Tuesday 2 May 2023

तो चुनाव के समय रेवड़ी बांटने की जरूरत नहीं पड़ेगी




अर्थव्यवस्था में रूचि रखने वाले हर महीने की आख़िरी तारीख को जारी होने  वाले जीएसटी की वसूली के आंकड़े का इन्तजार करते हैं | इसका कारण ये है कि इसी आधार पर हमारे देश में उत्पादन और व्यापार दोनों की गतिशीलता का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है | उस दृष्टि से दो दिन पहले समाप्त हुए अप्रैल माह में जीएसटी की जो वसूली हुई उसने अर्थव्यवस्था को लेकर किये जा रहे दावों की अधिकारिक तौर पर पुष्टि कर दी है | गत दिवस प्राप्त जानकारी के अनुसार नए वित्तीय वर्ष के पहले महीने में जीएसटी से सरकारी खजाने में 1.87 लाख करोड़ जमा हुए , जो अब तक की सबसे बड़ी राशि है | बीते मार्च माह में 1.60 लाख करोड़ आये थे जबकि गत वर्ष अप्रैल में जीएसटी वसूली का आंकड़ा 1,67 540 करोड़ रहा था | वैसे ये सही है कि वित्तीय वर्ष के पहले माह में ज्यादा जीएसटी जमा होता है लेकिन जबसे ये कर प्रणाली लागू हुई है तबसे ये पहली बार हुआ है कि उसकी मासिक वसूली का आंकड़ा 1.75 लाख करोड़ के महत्वाकांक्षी शिखर से भी काफी ऊपर निकल गया | हालाँकि आगे के महीनों में भी इतना रहे ये जरूरी नहीं है लेकिन संतोष का विषय है कि उसकी वसूली महीने दर महीने बढ़ती ही जा रही है | जब ये कर प्रणाली लागू हुई तब इसे लेकर पूरे देश में उहापोह की स्थिति थी | व्यापारी और उद्योगपति इसकी सफलता को लेकर आशंकित भी थे और भयभीत भी | और फिर इसे लागू करने में जो व्यावहारिक परेशानियाँ आईं उनकी वजह से मोदी सरकार का ये निर्णय राजनीति के साथ ही व्यापार और उद्योग जगत में भी आलोचना का शिकार हुआ | राहुल गांधी तो अपनी सरकार आने के बाद जीएसटी को रद्द करने जैसी बात भी कह चुके हैं | इसमें दो राय नहीं है कि इस कर प्रणाली को लागू किये जाने के बाद इसकी प्रक्रिया  में इतनी जल्दी – जल्दी बदलाव किये गए कि व्यापारी , उद्योगपति ही नहीं अपितु कर सलाहकार और चार्टर्ड अकाउंटेंट तक परेशान हो गए | लगभग हर माह कोई न कोई नया प्रावधान लागू होने से जीएसटी एक बोझ लगने लगा | लेकिन इसके बाद भी इसकी स्वीकार्यता बढ़ती चली गई और देश ने इसे स्वीकार कर ही लिया | यद्यपि आज भी इसमें अनेक विसंगतियां हैं | सबसे बड़ी समस्या राज्यों और केंद्र के बीच विश्वास का संकट है | राज्यों की शिकायत है कि इस कर प्रणाली को लागू करते समय उन्हें मिलने वाली क्षतिपूर्ति की राशि समय पर न मिलने से उनका अर्थतन्त्र गड़बड़ा गया | पेट्रोल – डीजल पर जीएसटी लागू न कर पाने के लिए भी राज्यों में आम सहमति नहीं बन पाना है | इसके साथ ही एक समस्या करों के तीन स्तर होने की भी है | ये देखते हुए अब जबकि जीएसटी की वसूली निरंतर बढ़ती जा रही है तब यूक्रेन संकट के कारण कच्चे तेल के बाजार में अनिश्चितता के चलते पेट्रोल – डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना संभव न हो सके लेकिन केंद्र सरकार इतना तो कर ही सकती है कि करों के तीन स्तरों को घटाकर दो कर दे और अधिकतम कर किसी भी स्थिति में 15 फीसदी से ज्यादा न हो | हालाँकि केंद्र और राज्यों की सरकार में बैठे सत्ताधीश और उनके सलाहकार शायद जीएसटी की दरों में कटौती के पक्षधर न हों लेकिन दुनिया के जिन देशों में यह कर प्रणाली लागू है , उनमें से अधिकतर में एक तो अधिकतम दर 12 प्रतिशत है और उसके अलावा केवल एक ही स्तर है | हो सकता है प्रधानमंत्री भविष्य में ऐसा कोई कदम उठायें | देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के संकेत हर तरफ से मिल रहे हैं | निर्यात का आंकड़ा भी 2021-22 के  वित्तीय वर्ष की तुलना में 50  फीसदी बढ़ गया है | प्रत्यक्ष कर की वसूली भी बड़ी है | देश रक्षा उत्पादनों के निर्यात के क्षेत्र में आगे आने  लगा है | यही सब देखते हुए विदेशी निवेशक भारत की तरफ आकर्षित हुए हैं जिससे विदेशी मुद्रा का भण्डार अपने उच्चतम स्तर पर आ चुका है | ये स्थितियां निश्चित रूप से आश्वस्त करती हैं | लेकिन इसका अनुभव देश के आम नागरिक को तब तक नहीं होगा जब तक देश की आर्थिक प्रगति उसकी निजी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान नहीं करती | और जीएसटी वह माध्यम है जिसके जरिये केंद्र और राज्य चाह लें तो आम उपभोक्ता को सीधे राहत दी जा सकती  है | इस बारे में केंद्र सरकार में बैठी भाजपा को चाहिए वह जीएसटी काउंसिल  में अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए उसे द्विस्तरीय बनाये और दरों में भी कमी करने का निर्णय करवाए | चूंकि काउंसिल में भाजपा या उसके समर्थित मुख्यमंत्री बहुमत में हैं इसलिए वे ऐसा करवाने में सक्षम हैं | 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व ही यदि प्रधानमंत्री इस आशय का फैसला करवा सकें तो फिर उन्हें और उनकी पार्टी को चुनाव  के समय रेवड़ी बांटने की जरूरत नहीं पड़ेगी |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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