आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इस समय विभिन्न राज्यों का दौरा कर रहे हैं | इसका उद्देश्य अपनी पार्टी का प्रचार करना नहीं अपितु केंद्र सरकार द्वारा जारी उस अध्यादेश के विरुद्ध विपक्षी दलों का समर्थन जुटाना है जिसके द्वारा उसने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर - पोस्टिंग के अधिकार निर्वाचित सरकार से छीनकर फिर से उपराज्यपाल को सौंप दिये | उल्लेखनीय है सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार की याचिका पर ये फैसला दिया था कि नौकरशाहों के तबादले और पदस्थापना का अधिकार चुनी हुई सरकार को ही होना चाहिए , अन्यथा वह सुचारू तरीके से काम नहीं कर सकेगी | उस निर्णय से उत्साहित केजरीवाल सरकार ने विजयी मुद्रा में ताबड़तोड़ तबादले करना शुरू कर दिए | लेकिन इसी बीच केंद्र सरकार ने अध्यादेश निकालकर उस फैसले को उलट दिया | इसी के साथ उसने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील भी पेश कर दी | दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका के जरिये चुनौती दे डाली | देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने भी दुविधा की स्थिति है क्योंकि उसके अपने फैसले के विरुद्ध अपील पेश करने वाली केंद्र सरकार ने अध्यादेश निकालकर उस फैसले को फिलहाल तो असरहीन कर ही दिया | संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार छः माह के भीतर अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिलनी जरूरी है | और इसीलिए श्री केजरीवाल विपक्षी दलों के नेताओं से उनके ठिकाने पर जा – जाकर मिलते हुए इस बात की गुहार लगा रहे हैं कि जब उक्त अध्यादेश संसद के मानसून सत्र में विधेयक के तौर पर पेश हो तब उच्च सदन अर्थात राज्यसभा में सभी भाजपा विरोधी पार्टियाँ उसका विरोध करें जिससे वह पारित न हो सके | यहाँ उल्लेखनीय है कि लोकसभा में मोदी सरकार के पास भारी - भरकम बहुमत होने से वहां तो उसके पारित होने में कोई अड़चन नहीं होगी किन्तु राज्यसभा में सरकार अभी भी अल्पमत में होने से अन्य दलों की सहायता लेने बाध्य है | हालांकि बीजू पटनायक और जगन मोहन रेड्डी की पार्टियों के अलावा अनेक छोटे दलों के समर्थन से सरकार अपना काम निकलती रही है लेकिन उद्धव ठाकरे और अकाली दल से दूरी होने के बाद से राज्यसभा में उसके सामने दिक्कतें हैं | श्री केजरीवाल इसी का लाभ लेते हुए मोदी सरकार को झुकाने का प्रयास कर रहे हैं | पिछले कुछ महीनों में विपक्षी एकता की जो मुहिम चल रही है उसके कारण आम आदमी पार्टी भी विपक्षी जमात में अब अपनी जगह बनाने लगी है | संसद के बजट सत्र में केंद्र सरकार की घेराबंदी का जो प्रयास कांग्रेस के नेतृत्व में चला उसमें भी आम आदमी पार्टी ने खुलकर साथ दिया | और जिस कांग्रेस से उसकी जानी दुश्मनी मानी जाती है उसने भी श्री केजरीवाल को पास बिठाने में परहेज नहीं किया | यद्यपि अपने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की गिरफ्तारी के बाद हेकड़ी तो श्री केजरीवाल की भी कम हुई और वे उन विपक्षी नेताओं के साथ उठते – बैठते दिखने लगे जिन्हें वे सबसे भ्रष्ट की सूची में दर्शा चुके थे | कांग्रेस को भी चूंकि राहुल गांधी के मामले में समर्थन की जरूरत थी लिहाजा उसने भी आम आदमी पार्टी के साथ नजदीकी बढ़ाने में संकोच नहीं किया | ऐसे में जब सर्वोच्च न्यायालय का संदर्भित फैसला आया तब कांग्रेस ने केजरीवाल सरकार के जश्न में अपनी खुशी दिखाई | लेकिन इसके विपरीत दिल्ली के कुछ कांग्रेस नेता आम आदमी पार्टी को किसी भी तरह से स्वीकार करने राजी नहीं हैं | इनमें प्रमुख नाम अजय माकन और संदीप दीक्षित का है | उल्लेखनीय है कि श्री माकन ने तो वरिष्ट अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी से ये आग्रह भी किया था कि वे श्री सिसौदिया की पैरवी न करें क्योंकि जिस शराब घोटाले में उनकी गिरफ्तारी हुई थी उसे कांग्रेस ने ही उठाया था | इसी तरह से श्री दीक्षित ने अध्यादेश मामले में केजरीवाल सरकार की तरफदारी करने से कांग्रेस नेतृत्व को रोकने संबंधी बयान दिया है | पार्टी हाईकमान भी इस बारे में असमंजस में है क्योंकि दिल्ली के अलावा पंजाब के कांग्रेस नेताओं ने भी पार्टी के बड़े नेताओं से अपील की है कि आम आदमी पार्टी से पूरी तरह दूर रहा जावे क्योंकि वह कांग्रेस के लिए भस्मासुर साबित होगी | राजस्थान, मप्र और छत्तीसगढ़ के आगामी विधानसभा चुनाव में श्री केजरीवाल अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं। सुना है सचिन पायलट भी बगावत करने के बाद आम आदमी पार्टी का झंडा उठाएंगे। ऐसे में पार्टी के भीतर श्री केजरीवाल के घड़ियाली आंसुओं से सावधान रहने की भावना तेजी से बढ़ती जा रही है। रही बात राज्यसभा में समर्थन की तो कांग्रेस भी ये जान रही है कि मोदी सरकार उच्च सदन में बहुमत का जुगाड़ कर ही लेगी। नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी के अलावा बसपा और अकाली दल ने भी नए संसद भवन के शुभारंभ पर शामिल होने की बात कहकर विपक्षी एकता को धक्का दे दिया। ऐसे में कांग्रेस के भीतर भी इस बात को लेकर मंथन चल पड़ा है कि आम आदमी पार्टी को किस हद तक साथ रखा जावे और श्री केजरीवाल की चिकनी - चुपड़ी बातों पर कितना भरोसा करें ? कांग्रेस को ये बात समझनी चाहिए कि आम आदमी पार्टी खुद को कांग्रेस का विकल्प बताती आई है । ऐसे में उसको सहारा देने में कहीं वह बेसहारा न हो जाए। कांग्रेस के कुछ बुजुर्ग नेता याद दिला रहे हैं कि बाबरी ढांचा टूटने के बाद स्व.राजीव गांधी द्वारा मुलायम सिंह और लालू यादव की सरकार को टेका लगाए जाने के फैसले के बाद कांग्रेस उप्र और बिहार में आज तक उठ नहीं सकी। वैसे भी दिल्ली और पंजाब की सरकारें आम आदमी पार्टी के हाथों गंवाने का दर्द कांग्रेस शायद ही भूल पाएगी।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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