Tuesday 12 September 2017

सरकारी विद्यालयों में पढ़ें अफसरों और जजों के बच्चे



राजधानी दिल्ली का ही हिस्सा कहे जाने वाले गुरूग्राम (गुडग़ांव) के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में एक 7 वर्षीय बालक की हत्या का मामला केवल एक अपराध नहीं रहा। सर्वोच्च न्यायालय ने भी गत दिवस ठीक कहा कि ये एक स्कूल का नहीं वरन् पूरे देश का मामला है। जिस बच्चे की हत्या की गई उसके पिता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया तो केन्द्र और हरियाणा सरकार के साथ ही सीबीएसई को नोटिस भेजकर निजी विद्यालयों में सुरक्षा आदि को लेकर जानकारी मांगी गई है। रेयान इंटरनेशनल एक बड़ा समूह है जिसके अनेक विद्यालय देश भर में चलते हैँ। इसकी संचालक श्रीमती पिंटो काफी प्रभावशाली महिला हैं जो शासन-प्रशासन के उच्च पदस्थ लोगों तक पहुंच रखती हैं। ईसाई पृष्ठभूमि के बावजूद काफी समय से उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया है। यही वजह है कि ग्रुरुग्राम हादसे के बाद विद्यालय के विरुद्ध कार्रवाई में देरी को लेकर हरियाणा की भाजपा सरकार पर भी आरोप लगे। सामान्य दृष्टि से इसे महज एक हत्या का प्रकरण मानकर पुलिस आगे बढ़ती किन्तु बच्चे की लाश शौचालय में मिलने जैसी बात ने विद्यालय के भीतर व्याप्त अव्यवस्थाओं तथा लापरवाहियों का चि_ा खोल दिया। अपने जिगर के टुकड़े के इस तरह से चले जाने के बाद कोई भी मां-बाप मानसिक तौर पर टूट जाते हैं किन्तु इस मामले में बच्चे के पिता ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाकर एक नये मुद्दे को राष्ट्रीय एजेन्डा बना दिया। सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी इस दृष्टि से बेहद अर्थपूर्ण है। जिन महंगे विद्यालयों में अपने नौनिहालों का भविष्य संवारने अभिभावक मोटी रकम खर्च करने के बाद प्रबंधन के नखरे आये-दिन उठाते हुए तरह-तरह के दबावों को चाहे-अनचाहे सहते हैं, उनकी बाहरी चमक-दमक के पीछे की बदरंग तस्वीर कैसी है इसकी एक झलक उक्त हादसे से मिली। इसकी खबर को लोग भुला पाते उसके पहले ही एक मासूम बच्चे के साथ कुकर्म और फिर हत्या का मामला उजागर हो गया। इसके बाद देश भर में निजी क्षेत्र के उन विद्यालयों की पोल-पट्टी खुलने लगी जिन्होंने शिक्षा जैसे पवित्र पेशे को विशुद्ध दुकानदारी में बदलकर रख दिया है। रेयान समूह अकेला ऐसा कर रहा हो ये कहना सही नहीं होगा। पूरे देश में तमाम ऐसे संस्थान है जिन्होंने शिक्षा के साथ ही अनुशासन और बेहतर प्रबंधन के जरिये पहले तो प्रतिष्ठा अर्जित की और जब उनकी मांग बढ़ी तब व्यावसायिकता ने उनकी मानसिकता को दूसरी तरफ घुमा दिया। परिणाम स्वरूप ऐसे विद्यालयों की संख्या एक से दो और फिर देखते-देखते बढ़ती चली गई।  बीते कुछ वर्षों में सुप्रसिद्ध विद्यालयों की फ्रेंचाइजी बांटने का धंधा चल पड़ा जिसके बाद विशुद्ध कारपोरेट शैली में पूरे देश में बतौर ब्राण्ड उनका विस्तार हुआ तथा शिक्षा पूरी तरह बाजार में बेची जाने वाली चीज बनकर रह गई। मध्यमवर्ग के जीवन स्तर में आये सुधार एवं शिक्षा के बढ़ते महत्व ने निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों की मानों लॉटरी खोल दी। इसकी वजह रही सरकारी शिक्षा के ढांचे का बुरी तरह चरमरा जाना। विशेष रूप से माध्यमिक स्तर तक के सरकारी विद्यालयों की स्थिति दुर्दशा का पर्याय हो गई। इस बारे में सभी को सब कुछ पता है। जिन नेताओं और अधिकारियों पर सरकारी शिक्षण संस्थानों को सुधारने एवं संवारने का दायित्व है उनके बच्चे चूंकि निजी क्षेत्र के महंगे विद्यालयों में पढ़ते हैं इस वजह से उनकी चिंता में सरकारी क्षेत्र के संस्थान होते ही नहीं। समाज के अन्य प्रभावशाली लोगों की औलादें भी सरकारी शिक्षण संस्थानों से दूर रहती हैं इस कारण इनकी स्थिति दयनीय से दयनीय बनती चली गई। ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसा करने के पीछे निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों को लाभ पहुंचाने का उद्देश्य भी रहा जिनका संचालन बड़े-धन्ना सेठों या राजनेताओं के हाथों में है। रेयान इंटरनेशनल जैसे विद्यालयीन शिक्षा के अन्य बड़े ब्राण्डों को नोट छापने की मशीन के रूप में बदलने का काम एक दिन में नहीं हुआ। लेकिन सरकारी क्षेत्र के विद्यालयों के गिरते स्तर एवं उनमें आधारभूत ढांचे की कमी के कारण प्रतिस्पर्धा नाम की चीज ही खत्म हो गई तथा निजी क्षेत्र को खाली मैदान मिल गया। शुरु-शुरू में निजी क्षेत्र के विद्यालयों में शिक्षा के साथ ही अन्यचीजों का स्तर भी गुणवत्ता के अनुरूप रहा किन्तु ज्यों-ज्यों उनमें भीड़ बढ़ी वे पूरी तरह से पैसा बंटोरने वाली मशीन बनते चले गये। ये स्थिति उन कान्वेंट विद्यालयों तक की होने लगी जिनका संचालन ईसाई मिशनरियां करती हैं। कुल मिलाकर जैसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा गुरूग्राम और उसी के फौरन बाद घटित हादसे केवल एक या कुछ विद्यालयों का नहीं बल्कि पूरे देश का मामला है। सीबीआई जांच हेतु हरियाणा की खट्टर सरकार भी तैयार हो गई है। रेयान के प्रबंधन पर मामला भी दर्ज हो जाएगा। ज्यादा दबाव बना तो बड़ी बात नहीं उसकी मान्यता पर भी तलवार लटका दी जाए किन्तु ये समस्या का इलाज नहीं है। तमाम बदनामियों के बावजूद दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने सरकारी विद्यालयों पर काफी ध्यान दिया जिससे वे प्रतिस्पर्धा में खड़े होने की स्थिति में आ गए। उनमें पढ़ रहे विद्यार्थियों ने परीक्षा में अच्छे अंक लाकर बड़े-बड़े नामों वाले विद्यालयों के कान काट लिये किन्तु ऐसा देश के अन्य हिस्सों में करने की सोच नहीं है। राजनीतिक दलों की चिंता का केन्द्र केवल वोट हासिल करना है। इसके लिये वे बच्चों को मुफ्त बस्ता, किताबें, गणवेश और सायकिलें बांटने की सौजन्यता तो दिखाते हैं किन्तु विद्यालयों की बाकी जरूरतों को नजरंदाज किये जाने की वजह से मोटी तन्ख्वाह पाने वाले शिक्षकों में भी दायित्व बोध का अभाव बढ़ता गया। गुरूग्राम के हादसे ने महंगे ब्राण्ड बन चुके विद्यालयों में व्याप्त अव्यवस्थाओं को उजागर कर दिया है किन्तु जैसा हमारे देश का चलन है उसके अनुसार सारी सहानुभूतियां और संवेदनाएं तभी तक जीवित रहती हैं जब तक दूसरा बड़ा हादसा न हो जाए। रेयान समूह के कर्ता-धर्ता ऊंची पहुंच वाले हैं। इसलिये उनके ऊपर गाज गिरना आसान नहीं होगा। ज्यादा सख्ती हुई तो पूरे देश भर के निजी  शिक्षण संस्थान गिरोहबंदी कर समूची व्यवस्था पर दबाव बना लेंगे।  अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने किसी मामले में सरकारी अफसरों के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाये जाने का फरमान सुनाया था। उस पर कितना अमल हुआ ये कोई नहीं जानता लेकिन कड़वा सच ये है कि माननीय न्यायाधीशों में भी शायद इक्का-दुक्का कोई होंगे जिनके बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ते हों। समय आ गया है जब विद्यालयीन शिक्षा को टुकड़ों में देखने की बजय उस पर समग्र रूप से विचार किया जाए क्योंकि देश का भविष्य जिस बात पर निर्भर है सरकारी की नजर में वही सबसे उपेक्षित है। पूरा देश इस बात पर न्यायपालिका की जय-जयकार करेगा यदि सर्वोच्च न्यायालय सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों के साथ माननीय न्यायाधीशों को भी अपने बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने संबंधी निर्देश जारी करे। वरना तो जो चल रहा है वही चलता रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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