Thursday 4 May 2023

लौटकर डाक्टर काम पर आये लेकिन ...



म.प्र के सरकारी डाक्टर पूर्व घोषणानुसार गत दिवस सुबह से हड़ताल पर चले गए थे | इसकी वजह से प्रदेश में सरकारी चिकित्सालयों में स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गईं जिसके कारण  एक मरीज की जान जाने की भी खबर है | हड़ताल के पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनसे अपना निर्णय बदलने की अपील करते हुए कहा था कि ज्यादातर मांगें चूँकि पूरी हो चुकी थीं इसलिए वे चिकित्सा सेवाओं को ठप करने जैसा कदम न उठायें | लेकिन चिकित्सक अपनी बात पर अड़े रहे और हड़ताल शुरू हो गयी किन्तु इसी दौरान उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए हड़ताल को गैर कानूनी घोषित कर दिया | इस फैसले ने हड़ताली डाक्टर्स के संगठन को निहत्था कर दिया क्योंकि सरकार से लड़ना तो आसान था किन्तु न्यायपालिका से टकराने की हिम्मत न होने के कारण अंततः देर रात उन्हें हड़ताल वापस लेना पड़ी | उनकी मांगों के औचित्य और उन पर सरकार के रवैये से अलग हटकर देखें तो डाक्टरों की हड़ताल सुनने में अटपटा लगता है | अनेक डाक्टरों के यहाँ  किसी दवा कम्पनी द्वारा प्रदर्शित पोस्टर में  लिखा होता है कि हमने ईश्वर में विश्वास नहीं खोया अपितु उसे डाक्टर में स्थानांतरित कर दिया है | इसका आशय है कि पीड़ित व्यक्ति जिस तरह इस विश्वास के साथ मंदिर में दर्शन करने आता है कि भगवान उसकी मनोकामना दूर कर देंगे , ठीक उसी प्रकार  डाक्टर के पास आते समय उसके मन में ये भरोसा होता है कि वो उनकी पीड़ा दूर कर उसे राहत प्रदान करेंगे | ऐसे में जब डाक्टरों की सेवाएं न मिलें  तब न  सिर्फ मरीज अपितु उसके परिजन भी परेशान और निराश हो जाते हैं | कल हुई हड़ताल के दौरान भी ऐसी अनेक घटनाएँ हें जहाँ इलाज के अभाव में लोग भटके | हालाँकि आजकल जगह – जगह निजी चिकित्सालय खुल गए हैं किन्तु उनमें इलाज करवाने की हैसियत न होने पर ही तो इंसान सरकारी अस्पतालों की शरण में आता है | यहाँ उसे समुचित इलाज अथवा सुविधाएं मिलती ही हों ये सोचना तो अतिशयोक्तिपूर्ण होगा किन्तु कड़वी सच्चाई यही है कि देश के आम जन के लिए सरकारी अस्पताल जाना जरूरी भी है और मजबूरी भी | इस बारे में ये कहना पर्याप्त नहीं है कि चूंकि इस समय महामारी की वापसी का खतरा दोबारा पैदा होने के अलावा मौसमी बीमारियाँ भी पैर पसार रही हैं इसलिए  डाक्टरों को हड़ताल से बचना चाहिए | सरकारी अस्पताल चाहे वह देश की राजधानी दिल्ली का एम्स हो या किसी गाँव का प्राथमिक चिकित्सा केंद्र , वहां मरीजों की भीड़ देखकर ही उनकी अहमियत और जरूरत का अंदाज लग जाता है | ऐसे में एक दिन तो क्या एक घंटे भी यदि डाक्टर या अस्पताल के अन्य कर्मचारी काम नहीं करते तो मरीज बेहाल हो जाते हैं | हालाँकि इन सबसे अलग ये बात भी विचारणीय है कि सरकारी डाक्टरों को भी आखिरकार संगठन बनाने और अपनी मागों के लिए आन्दोलन का उतना ही अधिकार है जितना अन्य शासकीय कर्मचारियों को | लेकिन देखने वाली बात ये है कि जिस व्यक्ति के पास इंसानी ज़िन्दगी की रक्षा का दायित्व हो , वह उससे कैसे पीछे हट सकता है ?  शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत किसी चिकित्सक के पंजीयन के समय वह जो शपथ लेता है उसमें हड़ताल की कोई गुंजाईश ही नहीं है | लेकिन हमारे देश में नैतिकता की अपेक्षा केवल दूसरों से करने का चलन है | हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई . चंद्रचूड़ ने वकीलों के हड़ताल करने पर ऐतराज जताते हुए कहा था कि इससे न्यायप्रक्रिया बाधित होती है | इसी तरह की बातें तब भी सुनने में आती हैं जब किसी भी आवश्यक सेवा से जुड़े अमले द्वारा हड़ताल या काम बंद किया जाता है | वैसे इस मामले में सरकार भी कम दोषी नहीं होती जो समस्या को हल किये जाने के बजाय उसे टालती रहती है | ऐसा केवल म.प्र के डाक्टरों के मामले में हुआ हो ऐसा नहीं है बल्कि पूरे देश में आधे से ज्यादा कर्मचारी आन्दोलन होते ही इसीलिये हैं क्योंकि उनकी मांगों पर समय रहते विचार नहीं होता | हालाँकि पूरी गलती सरकार की भी नहीं रहती क्योंकि कर्मचारी संगठन भी कई बार हठधर्मिता दिखाते हैं | और पूरा देश जिस संसद से चलता है जब वहां भी पूरे के पूरे सत्र में काम नहीं होता तब बाकी लोगों को क्या कहा जाये ? आखिर लोग भी तो अपने नेताओं से ही प्रेरणा लेते हैं | ऐसे में जब कोई दूसरा काम नहीं करता तब हमें होने वाली तकलीफ के समय इस बात को याद करना चाहिए कि हमारे काम बंद करने पर औरों को क्या दिक्कतें होती हैं | उच्च न्यायालय के कड़े आदेश की वजह से भले ही डाक्टरों ने हड़ताल वापस ले ली हो किन्तु न उनकी समस्या हल हुई और न ही इस बात की गारंटी है कि वे दोबारा हड़ताल पर नहीं जायेंगे | सरकारी नौकरी वाले डाक्टर तो चाहे जब सामूहिक इस्तीफे का दबाव डालकर सरकार को झुका लेते हैं | ये सब देखते हुए समय आ गया है जब इस तरह की समस्याओं के समुचित स्थायी हल पर ध्यान दिया जाये क्योंकि आज के दौर में जब समूचा परिदृश्य विकासोन्मुखी हो गया है तब चाहे जब जरूरी सेवाओं का अवरुद्ध हो जाना हमारी प्रगति में बाधक बनता है | और फिर जिस पेशे का सीधा रिश्ता मानवीय ज़िन्दगी से जुड़ा हो उसे उसका दायित्व समझाना पड़े तो ये अच्छी स्थिति नहीं है | वैसे कहें भले न किन्तु हड़ताल पर बैठे डाक्टर भी जब अस्पताल से बिना इलाज लौटते बेहाल मरीज को देखते होंगे तब अपराधबोध तो उन्हें भी परेशान करता ही होगा | बेहतर हो वे भी कोई दूसरा रास्ता तलाशें और सरकार भी इस बारे में सतर्क रहे कि ऐसी स्थिति दोबारा उत्पन्न न हो |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


No comments:

Post a Comment