कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के लिए उसके पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं की गोलबंदी होने की बात पहले ही सामने आ चुकी है। लेकिन अब जो सुनने मिल रहा है उससे ये साफ है कि आगामी चुनावों में मुसलमान भाजपा को हराने के लिए जो भी विकल्प नजर आएगा उसके साथ खड़े हो जायेंगे | प.बंगाल के पिछले चुनाव में इसका प्रमाण देखा जा चुका है | कर्नाटक के ताजा चुनाव परिणाम के बाद मुस्लिम समुदाय द्वारा कांग्रेस को जिताने की कीमत के तौर पर उपमुख्यमंत्री पद के साथ पांच महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री पद मांगे जा रहे हैं | मुस्लिम वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शफ़ी सादी ने कहा है कि कांग्रेस को पहले ही बता दिया गया था कि उपमुख्यमंत्री मुस्लिम होना चाहिए | चूंकि एक समुदाय के तौर पर हमने कांग्रेस की बहुत मदद की है इसलिए समय आ गया है जब बदले में हमको भी कुछ मिले | सादी ने गृह , राजस्व , शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मंत्रालय मांगे हैं | उनके अनुसार इन सभी को लागू करने हेतु सुन्नी उलेमा बोर्ड में आपातकालीन बैठक भी की जा चुकी है | उनने ये भी कहा कि हमारी सहायता के लिए धन्यवाद देना कांग्रेस की जिम्मेदारी है | इस मांग के सामने आते ही कर्नाटक ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति में भी मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा चुनाव जिताने के एवज में सौदेबाजी का चलन सामने आने के साथ ही कांग्रेस पर ये स्पष्ट करने का दबाव आ गया है कि क्या उसने मुस्लिम मतों के बदले उपमुख्यमंत्री पद का वायदा किया था ? ये बात भी स्पष्ट हो गयी कि मुस्लिमों के समर्थन का आधार अब केवल भाजपा की पराजय को सुनिश्चित करना होगा | बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटें जीतकर तेजस्वी यादव का खेल बिगाड़ दिया था | इसी तरह उ.प्र में भी ओवैसी ने मुस्लिम मतों में विभाजन करवाया जिससे सपा को नुकसान हुआ | उसके बाद से ही ओवैसी को भाजपा की बी टीम प्रचारित किया जाने लगा | कर्नाटक के चुनाव ने ओवैसी की उस योजना को भी धक्का पहुँचाया है जिसके अंतर्गत वे मुसलमानों को अपने झंडे तले इकट्ठा करते हुए उनको एक राजनीतिक ताकत के तौर पर स्थापित करना चाह रहे थे | तेलंगाना में भी विधानसभा चुनाव निकट हैं जो ओवैसी का घरेलू मैदान है | वहां सत्तारूढ़ बीआरएस और उसके मुखिया के. सी. राव सबसे मजबूत माने जा रहे हैं । वहीं कांग्रेस के लगातार कमजोर होने से भाजपा ने विकल्प के तौर पर अपने पैर जमाये हैं | ऐसे में तेलंगाना का मुसलमान भाजपा को रोकने के लिए श्री राव को समर्थन देगा या कांग्रेस को , ये बड़ा सवाल है | ऐसे में ओवैसी यदि तेलंगाना में मुस्लिम समुदाय के सरदार नहीं बन पाए तब उनका क्या होगा ये चिंता भी उनको करनी होगी | बहरहाल कर्नाटक के मुस्लिम समुदाय द्वारा महज 9 विधायकों के साथ ही उपमुख्यमंत्री और पांच प्रमुख विभागों के मंत्री मांगने की जो हिम्मत की गई , उसे कांग्रेस किस सीमा तक स्वीकार करेगी ये देखने वाली बात होगी क्योंकि यदि वह वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष की मांगों को मान लेती है तब ये कहना न गलत नहीं होगा कि साम्प्रदायिकता को दिन रात गालियाँ देने वाली पार्टी ने सत्ता हासिल करने के लिए मुल्ला – मौलवियों के साथ गुपचुप समझौता किया था | अभी तक शफी साद द्वारा की गयी मांग के बारे में कांग्रेस के किसी नेता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है । लेकिन मुस्लिम पक्ष ने जिस तरह कहा है कि चुनाव के पहले ही मुस्लिम उपमुख्यमंत्री की बात हो चुकी थी उससे लगता है कि अब वे भाजपा को हरवाने से ही संतुष्ट नहीं होने वाले | अपितु उनको समर्थन के बदले उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी भी चाहिए | स्मरणीय है सपा के संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव के दाहिने हाथ कहे जाने वाले आज़म खान को लगता रहा कि मुलायम सिंह उनको उत्तराधिकारी बनायेंगे किन्तु जब उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश को मुख्यमंत्री बनवा दिया तभी से आज़म खान उखड़े – उखड़े रहने लगे | लेकिन कर्नाटक के नतीजे के बाद जिस तरह से मुस्लिम उलेमाओं ने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू किया उससे राजनीति की नई सूरत सामने आई है । जिस तरह से शफी साद ने कांग्रेस से धन्यवाद देने के बात कही उससे साफ है कि चुनाव जीतने कांग्रेस ने मुस्लिमों को सत्ता में हिस्सेदारी का वायदा किया था। मुस्लिम नेता का ये कहना मायने रखता है कि 136 में से 72 यानि आधे से ज्यादा सीटें कांग्रेस मुस्लिम समर्थन से जीती। गौरतलब है कर्नाटक में भाजपा का मत प्रतिशत यथावत रहा किंतु जनता दल (एस) के 5 फीसदी मत कांग्रेस के खाते में चले जाने से उसे स्पष्ट बहुमत मिल गया। दरअसल उसके नेता कुमारस्वामी का रिकॉर्ड देखते हुए मुसलमानों को लगा कि त्रिशंकु की स्थिति में वे भाजपा के साथ जा सकते हैं। इसीलिए उन्होंने जनता दल (एस) से किनारा करते हुए कांग्रेस की झोली भर दी। बहरहाल , कर्नाटक की राजनीति में मुस्लिम समीकरण का ये उभार कांग्रेस ही नहीं बाकी गैर भाजपा पार्टियों के लिए भी सिरदर्द बन सकता है क्योंकि अब मुसलमान वोट देने के बाद सत्ता में हिस्सेदारी भी मांगने लगे हैं । शफी साद ने कहा भी है कि मुसलमानों के लिए 30 सीटें कांग्रेस से मांगी थी किंतु 15 मिलीं और उनमें से 9 जीतकर आए। कर्नाटक के कुछ उलेमा तो मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग भी करने लगे हैं , जो दूरगामी रणनीति का हिस्सा है। स्मरणीय है आजादी के कुछ दशक पहले अंग्रेजों की शह पर मो.अली जिन्ना ने भी मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग बुलंद कर पाकिस्तान के निर्माण की बुनियाद रखी थी। ये देखते हुए सवाल ये है कि आने वाले समय में अपने समर्थन के बदले मुस्लिम समुदाय केंद्र में उपप्रधानमंत्री के अलावा रक्षा , गृह और विदेश विभाग में मुस्लिम मंत्री की मांग करेगा तब कांग्रेस या बाकी धर्मनिरपेक्ष दल क्या उसे मंजूर करेंगे ?
- रवीन्द्र वाजपेयी
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