Thursday 18 May 2023

पायलट से प्रेरणा ले रहे कांग्रेस के असंतुष्ट



कांग्रेस आलाकमान द्वारा कर्नाटक का विवाद आखिरकार सुलझा लिया गया | लेकिन इस पूरे मामले में एक बात सामने आ गई कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अपने गृह राज्य में ही प्रभावहीन साबित हुए | चार दिन की मशक्कत के बाद मुख्यमंत्री पद की गुत्थी सुलझ तो गयी लेकिन इस दौरान ये बात खुलकर सामने आई कि कांग्रेस में अब गांधी परिवार भी पहले जैसा ताकतवर नहीं रहा | कर्नाटक के प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने मुख्यमंत्री बनने के लिए जिस तरह का दबाव बनाया उसे देखकर ये लगा कि पार्टी आलाकमान द्वारा नाराज नेताओं को मनाये जाते समय दिए जाने वाले आश्वासनों पर भरोसा कम होता जा रहा है | जैसी जानकारी आई है उसके अनुसार श्री खरगे के अलावा राहुल गांधी तक की बात शिवकुमार ने नहीं मानी । पार्टी आलाकमान द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नाम पर मोहर  लगा देने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष उनके मातहत उपमुख्यमंत्री बनने के लिए राजी नहीं थे | आलाकमान ने उनको प्रदेश अध्यक्ष बने रहने के प्रस्ताव के साथ दो मंत्रालय का प्रस्ताव भी दिया परन्तु वे ऐंठे रहे | आखिकार मोर्चा सोनिया गांधी को सम्भालना पड़ा जिन्होंने शिमला  से वीडियो वार्ता के जरिये शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बने रहने के लिए राजी कर लिया | आधे मंत्री भी उनकी मर्जी के रहेंगे और ढाई साल बाद मुख्यमंत्री पद पर उनकी ताजपोशी की  जायेगी |  उल्लेखनीय है कि चुनाव परिणाम के बाद राहुल ने कहा था कि मुख्यमंत्री का चयन चुने हुए विधायक करेंगे | उसके बाद पर्यवेक्षकों को कहा गया कि विधायकों की राय लें | खुद श्री खरगे रायशुमारी में लगे रहे और ये मानकर कि बहुमत  सिद्धारमैया के साथ है ,उनके नाम का निर्णय कर दिया गया। लेकिन इसके विरोध में  शिवकुमार ने जिस तरह के तेवर दिखाए उसके बाद राजनीति के जानकार ये सोचने बाध्य हुए कि भले ही गांधी परिवार ने जी - 23 नामक असंतुष्टों को पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में जोरदार शिकस्त देते हुए शशि थरूर के मुकाबले श्री खरगे को भारी विजय दिलवा दी किंतु उसके बाद भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के दावेदार क्रमशः सचिन पायलट और टी. एस. सिंहदेव का गुस्सा कम नहीं हो रहा। हालांकि छत्तीसगढ़ में खुलकर बगावत तो नहीं देखने मिली किंतु ढाई - ढाई साल तक मुख्यमंत्री बनाए जाने का जो फार्मूला आलाकमान ने 2018 में सरकार बनने पर भूपेश बघेल और श्री सिंहदेव के बीच तय किया था , उस पर अमल न होने से दोनों के बीच की खुन्नस समय - समय पर सामने आती रहती है। चुनाव करीब होने की वजह से फिलहाल तो मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावना क्षीण है किंतु श्री सिंहदेव भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर चल पड़े तो इस छोटे से राज्य में कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं । जहां तक राजस्थान का मुद्दा है तो वहां अब तक के हालात ये स्पष्ट कर रहे हैं कि श्री पायलट पार्टी में रहते हुए भी आलाकमान की सर्वोच्चता को ठेंगा दिखाने की जुर्रत लगातार करते जा रहे हैं। लेकिन गांधी परिवार उनके विरुद्ध कोई भी कदम उठाने से डर रहा है । ये संभवतः पहला मौका है जब किसी प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री रहा नेता अपनी पार्टी की ही सरकार को भ्रष्ट बताते हुए  सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है किंतु उसे पार्टी से निकालना तो दूर रहा , एक नोटिस देने की हिम्मत  तक आलाकमान नहीं कर पा रहा। ऐसा लगता है शिवकुमार जिस तरह से राहुल और श्री खरगे के सामने अपनी जिद पर अड़े रहे उसकी प्रेरणा उनको श्री पायलट के दुस्साहस से मिली। भले ही श्रीमती गांधी ने उन्हें मना लिया लेकिन देखने वाली बात ये है कि उनकी बात भी पहली बार में उन्होंने ठुकरा दी थी। कुल मिलाकर जो स्थितियां कर्नाटक में देखने मिलीं उनसे ये साफ हो गया कि कांग्रेस में गांधी परिवार नामक असली आलाकमान  का रुतबा भी अब ढलान पर है। कर्नाटक की जीत को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का सुपरिणाम बताने वाले राजनीतिक विश्लेषक भी ये देखकर हैरान हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में फंसे  शिवकुमार ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को पूरे चार दिन तक शीर्षासन करवाए रखा। उनको मनाने के लिए सत्ता संचालन में बराबरी की हैसियत देने का वायदा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए  स्थायी सिरदर्द साबित होगा। कांग्रेस आलाकमान चाहता तो शिवकुमार पर चल रहे मामलों का हवाला देते हुए उनकी अकड़ कम कर सकता था किंतु उल्टे उन्होंने आलाकमान की निर्णय क्षमता को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। इसे कर्नाटक में कांग्रेस के  नाटक का मध्यांतर कहना गलत नहीं होगा। शिवकुमार के लिए सत्ता में बने रहना जरूरी भी है और मजबूरी भी क्योंकि राज्य के जिन डीजीपी को वे अयोग्य ,  अक्षम और भाजपा का कार्यकर्ता बताते रहे उनको केंद्र सरकार ने सीबीआई का मुखिया बनाकर उनके सिर पर तलवार लटका दी है। आगे क्या होगा ये आज कहना तो जल्दबाजी होगी  लेकिन कर्नाटक की कांग्रेस राजनीति में बीते चार दिन जो देखने मिला उससे अन्य राज्यों के असंतुष्ट कांग्रेसियों के हौसले बुलंद हुए हैं। विशेष रूप से जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं वहां आलाकमान के लिए नई - नई चुनौतियां सामने आ सकती हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कोई बड़ा धमाका हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी 



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