Saturday 6 May 2023

चाचा ने तो चाल चल दी , अब भतीजे का इंतजार



एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) के अध्यक्ष शरद पवार ने चार दिन तक अनिश्चितता बनाये रखने के बाद अध्यक्ष पद से अपना त्यागपत्र वापस ले लिया | हालाँकि उनके द्वारा पार्टी संगठन में दायित्वों का विकेंद्रीकरण किये जाने के साथ ही नए नेताओं का सृजन करने की बात भी कही गयी है | लेकिन उनके इस्तीफा देने और वापस लेने के बीच के चार दिन जिस तरह का माहौल पार्टी  के भीतर बनाकर रखा गया उससे एक बात साफ़ है कि श्री पवार मजबूत की बजाय मजबूर नेता बनकर रह गए हैं | उनके द्वारा जिन कारणों से इस्तीफा दिया गया था उनमें एक था उनका स्वास्थ्य और दूसरा उत्तराधिकारी का चयन | जब इस्तीफा वापस लेने की बात चली  तब उनकी धर्मपत्नी और भतीजे अजीत पवार दोनों ने बड़े ही विश्वास के साथ ये दावा किया  था कि इस बार वे अपने निर्णय पर अडिग रहेंगे | लेकिन वे दावे गलत साबित हुए और मान -  मनौवल के बाद आखिरकार श्री पवार ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के अनुरोध के नाम पर अध्यक्ष बने रहने की मनुहार मान ली | हालाँकि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी एनसीपी प्रमुख से अध्यक्ष पद न छोड़ने की अपील की थी क्योंकि भाजपा के विरुद्ध विपक्ष का मोर्चा बनाने के लिए उन जैसे वरिष्ट नेता की जरूरत होगी | इस बात को लेकर भी विपक्षी नेताओं में खलबली थी कि श्री पवार यदि पार्टी प्रमुख पद से हटे तो एनसीपी में बिखराव रोकना मुश्किल हो जायेगा | विशेष रूप से अजीत पवार के भाजपा के साथ जाकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन जाने की अटकलों से शिवसेना और कांग्रेस ही नहीं ,  बाकी विपक्षी दल भी घबराहट में थे | जब श्री पवार ने इस्तीफ़ा दिया तब ये आकलन लगाया गया कि वे अजीत के भाजपा के साथ जुड़ने का दोष अपने ऊपर नहीं लेना चाहते। लेकिन उनको ये लग गया कि  उनके हटने के बाद भले ही वे अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी की कमान सौंप दें किंतु  भतीजा उस फैसले को स्वीकार नहीं करेगा और उसके द्वारा खुद मुख्तियारी का ऐलान किए जाने से पार्टी छिन्न - भिन्न हो जायेगी। पार्टी में प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे अनेक नेता हैं जो श्री पवार के साथ ही अजीत के साथ भी अंतरंगता रखते हैं। श्री पवार के हट जाने पर ये तबका सुप्रिया के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता।और फिर वे ये भी जानते हैं कि यदि वे खुद होकर अजीत को उपेक्षित करेंगे तब फिर उसके पार्टी छोड़ने का रास्ता साफ हो जाएगा। ऐसे में वे उसको भी साधे रखना चाहते थे। बहरहाल उनके इस्तीफा देने के बाद तक तो ये माना जा रहा था कि श्री पवार  नए नेतृत्व को पार्टी की  बागडोर सौंपकर आराम करना चाहेंगे। ये भी चर्चा थी कि भतीजे को महाराष्ट्र और बेटी को राष्ट्रीय राजनीति का जिम्मा सौंपकर वे मार्गदर्शक की भूमिका में  आ जाएंगे । लेकिन महज चार दिन में ही उनको ये एहसास हो गया कि बात उतनी सरल नहीं है जितनी वे समझ रहे थे। और ये भी कि उनके पद छोड़ने के बाद जो नेता उनके अगल - बगल नजर आते थे वे सब अजीत के पाले में खड़े हो जाएंगे क्योंकि सुप्रिया से उनका संवाद उतना सहज नहीं है। एक बात और ये भी श्री पवार समझ गए कि भाजपा के साथ जाने पर जो कुछ मिलेगा वह अजीत के खाते में होगा। और एक बार भतीजा  स्वतंत्र हुआ तो फिर पार्टी पर चाचा का नियंत्रण कमजोर होते देर नहीं लगेगी। आखिरी समय में समाजवादी पार्टी के संस्थापक  मुलायम सिंह यादव की जो उपेक्षा हुई उससे भी श्री पवार वाकिफ थे। हालांकि अपनी आत्मकथा के दूसरे भाग में उन्होंने जिस तरह से उद्धव ठाकरे की प्रशासनिक और संगठनात्मक क्षमता पर सवाल उठाने के साथ ही भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री और एकनाथ शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की प्रशंसा की उससे ये संकेत मिला कि अजीत के भाजपा प्रवेश की पटकथा उन्होंने तैयार कर दी है । लेकिन राजनीतिक वानप्रस्थ की ओर चार कदम बढ़ाने के बाद वे पुनः लौट आए । हालांकि न तो उनका पहला फैसला चौंकाने वाला था और न ही बाद वाला। सही मायनों में अब ये लगने लगा है कि श्री पवार जो करना चाह रहे वह हो नहीं पा रहा और इसीलिए वे इस बात को लेकर भयभीत हो चले हैं कि पार्टी की कमान छोड़ने के बाद उनकी कोई नहीं सुनेगा और अजीत सर्वशक्तिमान हो जायेंगे। बीते कुछ दिन में ही उनको ये समझ में आ गया कि वे चाहकर भी बेटी सुप्रिया को उत्तराधिकारी नहीं बना पाएंगे और एनसीपी का बहुमत भतीजे के साथ खड़ा हो जायेगा जिनकी संगठन के भीतर तक पहुंच है। 2019 में जब अजीत ने देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाई तब जिस मजबूती के साथ श्री पवार ने उस बगावत को विफल करते हुए उनकी घर वापसी करवाई और फिर कांग्रेस - शिवसेना के बीच बेमेल गठबंधन करवाकर अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया उसके बाद वे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के सबसे कद्दावर नेता के तौर पर स्थापित हो चले थे। उनकी वजन दारी का सबसे ताजा प्रमाण हैं वीर सावरकर मुद्दे पर  राहुल गांधी को चुप रहने मजबूर कर देना और अदानी मुद्दे पर कांग्रेस की जेपीसी की मांग को निरर्थक बताने के बाद गौतम अदानी से लंबी मुलाकात करना । लोग तो ये कहने लगे थे कि उसी के बाद श्री पवार भाजपा के करीब जाते दिखे । लेकिन गत दिवस उन्होंने जिस तरह अपने कदम पीछे खींचे उससे लगा कि उनका आत्मविश्वास कहीं न कहीं डगमगाया है। देखना ये है कि चाचा के इस पैंतरे का भतीजा क्या जवाब देता है?

- रवीन्द्र वाजपेयी 


No comments:

Post a Comment