Tuesday 23 May 2023

म.प्र की राजनीति में शालीनता और सौजन्यता का कम होना चिंताजनक



म.प्र में इस वर्ष के अंत तक  विधानसभा चुनाव होने वाले हैं | अभी तक जो स्थिति है उसके अनुसार भाजपा और कांग्रेस में ही मुख्य मुकाबला होने वाला है | यद्यपि बसपा और सपा का भी कुछ सीटों पर असर है  लेकिन प्रदेश की राजनीति दो ध्रुवीय ही बनी हुई है | पिछले वर्ष हुए निकाय चुनाव में सिंगरौली नगर निगम में आम आदमी पार्टी का महापौर जीत जाने के बाद इस बात की सम्भावना भी है कि अरविन्द केजरीवाल इस बार इस प्रदेश में तीसरी ताकत बनने के लिए हाथ पाँव मारेंगे | हाल ही में वे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के साथ भोपाल में रैली भी कर चुके थे | हालाँकि दिल्ली में केंद्र सरकार के साथ चल रही रस्साकशी और कर्नाटक में अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जप्ती की वजह से आम आदमी पार्टी का हौसला गिरा है और फिर जो रणनीति समझ में आ रही है उसके मुताबिक तो यह पार्टी राजस्थान में ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर रही है जिसका कारण संभवतः उसका  दिल्ली से करीब होना ही है , जहां कांग्रेस की अंदरूनी कलह के बीच उसे अपनी जगह बनाने की गुंजाईश नजर आ रही है | उस दृष्टि से म.प्र में अभी तीसरी शक्ति की संभावना नजर नहीं आ रहीं | और इसीलिये चुनाव पूर्व चलने वाली ज़ुबानी जंग भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सिमटी हुई है | लेकिन चिंता का विषय ये है कि आरोप – प्रत्यारोप का जो आदान – प्रदान हो रहा है उसमें वैचारिक और नीतिगत मुद्दों से ज्यादा निजी मामले हैं | सत्ताधारी दल अपनी  उपलब्धियां प्रचारित करे और विपक्ष उसकी नाकामियां सामने लाये ये तो लोकतंत्र का चिरपरिचित स्वभाव है किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर अब ये बात देखने मिल रही है कि राजनेता  नीतिगत आलोचना की बजाय एक दूसरे पर निजी हमले करने पर उतारू हैं | इसकी शुरुआत किसने की ये कह पाना आसान नहीं है किन्तु म.प्र की ये विशिष्टता रही है कि यहाँ सत्ता और विपक्ष के बीच वैचारिक मतभेदों के बावजूद व्यक्तिगत कटुता नहीं रही | श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा के मुख्यमंत्री रहते हुए नेता प्रतिपक्ष कैलाश जोशी के साथ मधुर सम्बन्ध थे | सदन और उसके बाहर एक दूसरे के प्रति अपमानजनक टिप्पणी शायद ही कभी सुनाई दी हो | इसी तरह अर्जुन सिंह और सुन्दरलाल पटवा के बीच व्यक्तिगत रिश्ते में राजनीतिक मतभेद कभी बाधा नहीं बने | सौजन्यता का यह सिलसिला दिग्विजय सिंह और विक्रम वर्मा के समय भी जारी रहा | लेकिन उसके बाद से राजनीति का वह सुनहरा दौर धीरे – धीरे विदा होने लगा | जो दिग्विजय सिंह कभी कुशाभाऊ ठाकरे के सार्वजानिक तौर पर चरण छूने में संकोच नहीं करते थे वे हिन्दू विरोधी बयानों के कारण अपनी छवि खराब कर बैठे | हालांकि हाल ही में उन्होंने स्व. पटवा के भतीजे विधायक  सुरेन्द्र के निवास पर जाकर सबको चौंकाया था किन्तु श्री वर्मा के साथ उनके रिश्तों वाली बात अब नहीं दिखाई देती | लेकिन ऐसा केवल कांग्रेस के साथ ही नहीं है | भाजपा में भी अब कुशाभाऊ ठाकरे का दौर अतीत की बात हो चली है जिनके समक्ष उनके कट्टर विरोधी भी श्रीद्धावनत हो जाया करते थे | हालाँकि वर्तमान  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सौजन्यता की प्रतिमूर्ति हैं और उनकी भाषा भी बहुत ही