चित्र और वीडियो जमकर प्रसारित हुए  जिन्हें लोगों की सराहना भी मिली किन्तु ज्योंही लॉक डाउन से आजादी मिली त्योंही नदियों की बदहाली पहले जैसे हो गयी | तमाम अनुभवों के बाद निष्कर्ष यही है कि प्रकृति से मिली इस अमूल्य दौलत के प्रति हम जिस तरह से लापरवाह हैं उस रवैये को बदलना होगा | पूरी तरह सरकार के भरोसे बैठे रहना  उचित नहीं  है | वह जो कर रही है , उसे करने दें किन्तु जहाँ हम गलत हैं उसमें सुधार कर लिया जावे तो काफी कुछ बदलाव आ सकता है | इसी तरह  नदियों के संरक्षण हेतु केवल पर्यावरणविद संघर्ष करें और हम दूर खड़े देखते रहे तो बड़ी बात नहीं नदियों का जल , पीने और नहाने ही नहीं अपितु छूने लायक तक न बचेगा | हमारे देश में प्रत्येक नदी गंगा का प्रतीक मानकर पूजी जाती है | लेकिन उसके बचाव हेतु हम क्या करते हैं , इस प्रश्न का जवाब कोई नहीं  देता | गौरतलब है गंगा न तो एक दिन में प्रदूषित हुई और न ही थोड़े से प्रयासों से स्वच्छ होने वाली है | जब तक नदियों के प्रति आस्थावान लोग उन पर अत्याचार करना बंद नहीं करते तब तक वे धीमी मौत की शिकार होती रहेंगी | गंगा का पृथ्वी पर अवतरण मानव  कल्याण के लिए हुआ था लेकिन बदले में मानव ने उसे जो दिया उसके कारण आज वह अपने कल्याण की मोहताज हो गई है | 

रवीन्द्र वाजपेयी 


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