Wednesday 24 May 2023

काश ,नए प्रशासक जनता के चेहरों पर मुस्कान ला सकें



संघ लोकसेवा आयोग के परीक्षा परिणाम गत दिवस घोषित हो गए | इसमें प्रथम चार स्थानों पर लड़कियां रहीं | 54 अभ्यर्थी हिंदी माध्यम से इस प्रतियोगिता में कामयाब रहे | ये भी देखने वाली बात है कि कला संकाय के अंतर्गत आने वाले विषयों को लेकर भी बड़ी संख्या में प्रतिभागी सफल हुए जिनमें हिंदी साहित्य भी है | अन्यथा इस परीक्षा पर तकनीकी विषय के विद्यार्थियों का वर्चस्व होता जा रहा है | एक बात और भी प्रशंसनीय है कि अब इस परीक्षा में उत्तीर्ण  होने वाले लड़के – लड़कियाँ  महानगरों और संपन्न परिवारों से ही नहीं अपितु छोटे – छोटे शहरों और बेहद साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं | ये चयनित उम्मीदवार  देश की प्रशासनिक व्यवस्था संचालित करते हैं जिन्हें नौकरशाह कहा जाता है | ब्रिटिश सत्ता के ज़माने में सिविल सर्विसेस का जो ढांचा खड़ा किया गया था वही  इस परीक्षा के माध्यम से जारी है | विदेश सेवा , प्रशासन , पुलिस , रेलवे , राजस्व , संचार , वन और सूचना जैसे विभागों के अधिकारी इसी परीक्षा के जरिये चुने जाते हैं | परीक्षा में हासिल अंकों के आधार पर प्रावीण्य सूची तैयार होती है और उसी के अनुसार  अभ्यर्थी की पसंद का विभाग और राज्य उसे दिया जाता है | हालाँकि सभी सेवाएं अपने आप में महत्वपूर्ण हैं  किन्तु विदेश सेवा के आकर्षण के बावजूद सबसे ज्यादा उम्मीदवार प्रशासन में जाना चाहते हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा में कलेक्टर ( आई.ए.एस )कहा जाता है क्योंकि इस सेवा में आने वाले अधिकारी ही अंततः देश के सबसे बड़े नौकरशाह अर्थात केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव तक जा सकते हैं | दूसरा आकर्षण पुलिस सेवा ( आईपीएस ) का होता है | हालाँकि अनेक सफल उम्मीदवार रेलवे और राजस्व जैसे विभागों को भी अपनी पसंद बनाते हैं | लेकिन मुख्य आकर्षण आज भी आईएएस और आईपीएस का ही है | इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि इन्हीं दो विभागों के अधिकारियों का आम जनता के साथ ही राजनेताओं से सीधा सम्बन्ध होता है | इसी वजह से ये सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं | उदाहरण के लिए अनेक केन्द्रीय विभागों के शीर्ष अधिकारी शहर में  आते और चले जाते हैं किन्तु उनको सीमित लोग ही जानते हैं किन्तु जिले का कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक अपनी नियुक्ति होने से स्थानान्तरण तक खबरों में बना रहता है इसी कारण से आजकल आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों से निकले मेधावी छात्र तक कलेक्टर और एस.पी बनना चाहते हैं | गत  दिवस जो नतीजे आये उनमें भी बड़ी संख्या इंजीनियरों की है। चूंकि प्रशासन और पुलिस विभाग  में तकनीकी जानकारी आवश्यक होती जा रही है इसलिए इस विधा में शिक्षित विद्यार्थियों का चयन किया जाता है | लेकिन इसकी वजह से कला संकाय से जुड़े विषयों के अभ्यर्थी पिछड़ जाते  हैं | ऐसा ही कुछ अंग्रेजी माध्यम में नहीं पढ़े विद्यार्थियों के साथ भी होता है | लेकिन इस वर्ष जिस तरह से आधा सैकड़ा प्रतियोगी हिन्दी माध्यम से सफल हुए वह शुभ संकेत है | और लगभग 34 फीसदी बेटियों का चयन आधी आबादी की देश के प्रशासनिक व्यवस्था में सक्रिय भूमिका का उदाहरण  है। आजकल कोचिंग सुविधा के कारण इस परीक्षा में सफल होने के लिए पेशेवर प्रशिक्षकों का मार्गदर्शन भी मिलने लगा है जिसकी मदद से अनेक ऐसे अभ्यर्थी भी सफल होने लगे हैं जो इस परीक्षा को हौवा मानकर इससे दूर रहा करते थे।