Saturday 20 May 2023

100 से बड़ा नोट होना ही नहीं चाहिये


मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस : संपादकीय
-रवीन्द्र वाजपेयी 

100 से बड़ा नोट होना ही नहीं चाहिये  

कल शाम जैसे ही रिजर्व बैंक ने 2 हजार के नोट चलन से बाहर करने की सूचना सार्वजनिक की तो पहले - पहल  ये माना गया कि यह 2016 में की गयी नोटबंदी जैसा ही कदम है , जिसकी वजह से पूरे देश को अकल्पनीय परेशानियां झेलना पड़ी थीं | आज भी उस वक्त की याद आते ही लोग सन्न रह जाते हैं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए 500 और 1 हजार के नोट बंद करने  की  घोषणा कर डाली | उसके बाद के हालात पर काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है | उस कदम का उद्देश्य क्या था ये अधिकृत तौर पर आज तक स्पष्ट नहीं हो सका | कोई उसे काले धन पर चोट बता रहा था तो कोई आतंकवादियों की आर्थिक सहायता को रोक देने का उपाय | लेकिन आम तौर पर यही समझा गया कि वह दांव काले धन को बाहर लाने चला गया था | लेकिन अमल में हुई कुछ गलतियों की वजह से उस दुस्साहसिक कदम का अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका | काले धन वालों ने येन केन प्रकारेण अपने नोट ठिकाने लगा दिए , जिसमें बैंक कर्मचारी , पेट्रोल पम्प आदि के साथ सरकारी विभाग भी शामिल रहे | ये कहना गलत न होगा कि समाचार माध्यमों के जरिये आ रही खबरों से सरकार घबरा सी गयी और उसने नोट बदलने के लिए जिस तरह की रियायत और मोहलत दी उसने उस निर्णय के असली उद्देश्य पर पानी फेर दिया | उसके बाद अर्थव्यवस्था में आये ठहराव के कारण उसको चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ी | यद्यपि उसके बाद भी भाजपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव जीत लिया किन्तु नोटबंदी रूपी वह हादसा आज भी सिहरन पैदा कर देता है | और फिर सरकार ने 2 हजार का नया नोट जारी कर नए सवाल भी पैदा कर दिए | मसलन काले धन को बाहर  लाने के लिए बड़े नोट बंद करने के बाद उससे भी बड़ा नोट जारी करने का औचित्य क्या था ? लेकिन गत दिवस की गई नोटबंदी के साथ रिजर्व बैंक ने ये  साफ़ किया कि उस समय मुद्रा की कमी को दूर करने के लिये 2 हजार का नोट शुरू किया गया था किन्तु अब वह मकसद पूरा हो चुका है इसलिए उसे  वापस लेने की प्रक्रिया के तहत ये कदम उठाया  गया है | बीते तीन - चार सालों से वैसे भी इस नोट की छपाई बंद थी और जितने नोट बैंक में गए भी उनको दोबारा चलन में लाने की बजाय वापस रिजर्व बैंक भेज दिया गया | लेकिन ईडी और आयकर के छापों में जप्त किया गया काला धन ज्यादातर 2 हजार के नोटों की शक्ल में ही मिला | इससे इस अवधारणा की पुष्टि हुई कि बड़े नोट काले धन के संचय में मददगार बनते हैं | इसीलिये कल जब रिजर्व बैंक ने उक्त घोषणा की तब कुछ देर तक तो घबराहट रही लेकिन जैसे ही स्पष्ट हुआ कि 2 हजार का नोट तत्काल प्रभाव से बंद नहीं होगा और उसे बैंक से बदलने के लिए 30 सितंबर तक का समय मिलेगा तो लोगों ने राहत की सांस ली | इस दौरान उसके जरिये मौद्रिक लेन देन भी सामान्य तरीके से जारी रहेगा | जिनके खाते बैंक में नहीं हैं वे एक बार में 20 हजार के नोट बदल सकेंगे जबकि खातेदार कितनी भी मात्रा में 2 हजार  के