Thursday 25 May 2023

ऐतिहासिक अवसर पर बहिष्कार ठीक नहीं



नए संसद भवन का शुभारंभ आगामी 28 मई को होने जा रहा है। लोकसभाध्यक्ष के आग्रह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भवन का उद्घाटन करने वाले हैं । कांग्रेस के साथ ही 19 विपक्षी दल इस समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा कर चुके हैं। उनकी आपत्ति इस बात पर है कि संसद और संविधान के संरक्षक के तौर पर राष्ट्रपति को नया संसद भवन राष्ट्र को समर्पित करना था। प्रधानमंत्री से तत्संबंधी मांग भी की गई है ।  ये भी कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू चूंकि आदिवासी समुदाय से आती हैं इसलिए उनसे उद्घाटन करवाना था।  कुछ लोगों को इस बात पर भी ऐतराज है कि 28 मई की तारीख इसलिए रखी गई क्योंकि वह स्वातंत्र्यवीर वीर सावरकर का जन्मदिवस है। और  सरकार  ने इस तिथि को जान बूझकर चुना क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी कुछ समय पहले तक सावरकर जी की तीखी आलोचना करते हुए उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाया करते थे। वो तो जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने  उन पर दबाव बनाया तब उनकी जुबान पर ताला लगा। लेकिन बहिष्कार की घोषणा कर रहे  विपक्षी दलों को मुख्य शिकायत इस बात की ही है कि प्रधानमंत्री नये संसद भवन  का उद्घाटन कर रहे हैं । उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत की राय में तो नए संसद भवन की जरूरत ही नहीं थी और मौजूदा भवन आगामी 100 साल तक काम आ सकता है । वैसे भी इस नए भवन सहित समूचे सेंट्रल विस्ता परियोजना को लेकर राहुल गांधी सहित अधिकतर दल आलोचना करते हुए इसे जनता के धन की बरबादी बताते रहे हैं। बहरहाल रिकॉर्ड समय में  बनकर तैयार हुए इस संसद भवन में ही मानसून सत्र का आयोजन होगा। अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण इस  भवन को भविष्य में  दोनों सदनों की सदस्य संख्या बढ़ने का ध्यान  रखकर बनाया गया है। इसके भूमिपूजन से लेकर उद्घाटन की  तारीख तय होने तक कांग्रेस और उसके सहयोगी  विपक्षी दलों ने इस समूची परियोजना का  विरोध करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा । चूंकि इस पूरे प्रकल्प के पीछे प्रधानमंत्री की दूरगामी सोच है इसलिए तमाम गुणात्मक बातों को नजरंदाज करते हुए इसकी आलोचना की जाती रही है। राष्ट्रीय राजधानी में  केंद्र सरकार का जो प्रशासनिक प्रबंध है वह काफी पुराना होने से स्थानाभाव के कारण अव्यवस्थित है। मौजूदा संसद भवन में जगह कम होने पर ही एनेक्सी बनाई गई थी लेकिन वह भी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही। विभिन्न पार्टियों के लिए आवंटित स्थान भी छोटा पड़ रहा है। उस दृष्टि से नए भवन का निर्माण समयोचित है। रही बात उद्घाटन कौन कर रहा है तो विपक्ष को अपनी राय रखने का पूरा अधिकार है । लेकिन जब लोकसभाध्यक्ष  ओम बिरला ने  प्रधानमंत्री को आमंत्रित कर लिया तब विरोध को जारी रखते हुए भी समारोह में शामिल होना लोकतांत्रिक संस्था के सम्मान में जरूरी है। 19 दलों के बहिष्कार के बावजूद भी अनेक ऐसे विपक्षी दल उद्घाटन में शामिल होने जा रहे हैं जिनका भाजपा से गठबंधन नहीं है। और फिर उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने से विपक्ष उस ऐतिहासिक अवसर से वंचित भी हो जायेगा जब आजाद भारत की संसद वैश्विक स्तर के भवन में आने जा रही है।जो आंकड़े आए हैं उनके अनुसार 40 फीसदी से कम सदस्य बहिष्कार करेंगे । ऐसे में सदन तो खचाखच भरा रहेगा और प्रधानमंत्री की बात भी पूरी दुनिया में प्रसारित होगी ही जिसमें आत्मनिर्भर भारत की झलक इस भवन के माध्यम से दिखाई जायेगी।  विपक्ष ने विरोध में जो कहना था वह कह दिया । आगे भी उसके पास ऐसा करने का अधिकार होगा।  लेकिन विरोध और बहिष्कार में अंतर करना चाहिए। मसलन सरकार की बहुत सी बातें उसे अच्छी नहीं लगती लेकिन वह सदन में उसका पुरजोर विरोध करता है। नई संसद में भी उसके पास ऐसा करने का अवसर रहेगा किंतु संसद भवन का उद्घाटन एक ऐतिहासिक अवसर है जिसका राजनीतिकरण करना अच्छा नहीं है।बेहतर हो अभी भी वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे। विरोध के लिए  संसदीय प्रजातंत्र में बहुत से अवसर विपक्ष को मिलते हैं किंतु कुछ प्रसंग ऐसे होते हैं जब राजनीति के साथ ही राष्ट्रीय महत्व जुड़ जाता है । और तब सभी उसमें शामिल होकर उसकी गरिमा बढ़ाते हैं । नए संसद भवन का उद्घाटन भी ऐसा ही आयोजन है जिसे राष्ट्रीय महत्व का मानकर यथोचित सम्मान दिया जाना चाहिए । जिससे संसद के सत्र में इस भवन में आने पर किसी को अपराधबोध न हो।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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