लेकिन इस सबसे अलग हटकर देखें तो संघ लोकसेवा आयोग की इस  परीक्षा में सफलता अर्जित करने वाले देश के मेधावी युवा - युवतियां जब प्रशासनिक व्यवस्था का अंग बनने के बाद उसकी बुराइयों में लिप्त हो जाते हैं तब चिंता होती है। हालांकि आज भी ऐसे अनेक युवा अधिकारी हैं जो अपनी ईमानदारी , कार्यकुशलता और संवेदनशीलता के कारण आम जनता के चहेते बन जाते हैं । किसी राजनेता के दबाव के चलते इनका स्थानांतरण किए जाने पर जनता द्वारा सरकार के विरुद्ध  खड़े हो जाने  के उदाहरण भी देखने मिले हैं । लेकिन ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है। वरना आजकल तो महिला प्रशासनिक अधिकारी तक जिस बड़ी संख्या  में   भ्रष्टाचार करते हुए पकड़ी जा रही हैं वह देखते हुए प्रशासनिक सेवाओं का विकृत पहलू भी उजागर हो रहा है। सवाल ये भी है कि कठोर परिश्रम से अर्जित मान - सम्मान  वाले इस पेशे में आने के बाद प्रशासनिक अधिकारी भ्रष्ट होता है तो उसका कारण उसकी लालची प्रवृत्ति है या फिर सरकारी तन्त्र में व्याप्त कार्य संस्कृति जिसके चलते वह अपनी  शिक्षा और योग्यता से उत्पन्न गौरव को भूलकर किसी भी तरह से पैसा कमाने में जुट जाता है। हालांकि ये कहना गलत न होगा कि इसके लिए सत्ता में बैठे नेतागण और हमारे देश की चुनाव प्रणाली भी कम जिम्मेदार नहीं है जो भ्रष्टाचार की जननी है किंतु यदि कोई अधिकारी भ्रष्टाचार और सत्ताधीशों की खुशामद करना छोड़ दे तो उसके सामने  सिवाय स्थानांतरण के और कोई दिक्कत नहीं आती। प्रशासनिक सेवा में अनेक अधिकारी हैं जिन्होंने अपने सेवाकाल में अल्पकाल  छोड़कर फील्ड पोस्टिंग के बजाय सचिवालय में काम करना पसंद किया। आशय साफ है कि मलाईदार विभाग नामक जो विशेषण मंत्री से शुरू होता है वह उच्च अधिकारी से लेकर निचले स्तर तक बदस्तूर कायम है। कलेक्टर एक जिले का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी है। यही बात पुलिस अधीक्षक के साथ है किंतु उनकी राजनीतिक पहुंच इस बात से साबित होती है कि वे किस जिले में पदस्थ किए गए। इसी तरह सचिव भी किस विभाग का है ये महत्वपूर्ण है। इसके चलते समूची प्रशासनिक व्यवस्था का राजनीतिकरण हो गया है । और ज्यादातर अधिकारी किसी नेता या राजनीतिक दल के करीबी माने जाते हैं । इस तरह की बातें सुनाई देने के बाद इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफल प्रतियोगियों के प्रति जो शुरुआती सम्मान उत्पन्न होता है वह  बाद में घटने लगता है। बेहतर हो संघ लोकसेवा आयोग  इस परीक्षा रूपी बाधा को पार करने वाले युवा इस छवि को बदलने की प्रतिबद्धता भी दिखाएं। उनमें से अधिकतर की प्रतिक्रिया यही है कि वे सिविल सर्वेंट बनकर देश की सेवा कर सकेंगे किंतु यदि वे सरकारी दफ़्तर में आने वाले जरूरतमंदों के चेहरों पर मुस्कान ला सकें और बिना सौजन्य भेंट के लोगों का सही काम हो जाए तभी उनकी  योग्यता सही मायनों में प्रमाणित हो सकेगी।

- रवीन्द्र वाजपेयी 



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