Wednesday 31 May 2023

सुलह के बाद भी पायलट और गहलोत द्वारा लगाए आरोप यथावत हैं


राजस्थान में कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच चल रहे सियासी घमासान को अमेरिका जाने से पहले राहुल गांधी खत्म करवा गए | बैठक के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट मुस्कराते हुए बाहर आये और आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के लिए जुटने की बात कही | कुछ समय पहले तक एक दूसरे को नीचा दिखाने वाले ये नेता बीते पांच साल से लड़ते आ रहे हैं | इसका प्रमुख कारण ये है कि 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने श्री पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए लड़ा था | चुनाव के पहले से ही उन्होंने काफी मेहनत की । ये कहना भी गलत न होगा कि भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मुकाबले में जनता ने युवा सचिन को पसंद किया | ऐसे में उनको उम्मीद रही कि उन्हें मुख्यमंत्री पद हासिल होगा किन्तु बाजी मार ले गये जादूगर से राजनेता बने अशोक गहलोत । सचिन को भविष्य का हवाला देते हुए उपमुख्यमंत्री बना दिया गया | यहाँ भी श्री गहलोत ने जादूगरी दिखाई और सचिन को अपेक्षित शक्ति और महत्व नहीं दिए | इससे नाराज होकर वे 2020 में अपने समर्थक विधायकों को लेकर हरियाणा जा बैठे | जिसके बारे में कहा गया कि वह खेल भाजपा द्वारा रचा गया था | चूंकि पायलट गुट संख्या बल नहीं जुटा सका , लिहाजा वह बगावत विफल होकर रह गयी | मुख्यमंत्री की कुर्सी तो हाथ आई नहीं उलटे श्री पायलट से उपमुख्यमंत्री के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष की गद्दी भी छिन गयी | हालाँकि इस घटनाचक्र का सबसे रोचक पहलू ये रहा कि बागी तेवर अपनाने के बाद भी न तो श्री पायलट और न ही उनके साथ गए विधायकों पर कड़ी कार्रवाई पार्टी कर सकी | ऐसा लगा था कि कांग्रेस हाई कमान फूंक – फूंककर कदम बढ़ा रहा है ताकि सचिन भी सिंधिया जैसा करतब न दिखा सकें | हालाँकि भाजपा में बैठी वसुंधरा राजे श्री पायलट के पार्टी में आने में बाधा बन गईं क्योंकि वे उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर जाँच की मांग करते आये थे | इसीलिये श्री पायलट ने अनेक बार कहा भी कि श्री गहलोत ही वसुंधरा को बचा रहे हैं | कुछ दिन पहले ही मख्यमंत्री ने धौलपुर में सार्वजनिक मंच से कहा भी कि उनकी सरकार को गिरने से बचाने में वसुंधरा राजे की भूमिका थी | यद्यपि इसका खंडन भी हुआ किन्तु श्री पायलट ने जब एक दिवसीय धरना जयपुर में देते हुए भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच कराये जाने की मांग की तब ये बात साफ़ हो गयी कि उनका निशाना श्री गहलोत के साथ ही वसुन्धरा भी हैं | उसके बाद सचिन ने अजमेर से जयपुर तक पदयात्रा करने के बाद गहलोत सरकार को 30 मई तक का समय दिया भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों की जाँच करवाए जाने का | इस दौरान दोनों के बीच बयानों के जहर बुझे तीर भी बिना रुके चलते रहे | राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जब तक राजस्थान में रही तब तक जरूर दोनों नेताओं में युदधविराम रहा लेकिन इसके बाद से जितनी तीखी शब्दावली का प्रयोग एक दूसरे के विरुद्ध दोनों तरफ से होता रहा , वैसा तो विपक्षी पार्टी के