संयमित है किन्तु बाकी नेताओं द्वारा मर्यादा का ध्यान नहीं रखा जाता | कांग्रेस में भी कमलनाथ का वर्चस्व होने के बाद राजनीतिक संवाद  का स्तर गिरा है | कभी - कभी ऐसा लगता है जैसे बड़े नेता अपने मातहतों को ऊल -  जलूल बोलने की छूट दे देते हैं | वर्ना गाली का जवाब गाली ही हो ये जरूरी नहीं होता | पहले भी राजनीति में व्यक्तिगत आरोप  लगा करते थे लेकिन  शालीनता का ध्यान रखा जाता था | मानहानि के मुकदमे शायद ही कभी सुनाई देते हों | गलत शब्दों के प्रयोग पर बिना  झिझके माफी मांग लेने और माफीनामा स्वीकार करने का बड़प्पन साधारण बात  थी | लेकिन बीते कुछ समय से शांति का टापू कहे जाने वाले प्रदेश में राजनीतिक विमर्श का जो स्तर देखने मिल रहा है वह चिंता के साथ ही गहन चिंतन का विषय है | प्रदेश के विकास के बारे में सभी पार्टियां अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर करती  रही हैं किन्तु इसके लिए समन्वित प्रयास शायद ही दिखाई दिए हों | इसका प्रमाण  निकाय चुनाव में महापौर और सदन का बहुमत अलग पार्टी के पास होने से उत्पन्न हालात से बखूबी समझा जा सकता है | जिस तरह परिवार में ये कहा जाता है कि बच्चे अपने बड़े - बुजुर्गों के व्यवहार से सीखते हैं , उसी तरह राजनीतिक दल में छोटे स्तर का कार्यकर्ता अपने वरिष्टों के आचरण और अभिव्यक्ति की शैली से प्रेरणा लेता है | ये देखते हुए अब ये जिम्मेदारी भाजपा और काँग्रेस दोनों के वरिष्ट नेताओं की है कि वे अपने दल के भीतर आचरण और संयमित वाणी का उदाहरण पेश करें | चुनाव तो आते – जाते रहेंगे और सरकारें भी बनती – बिगड़ती रहेंगी किन्तु राजनीति यदि प्रतिस्पर्धा की बजाय शत्रुता का रूप ले लेगी तब लोकतंत्र का वही स्वरूप देखने मिलेगा जो पाकिस्तान में कायम है | म.प्र देश के सबसे शांत राज्यों में से है | इसका प्राकृतिक सौन्दर्य भी अपने आप में अनूठा है | देश के सभी अंचलों के लोग यहाँ आकर स्थायी रूप से बसे होने के कारण यहाँ क्षेत्रीयता और भाषा जैसे विवाद नहीं रहे | खुद कमलनाथ प्रदेश के बाहर से आकर छिंदवाड़ा के सांसद बने और 2018 में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे | अन्य राज्यों से आकर और भी  राजनेता यहाँ से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं | 1971  में दमोह लोकसभा सीट से कांग्रेस ने उस समय के  राष्ट्रपति वी.वी गिरि के पुत्र शंकर गिरि को उतारा और वे जीत भी गए जबकि उनको यहाँ की भाषा तक नहीं आती थी | स्व. सुषमा स्वराज भी विदिशा से सांसद चुनी गईं | कहने का आशय ये है कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर होने वाले आरोप - प्रत्यारोप को निजी आक्रमण से जितना बचाया जा सके उतना बेहतर होगा ,  क्योंकि अंततः उसका असर समाज पर भी पड़ता है | और आज की राजनीति  में कब कौन पाला  बदलकर  यहाँ से वहां हो जाये कहना कठिन है | 2018 के चुनाव में कांग्रेस के पोस्टर बॉय रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया महज 15 माह बाद ही भाजपा के साथ आ गये | इस तरह का पाला बदल इस चुनाव के पहले आये दिन देखने  मिल  रहा है | इसलिए अपने विरोधी को अपमानित करने और उसके बारे में अशोभनीय बातें कहने के पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्या पता कल वह आपके साथ आकर बैठ जाए |

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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