Monday 1 May 2023

आम आदमी पार्टी भी चल पड़ी उसे ढर्रे पर



दिल्ली में शराब घोटाले के कारण विवाद में फंसी आम आदमी पार्टी की छवि पर एक और संकट पैदा हो गया है | अपने गठन के समय पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि वे सेवा के लिए राजनीति में आये हैं और आम आदमी पार्टी अपने नाम को सार्थक  साबित करते हुए सत्ता के सभी सुखों से दूर रहेगी | उनका एक पुराना साक्षात्कार इन दिनों काफी प्रसारित हो रहा है जिसमें वे ये कहते सुने जा रहे हैं कि सत्ता में आने पर सरकारी वाहन और बंगला आदि का उपयोग नहीं करेंगे | जब उनसे पूछा गया कि सरकारी शिष्टाचार और  सुरक्षा के तहत उन्हें ये सुविधाएं मिलेंगी तब श्री केजरीवाल का जवाब था कि जब वे लेंगे ही नहीं तो ये सवाल कहाँ पैदा होगा ? अन्ना हजारे के लोकपाल आन्दोलन के गर्भ से उत्पन्न आम आदमी पार्टी उस समय राष्ट्रीय राजनीति में ताजी हवा खुशनुमा झोके के समान थी | उसकी बातों और वायदों में आम जनता के कल्याण की भावना झलकती थी | श्री  केजरीवाल के साथ ऐसे चमकते व्यक्ति जुड़े  जिन्होंने जनता को इस बात के लिए आश्वस्त किया कि वे राजनीति के प्रचलित ढर्रे से हटकर बिना किसी स्वार्थ के  सेवा करेंगे |  इसका एहसास भी हुआ जब  केजरीवाल जी मेट्रो में बैठकर शपथ लेने गए | कुछ दिनों तक ये लगा कि ये वो पार्टी है जो अन्ना हजारे की उम्मीदों को साकार कर दिखायेगी | मुफ्त बिजली ,पानी के साथ ही मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी विद्यालयों के उन्नयन जैसे कार्यों से केजरीवाल सरकार ने दिल्ली ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी अपने लिए आकर्षण पैदा किया | लेकिन इसके साथ ही उसके भीतर  खींचतान  होने लगी | मुद्दा , वही जिसके चलते आजादी के बाद आचार्य नरेंद्र देव , डॉ. लोहिया , जयप्रकाश नारायण और  आचार्य कृपलानी  जैसे समर्पित गांधीवादी कांग्रेस छोडकर बाहर आ गये थे | आम आदमी पार्टी के संस्थापक और उसे एक करोड़ का चेक बतौर पहला चन्दा वाले शांति भूषण , उनके पुत्र प्रशांत भूषण , प्रख्यात कवि कुमार विश्वास , चुनाव विश्लेषक और सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव और  प्रोफे. आनंद कुमार जैसे नींव के पत्थर धीरे – धीरे या तो बाहर  आ गए या बाहर कर दिए गए | टीवी पत्रकार आशुतोष  भी कुछ समय के लिए इस पार्टी में रहने के बाद मोहभंग होने पर अपने पेशे में लौट आये | कुमार विश्वास और योगेन्द्र यादव ने तो सार्वजनिक तौर पर अनेक अवसरों पर उन विकृतियों को उजागर किया जिनकी वजह से वे पार्टी छोड़ने बाध्य हुए | उनका खुला आरोप था कि सत्ता का सान्निध्य  मिलते ही श्री केजरीवाल और उनके  निकटस्थ उन आदर्शों और सिद्धांतों को भुला बैठे जिनके आधार पर वह पार्टी बनाई गयी थी | राजनीति में मतभेदों के चलते इस तरह के आरोप लगना चूँकि नया नहीं था,  लिहाजा बात आई - गई  हो गई | और फिर दिल्ली की जनता ने लगातार दो बार भारी बहुमत के साथ सत्ता सौंपकर आलोचकों को निराश कर दिया | रही सही कसर पूरी कर दी पंजाब में आम आदमी पार्टी के  सत्ता में धमाकेदार प्रवेश ने | अब तो वह राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत में भी आ चुकी है | और श्री केजरीवाल का नाम भावी प्रधानमंत्री के लिए  सर्वेक्षण में