नोट खाते में जमा कर पायेगा |  कुछ लोग इस निर्णय को र्रिजर्व बैंक द्वारा भूल सुधार करना बता रहे हैं तो कुछ के अनुसार ये एक और भूल है | विपक्ष इसे जनता को परेशानी में डालने वाला बताकर इसकी आलोचना कर रहा है | प्रधानमंत्री की निर्णय क्षमता पर सवाल दागे जा रहे हैं । दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तो पढ़े – लिखे  प्रधानमंत्री की जरूरत बताते हुए श्री मोदी पर तंज कस डाला | लेकिन  सबसे अलग हटकर देखें तो इस निर्णय को नोटबंदी के अगले चरण के तौर पर देखा जा सकता है | इसमें दो राय नहीं है कि 2016 के फैसले के बाद काले धन से कारोबार करना कुछ हद तक तो कठिन हुआ है | इसी तरह जीएसटी के  आने से भी व्यापार में पारदर्शिता बढ़ी है | हालाँकि पूरी तरह से काले धन का प्रचलन बंद हो गया , ये सोच लेना तो सच्चाई से आँखें मूंदना होगा लेकिन उस पर नियंत्रण तो हुआ  है | जब रिजर्व बैंक को ये लगा कि 2 हजार का नोट सामान्य चलन से बाहर होकर काले धन वालों की तिजोरियों में कैद हो चुका है तब उसने ये फैसला करने की हिम्मत जुटाई | सरकार भी इस बात से आश्वस्त थी कि इस निर्णय से आम जनता को हलाकान नहीं होना पड़ेगा क्योंकि उसके पास 2 हजार के नोट या तो हैं नहीं और यदि हैं तो न के बराबर होंगे | बहरहाल इस बार चूंकि पर्याप्त समय देने के साथ काफी सरल तरीका रहेगा नोट बदलने का और तब तक 2 हजार का नोट चलन में रहने से उसके अवैध होने का खतरा भी नहीं है ,  इसलिए बैंकों में पिछली बार जैसी भीड़ शायद ही हो | लेकिन इसके बाद की परिस्थिति पर भी विचार करना चाहिए | अर्थात बीते कुछ सालों में जबसे नगदी में लेन देन में निरंतर कमी आ रही है और नई पीढ़ी तेजी से डिजिटल आर्थिक व्यवहार को अपनाती जा रही है तब बड़े नोटों के प्रचलन को भी धीरे – धीरे कम करते हुए बंद करना चाहिए | अमेरिका में सबसे बड़ा नोट 100 डालर का होता है | कहते हैं नोटबंदी की भूमिका में ऐसा ही कुछ करने की सोच थी किन्तु फिर जो फैसला हुआ वह सही होते हुए भी परेशानी का सबब बन गया | अच्छा हुआ सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ने पिछले अनुभव या गलतियों से सबल लेते हुए जनता की असुविधा का ध्यान रखा | ये भी कहा जा सकता है कि इस बार पर्याप्त मात्रा में नए नोट तैयार किये जा चुके होंगे जिससे  नोट बदलने वाले को तत्काल भुगतान किया जा सके | इस बारे में बेहतर होगा कि अगले कदम के तौर पर 500 का नोट भी बंद किया जाए |  ये बात तो हर कोई जानता है कि बड़े नोट घूसखोरी और  भ्रष्टाचार के जरिये काले धन में परिवर्तित होकर चलन से बाहर हो जाते हैं | कम मूल्य की मुद्रा को छिपाने में भी काले धन वाले को परेशानी होगी | इसलिए आधे - अधूरे मन से काम करने के बजाय सरकार को  ठोस निर्णय लेना चाहिए। भ्रष्टाचार हमारे देश की  सबसे बड़ी समस्या है और उसका पोषण काले धन से ही होता है। इसलिए उसकी जड़ें काटने के लिए सबसे सुलभ तरीका बड़े नोटों को बंद करना ही है। रिजर्व बैंक द्वारा गत दिवस उठाया गया कदम समयोचित होने के साथ ही आने वाले चुनावों में काले धन के उपयोग पर लगाम लगाने में सहायक होगा ये उम्मीद की जानी चाहिए। 


-रवीन्द्र वाजपेयी 

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