विरुद्ध भी सामान्यतः नहीं होता | बहरहाल इस झगड़े में कांग्रेस आलाकमान की लाचारी जिस तरह उजागर हुई वह सर्वविदित है | उसकी सबसे बुरी स्थिति तो तब बनी जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से बचने के लिए श्री गहलोत ने जयपुर में नया मुख्यमंत्री तय करने आये पर्यवेक्षकों को बुरी तरह अपमानित करते हुए अपने समर्थक विधायकों से इस्तीफा दिलवाकर सरकार गिराने का दबाव बना दिया | उनके सामने आलाकमान को भी झुकना पड़ा और मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष बने | बहरहाल उस वाकये ने ये साबित कर दिया कि श्री गहलोत , सचिन को रोकने के लिए किसी भी हद तक जायेंगे | उन्होंने न जाने जाने गांधी परिवार की कौन सी नस दबा रखी है जिसकी वजह से वह चाहकर भी अपनी पसंद के नेता को राजस्थान की गद्दी न दिलवा सका | आखिर में जब उसे लगा कि 30 मई के बाद वे आम आदमी पार्टी में चले जायेंगे या फिर किसी नए विकल्प के जरिये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जड़ें खोदेंगे तब दोनों नेताओं को बिठाकर उनके बीच सुलह करवाने का उपक्रम रचा गया | लेकिन उस समझौते के फौरन बाद से ही राजनीतिक विश्लेषक ये शंका व्यक्त करने लगे कि ये सुलह दिखावटी है और भीतर ही भीतर आग सुलगती रहेगी | उस बैठक के बाद श्री पायलट ने 30 मई के बाद किये जाने वाले धमाके से इंकार कर दिया वहीं श्री गहलोत ने भी बागी विधायकों पर भाजपा से लिए 10 करोड़ लौटाने जैसे कटाक्ष बंद कर दिए | लेकिन अजमेर से जयपुर की पदयात्रा के दौरान श्री पायलट ने जो मुद्दे उठाये थे उनके बारे में मुख्यमंत्री ने उन्हें क्या आश्वासन दिया ये उन्हें स्पष्ट करना चाहिये क्योंकि वे कांग्रेस के नहीं अपितु राजस्थान की जनता से जुड़े मुद्दे थे | इसी तरह जो विधायक श्री पायलट के साथ हरियाणा जाकर बैठ गए थे उन पर भाजपा से करोड़ों रूपये लेने का जो आरोप श्री गहलोत सार्वजनिक रूप से लगाते रहे क्या वह उनकी नजर में असत्य था ? चूंकि दोनों खेमों ने एक दूसरे के बारे में जो भी आक्षेप लगाये वे जनता के संज्ञान में हैं इसलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में श्री गहलोत और श्री पायलट से पूछा जायेगा कि उनका क्या हुआ ? उल्लेखनीय है श्री पायलट की सभा में गहलोत मंत्रीमंडल के एक सदस्य ने इस सरकार को राजस्थान की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार कहा था | वे मंत्री अभी तक सरकार में बने हुए हैं। इसी तरह श्री पायलट और श्री गहलोत द्वारा बीते कुछ महीनों में एक दूसरे के बारे में जो कुछ भी कहा गया वह राजस्थान की जनता महज एक बैठक के बाद मुस्कराकर बाहर आने से भूल जायेगी और भ्रष्टाचार के द्विपक्षीय आरोप अपनी मौत मर जायेंगे ये सोचना भूल होगी। जनता की याददाश्त कमजोर होती है लेकिन इतनी भी नहीं जितना राजनीतिक पार्टियां और उसके नेता समझते हैं। याद रखा जाना चाहिए कि 40 प्रतिशत कमीशन के सिर्फ एक ही मुद्दे ने कर्नाटक में भाजपा की पराजय की बुनियाद रख दी थी। राजस्थान में तो भ्रष्टाचार के आरोपों की पूरी झालर है और वह भी सत्तारूढ़ कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं द्वारा ही एक दूसरे पर लगाए हुए।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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