Tuesday 9 May 2023

मिग -21 को साभार विदाई देने का वक्त आ गया है



भारतीय वायुसेना का एक प्रशिक्षण मिग - 21 विमान गत दिवस राजस्थान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। यद्यपि पायलट तो समय पर विमान से कूद गया किंतु आवासीय क्षेत्र पर उसके गिर जाने से तीन महिलाएं मारी गईं। दुर्घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। पायलट के सुरक्षित बच जाने से दुर्घटना के बारे में पुख्ता जानकारी मिल सकेगी किंतु ये  सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि आखिर बाबा आदम के जमाने के मिग विमान वायुसेना आखिर क्यों ढोए जा रही है ? निश्चित तौर पर एक जमाना था जब मिग - 21 हमारी वायुसेना का सबसे अग्रणी लड़ाकू विमान था जिसने अनेक युद्धों में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को विजय दिलाई। इसके बाद मिग - 27 श्रृंखला भी आई। साथ ही मिग विमानों के निर्माता रूस ने नए तकनीकी सुधार करते हुए पुराने विमानों का उन्नयन भी किया। बावजूद उसके , समय के साथ जब सुखोई ,मिराज और रफेल जैसे आधुनिकतम लड़ाकू विमान आए तब मिग - 21 तुलनात्मक तौर पर काफी पिछड़ता गया। आज के दौर में सेना की बहादुरी और बेहतर प्रशिक्षण  के साथ नवीनतम तकनीक के अस्त्र - शस्त्रों का महत्व बहुत ज्यादा है । राइफल , तोप, टैंक , मिसाइल , पनडुब्बियां , लड़ाकू विमान , रडार आदि में तकनीकी उन्नयन अब नियमित प्रक्रिया बन गई है। सेना को इसके बारे में प्रशिक्षण भी दिया जाता है। ऐसे में दशकों पुराने हो चुके मिग श्रृंखला के लड़ाकू विमानों को संग्रहालय में रखने की जगह वायुसेना की दैनंदिन गतिविधियों में उपयोग करना अव्यवहारिक लगता है। बताते हैं अभी भी चूंकि भारतीय वायुसेना के बेड़े  में लड़ाकू विमानों की संख्या जरूरत के लिहाज से अपर्याप्त है । यद्यपि मोदी सरकार ने विगत 9 वर्षों में रिकॉर्ड सैन्य खरीदी की है किंतु लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में लंबा समय लगता है । इसलिए  पुराने लड़ाकू विमानों को उपयोग में लाया जा रहा है। मिग - 21 से  प्रशिक्षण विमान का काम वायुसेना ले रही है। लेकिन हर साल इस श्रेणी के दो - चार विमान दुर्घटनाग्रस्त होने से अनुभवी और प्रशिक्षु पायलट मारे जाते हैं। इसी कारण लंबे समय से मिग - 21 विमानों को वायुसेना से अलग हटाकर संग्रहालय में सजाए जाने की सलाह विशेषज्ञ देते आए हैं किंतु अज्ञात कारणों से वायुसेना उनका मोह नहीं छोड़ पा रही। गत दिवस राजस्थान के हनुमानगढ़  के बहलोल नगर ग्राम में उसके गिर जाने से 3 महिलाओं की मौत वाकई दुखद है क्योंकि आम तौर पर प्रशिक्षण विमान भी रिहायशी बस्ती से दूर ही उड़ते हैं। ये भी अच्छा था कि उक्त गांव की आबादी महज 600 है। यदि विमान किसी बड़ी आबादी वाले क्षेत्र में गिरता तो मानवीय क्षति और ज्यादा हो सकती थी। और जब वायुसेना का पायलट ऐसी दुर्घटना में मारा जाता है तब विमान के साथ होने वाला वह नुकसान बहुत भारी होता है। ये देखते हुए इस तरह के विमानों को अब विश्राम दे देना चाहिए क्योंकि गाहे - बगाहे इनके दुर्घटनाग्रस्त होते रहने से जनता का मनोबल तो गिरता ही है , विदेशों में भी हमारी सैन्य क्षमता पर सवाल उठते हैं। हमारे दो पड़ोसी शत्रुओं के पास अत्याधुनिक लड़ाकू विमान होने से हमें न चाहते हुए ही अपनी सेना के तीनों अंगों को सुसज्जित करना पड़ रहा है। और फिर आज के जमाने की जंग जमीन से ज्यादा हवा में और वह भी तकनीक के भरोसे लड़ी जाती है। ये देखते हुए मिग - 21 लड़ाकू विमानों को साभार विदाई दी जाए। उन्होंने अपनी क्षमता से ज्यादा अपनी सेवाएं दी हैं ।उनका गौरवशाली इतिहास भी संजोया जाना चाहिए लेकिन उनको वायुसेना के बेड़े से हटाना समय की अनिवार्यता बनती जा रही है। हर दुर्घटना के बाद इसकी चर्चा होती है लेकिन ठोस निर्णय नहीं हो पाता। बेहतर हो ताजा हादसे के बाद वायुसेना और सरकार दोनों इस बारे में कोई ठोस निर्णय लेंगी।


-रवीन्द्र वाजपेयी 

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