शामिल होने लगा है | अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी हाथ आजमाने के हौसले  से भरपूर है | लेकिन एक तरफ तो उसके आकार और  प्रभावक्षेत्र का विस्तार होता दिख रहा है वहीं  दूसरी तरफ वह उन समस्त बुराइयों का शिकार होती जा रही है जो अन्य राजनीतिक दलों के साथ स्थायी तौर पर जुड़ चुकी हैं | इसी के साथ उस पर वे सभी आरोप चस्पा होने लगे जिनकी वजह से राजनीति जैसा सम्मानजनक क्षेत्र और नेता संबोधन बदनाम होकर रह गया | केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री लम्बे समय से जेल में हैं | उसके बाद मार्च के अंतिम दिनों में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया भी शराब घोटाले में गिरफ्तार हो गए | दोनों की जमानत अर्जियां आये दिन रद्द हो रही हैं | इस घोटाले के दाग मुख्यमंत्री के दामन पर भी हैं | लेकिन जिस मामले को लेकर श्री केजरीवाल इन दिनों साख के संकट से गुजर रहे हैं वह है उनके सरकारी निवास के पुनरुद्धार पर 45 करोड़ रूपये खर्च किया जाना | जो  जानकारी सरकारी तौर पर सामने आई है उसके अनुसार अंग्रेजों के ज़माने के बने इस बंगले की  मरम्मत की जरूरत महसूस की गई | लेकिन उससे बढ़कर  शाही सजावट पर पानी की तरह पैसा खर्च करने के बारे में जैसे ही जानकारी आई तो आम आदमी पार्टी और श्री केजरीवाल दोनों आलोचना के घेरे में आ गए | बजाय इसके लिए अपराधबोध से ग्रसित होने के पार्टी के एक प्रवक्ता ने ये कह दिया कि प्रधानमंत्री के बंगले पर तो उससे कई गुना ज्यादा खर्च हुआ | लेकिन ये सफाई संतोषजनक नहीं है | सामान्य तौर पर देखें तो देश भर में मुख्यमंत्रियों सहित उनके मंत्रियों के बंगलों पर बेतहाशा खर्च होता रहा है | इसे लेकर बवाल और सवाल भी  होते रहे |  ऐसे में ये पूछा  जा सकता है कि श्री  केजरीवाल को ही निशाने पर क्यों लिया जा रहा है और जवाब है क्योंकि उन्होंने ऐलानिया तौर पर बंगले , गाड़ी और सुरक्षा जैसे तामझाम से साफ़ मना कर दिया था | यदि बंगला ले भी लिया और उसकी मरम्मत जरूरी थी तो वहां तक भी बात सही थी किन्तु यदि साज – सज्जा पर शाही अंदाज में खर्च किया जाता है तब श्री केजरीवाल को आलोचनाओं का जवाब देने सामने आना चाहिए | प्रधानमंत्री  या किसी और का उदाहरण देकर अपने कार्य पर पर्दा डालने का अधिकार उन्हें नहीं रह गया | आम आदमी पार्टी की जो छवि आम जनता के बीच बनी थी उससे ये विश्वास पैदा हुआ कि देश में नई राजनीतिक संस्कृति का प्रादुर्भाव होगा  किन्तु सिवाय मुफ्त बिजली – पानी के केजरीवाल सरकार ऐसा क्या कर पाई जिसकी वजह से वह देश की सत्ता संभालने की हसरत पाल रही है | और अब मुफ्त उपहार तो हर पार्टी दिल खोलकर लुटा रही है |  तब केजरीवाल जी में कुछ अनोखा नहीं बचा | दरअसल  अपनी बात से पलट जाने की उनकी आदत और धीरे – धीरे सत्ता के सारे सुखों को हथिया लेने की अनैतिकता से विश्वास का संकट  और गहराया है | देश में जो आशा की किरण इस पार्टी और उसके नेताओं ने जगाई थी वह निराशा में बदल गयी है | मुख्यमंत्री के  बंगले में जनता का 45 करोड़ फूंककर केजरीवाल सरकार ने साबित कर दिया कि वह आम आदमी पार्टी नहीं बल्कि आम राजनीतिक  पार्टी ही है जिसकी कथनी  और करनी में जमीन आसमान का अंतर है |


- रवीन्द्र वाजपेयी


No comments:

Post a Comment