Wednesday 10 May 2023

इमरान ने जो बोया वही काट रहे




पाकिस्तान में गत दिवस पूर्व प्रधानमन्त्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद हालात अराजक हो गए हैं | हालांकि इस देश के लिए ऐसी स्थिति कोई नई नहीं है । लेकिन पहली बार ऐसा देखने मिल रहा है जब सेना के विरुद्ध जनता सड़कों पर उतर आई | फ़ौजी अफसरों के घरों पर हमलों के अलावा लाहौर के गवर्नर हाउस और रावलपिंडी में सैन्य मुख्यालय में आग लगाने जैसी घटनाएँ तक हो रही हैं | पूरे देश में निषेधाज्ञा के बाद इन्टरनेट बंद कर दिया गया है | इमरान की पार्टी पीटीआई पूरे देश में आन्दोलन कर रही है |  समर्थक इस बात की आशंका जता रहे हैं कि हिरासत में उनकी ज़हर देकर हत्या की जा सकती है | ये डर भी है कि अवसर का लाभ उठाकर सेना तख्ता पलटकर सत्ता पर काबिज हो जायेगी । ये भी संभव है कि जनता के गुस्से से बचने के लिए फ़ौजी जनरल इस बार सीधे सत्ता पर न बैठते हुए कठपुतली सरकार चलाते रहें | यद्यपि परवेज मुशर्रफ के बाद पाकिस्तान में लोकतंत्र लौटा और तमाम अटकलबाजियों के  बावजूद फौज सत्ता पर कब्जा करने से बचती रही | इसका कारण न्यायपालिका का साहसिक रवैया भी रहा।बीच में  राजनीतिक अस्थिरता का भी दौर चला | इमरान ने सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तानी हुकूमत और सियासत दोनों की छवि बदलने की काफी कोशिश की और अपने पूर्ववर्ती शासकों को अय्याश बताते हुए खुद को मितव्ययी और जनहितैषी साबित करने का स्वांग भी रचा | आतंकवादियों के पर कतरने और भारत के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश भी की | करतारपुर साहेब कारीडोर का शुभारम्भ भी उन्हीं की सत्ता के चलते हुआ | लेकिन शुरुआती नरमी और सद्भावना के बाद वे भी घूम फिरकर उसी ढर्रे पर लौट आये और भारत के विरुद्ध ज़हर उगलने लगे | आतंकवाद को नियंत्रण कर दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारने के बजाय वे  कश्मीर को लेकर घिसी – पिटी नीति पर चल पड़े | जानकारों का कहना है कि इमरान के ऊपर भी फौज का उतना ही दबाव बना रहा जितना पहले की सरकारों पर था और उसी के चलते वे भारत विरोधी रवैया ढोने बाध्य हो गए। जिस तरह अपनी गिरफ्तारी के विरुद्ध जनता को सड़कों पर उतरने का आह्वान इमरान ने गत दिवस किया यदि ऐसा ही साहस वे प्रधानमंत्री रहते दिखाते तब जनता के साथ ही पाकिस्तान के उन बुद्धिजीवियों , पत्रकारों , कलाकारों और साहित्यकारों का भरपूर समर्थन उनको मिला होता जो मुल्क की बदहाली से चिंतित तो हैं लेकिन सत्ता में बैठे हुक्मरानों का संरक्षण न मिलने की  वजह से उनकी आवाज दबी रह जाती है। पाकिस्तान का निर्माण ही  इस्लामिक कट्टरता के  आधार पर हुआ था लेकिन शुरुआती दौर में भी एक तबका था , जो इस्लाम में पूरा भरोसा रखने के बाद भी प्रगतिशील माना जाता था। उसने अपनी बात रखने की  हिम्मत भी दिखाई लेकिन इस मुल्क का दुर्भाग्य रहा कि सत्ता पर कब्जा करने की औरंगजेबी संस्कृति जल्द ही वहां लागू हो गई । जिसके परिणामस्वरूप  हत्या और फौजी बगावत जैसी घटनाएं पाकिस्तान की तकदीर बन गईं। ऐसा भी नहीं था कि मजहबी कट्टरता के चलते सभी लोग मदरसों में पढ़े हों। पाकिस्तान की सत्ता में आए अनेक राजनेता विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने के बाद सियासत में उतरे लेकिन उनका रवैया  ले देकर भारत विरोधी ही रहा और अपने निहित स्वार्थों के लिए उन्होंने सेना को मनमर्जी करने की छूट दी। इसका नतीजा ही है कि पाकिस्तान की घरेलू और विदेश नीति का संचालन राजसत्ता के समानांतर सेना के जनरल भी करने लगे । और इसी दौरान उनमें सत्ता पर काबिज होने का लालच जागा जिसका उदाहरण जनरल अयूब , याह्या खां , जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ के तौर पर देखने मिला। इमरान चुनाव जीतकर जब सत्ता में आए तब पाकिस्तान में लोकतंत्र की वापसी की उम्मीदें जागी थीं। ऑक्सफोर्ड में पढ़े इमरान पाकिस्तान में आधुनिकता के प्रतीक थे। युवाओं में उनके प्रति दीवानगी थी। क्रिकेट विश्व कप जिताने के बाद वे महानायक की छवि हासिल कर चुके थे। उनका दृष्टिकोण इस्लामिक होने के बाद भी वैश्विक माना जाता था। भारत में क्रिकेट के बहाने अनेक प्रभावशाली लोगों से उनके अच्छे रिश्ते थे । लेकिन कुछ समय सीधे चलने के बाद वे भी कुत्ते की पूंछ बन गए। आखिरकार वही हुआ जो पाकिस्तान की नियति है। उनको सत्ता से हटाकर शरीफ और जरदारी परिवार ने सत्ता पर कब्जा कर लिया । जिस ठसक के साथ इमरान आए  वह उनके जाने के समय नहीं दिखी।  भले ही सेना ने सामान्य तरीके से सत्ता परिवर्तन हो जाने दिया किंतु इमरान भी अब वही आरोप झेल रहे हैं जो वे अपने पूर्ववर्ती  शासकों पर  लगाया करते थे। दुर्भाग्य से पाकिस्तान की वर्तमान सत्ता भी भारत विरोध को ही अपना धर्म मान बैठी। प्रधानमंत्री शाहबाज और विदेशमंत्री बिलावल जरदारी जितनी मेहनत कश्मीर में आतंकवाद को पालने - पोसने में कर रहे हैं उतनी अपने मुल्क की बदहाली दूर करने में करते होते तो आज उसको भीख का कटोरा लेकर दुनिया भर में न घूमना पड़ता । पाकिस्तान में भले ही छोटा हो किंतु एक तबका ऐसा है जो भारत से प्रभावित है।वहां के टीवी चैनलों में होने वाली बहस के अलावा अनेक यू ट्यूबर भारत संबंधी जो कार्यक्रम दिखाते हैं उनसे लगता है कि शिक्षित वर्ग विशेष रूप से युवाओं में ये भावना बलवती होती जा रही है कि भारत से लड़ते रहने और कश्मीर की जिद पालने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इसलिए बेहतर हो व्यापारिक रिश्ते कायम कर दोनों ओर खुशहाली लाई जाए। लेकिन इमरान इन संकेतों को समझे बिना पुराने ढर्रे पर चलते हुए अपनी दुर्गति करवा बैठे। लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनता का  सड़कों पर उतरकर फौजी संस्थानों पर हमला करना निश्चित रूप से बड़े बदलाव का संकेत है किंतु इसकी कितनी कीमत पाकिस्तान को चुकानी पड़ेगी ये फिलहाल कोई नहीं जानता।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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