Friday 19 May 2023

मंत्री भले हट गया लेकिन मुद्दा अभी जीवित है



कल सुबह जब कानून मंत्री किरण रिजिजू का विभाग बदले जाने की खबर आई तब हर किसी को अचरज हुआ क्योंकि वे मोदी सरकार के अत्यंत कार्यकुशल सदस्यों में से माने  जाते हैं | रविशंकर प्रसाद को हटाये जाने के बाद जब श्री रिजिजू को उनके स्थान पर बिठाया गया  तब ये कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ट अधिवक्ता होने के नाते चूंकि नीतिगत मामलों में वे न्यायपालिका के साथ मतभेदों पर खुलकर सरकार का पक्ष नहीं रख पाते लिहाजा ऐसा कानून मंत्री नियुक्त किया गया  जिसका अदालत से पाला न पड़ता हो | उल्लेखनीय है अतीत में अनेक नामी अधिवक्ता कानून मंत्री रह चुके हैं लेकिन ये कहना गलत न होगा कि इन दिनों जिस तरह की तल्खी सरकार और न्यायपालिका के बीच देखने मिल रही है वह अपने आप में अभूतपूर्व कही जा सकती है | वैसे तो अनेक फैसले इसकी वजह माने  जा सकते हैं किंतु मुख्य कारण है उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु प्रचलित कालेजियम व्यवस्था। जिसे मोदी सरकार के आने के  बाद लोकसभा में सर्वसम्मति और राज्यसभा में केवल स्व.राम जेठमलानी के विरोध के बाद रद्द करते हुए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का कानून पारित कर दिया गया । लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उसे असंविधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। हालांकि केंद्र सरकार ने दोबारा उस विषय को संसद में लाने का प्रयास नहीं किया किंतु इसे लेकर न्यायपालिका के साथ उसके रिश्तों में खटास आ गई।जिसका प्रमाण सार्वजनिक मंचों पर भी मिलने लगा। जबसे श्री रिजिजू कानून मंत्री बने तबसे वे कालेजियम को असंवैधानिक बताने के साथ ही अनेक ऐसे बयान देते रहे जिनसे न्यायपालिका में नाराजगी बढ़ रही थी। इसका चरम तब आया जब उपराष्ट्रपति बनने के बाद जगदीप धनखड़ ने भी श्री रिजिजू की ही तरह से  ही कालेजियम की संवैधानिकता पर सवाल उठा दिए। इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल के जरिए ये संदेश भी दिया कि संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति द्वारा इस तरह की बात कहना संतुलन बिगाड़ने वाला होगा। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि श्री धनखड़ स्वयं सर्वोच्च न्यायालय में वकालत कर चुके हैं। हालांकि उसके बाद भी उन्होंने कालेजियम की आलोचना में कोई संकोच नहीं किया किंतु कानून मंत्री के रूप में श्री रिजिजू की आलोचना न्यायपालिका को  नागवार गुजर रही थी। हाल ही में उन्होंने न्यायाधीशों और वकीलों के बारे में जो तीखी टिप्पणियां की गईं उनका विरोध होने के बाद  सरकार को लगा कि बात बढ़ सकती है।इसलिए गत दिवस पहले श्री रिजिजू और बाद में कानून राज्य  मंत्री एस.पी. सिंह बघेल को हटाकर दूसरे मंत्रालय में भेज दिया गया। कानून विभाग का स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल को दिया गया जो संसदीय कार्य और संस्कृति राज्यमंत्री भी हैं और राजस्थान में पूर्व आईएएस अधिकारी भी रह चुके हैं । उनके बारे में ये प्रचारित किए जाने के पीछे भी राजनीतिक कारण है कि वे बहुत सादगी पसंद और सरल व्यक्ति हैं । इसका उद्देश्य संभवतः न्यायपालिका को संदेश देना है कि उन्हें नए मंत्री से वह सब नहीं सुनना पड़ेगा जिससे वह अपने आपको असहज महसूस करती है। इस बारे में ये भी कहा जा रहा है कि हाल ही में देश के  मुख्य न्यायाधीश डी. वाय. चंद्रचूड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी सिलसिले में मिले तब श्री चंद्रचूड़ ने श्री रिजिजू के आलोचनात्मक बयानों पर शिकायत दर्ज की। उसी दौरान श्री मोदी ने कानून मंत्री को बदलने का फैसला किया। ये बात भी चर्चा में  है कि मुख्य न्यायाधीश के लंबे कार्यकाल को देखते हुए भी प्रधानमंत्री न्यायपालिका से टकराव टालना चाह रहे हैं । हाल ही में कुछ फैसले ऐसे आए  जिनसे सरकार के सामने परेशानी खड़ी हो गई। प्रधानमंत्री निश्चित तौर पर कुशल राजनेता हैं और व्यक्तिगत व्यवहार में अपने विरोधी के प्रति भी उनकी सौजन्यता प्रसिद्ध है । कानून मंत्री बदलकर उन्होंने श्री चंद्रचूड़ को ये एहसास करवा दिया  कि सरकार मुख्य न्यायाधीश की भावनाओं के प्रति कितनी संवेदनशील और सतर्क है किंतु इसके साथ ही ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि श्री रिजिजू को हटाए जाने के बाद कालेजियम मुद्दे पर क्या केंद्र सरकार का दृष्टिकोण भी बदल गया ? और ये भी कि क्या उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ भी इस विषय पर तीखी टिप्पणियां से बचेंगे ? हालांकि राजनीतिक नेताओं द्वारा फायदे और नुकसान को ध्यान में रखते हुए अपनी नीति और निर्णय परिवर्तित कर देना सामान्य बात है। हाल ही में देखने आया कि वीर सावरकर के बारे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा की जाने वाली टिप्पणियां उस समय से बंद हो गईं जब एनसीपी नेता शरद पवार ने कांग्रेस को आगाह किया कि उनसे महाराष्ट्र में नुकसान हो सकता है। उसके बाद से श्री गांधी ने  सावरकर का नाम लेना ही छोड़ दिया। तो क्या न्यायपालिका की नाराजगी से बचने भाजपा भी कालेजियम का विरोध करना बंद कर देगी? बेहतर होगा वह इस बारे में  अपना विचार सार्वजनिक करे क्योंकि श्री रिजिजू बिना पार्टी की  सहमति के कालेजियम के विरुद्ध बोलने का दुस्साहस नहीं कर  सकते थे । अन्यथा बजाय दूसरे विभाग में भेजे जाने के वे  सरकार से बाहर किए जाते। कालेजियम का विषय काफी ज्वलंत है जो न्यायपालिका में पारदर्शिता और परिवारवाद को रोकने से जुड़ा है। बेहतर होगा भाजपा गैर सरकारी स्तर पर इस बारे में राष्ट्रीय विमर्श जारी रखे। न्यायपालिका का सम्मान बेहद जरूरी है।किंतु उसे अपनी मर्जी का मालिक बनाकर स्वच्छंद बना देना भी लोकतंत्र के लिए घातक होगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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