Thursday 28 September 2017

देखें जयंत को क्या जवाब देंगे यशवंत

यशवंत सिन्हा भले ही रास्वसंघ की शाखा से होते हुए भाजपा में नहीं आये परन्तु यहां वहां भटकते हुये जबसे पार्टी में आये तब से उसी में जमे जुए हैं। अपने प्रशासनिक अनुभव, बुद्धिजीवी सोच तथा अभिजात्यवर्गीय शालीनता के कारण उनकी छबि एक धीर-गंभीर नेता की रही है। वाजपेयी सरकार में वे वित्त मंत्री भी रहे। भाजपा ने भी श्री सिन्हा को भरपूर सम्मान दिया। पहले राज्यसभा तथा बाद में लोकसभा भेजा। लेकिन 2014 के चुनाव में यशवंत बाबू ने अपनी हजारीबाग सीट छोड़ दी और अपने पुत्र जयंत को आगे कर दिया जो आईआईटी दिल्ली से तकनीकी डिग्री और हार्वर्ड विवि से प्रबंधन में उपाधि लेने के बाद विश्वस्तरीय मुद्रा संगठनों में काम कर चुके थे। उनके अनुभव तथा योग्यता का मूल्यांकन करते हुए प्रधानमंत्री ने जयंत को वित्त राज्यमंत्री बनाकर अरुण जेटली का सहयोगी बना दिया। यद्यपि अपनी पत्नी पुनीता कुमारी सिन्हा के इन्फोसिस सहित कुछ बड़ी कंपनियों में निदेशक बनने पर जयंत पर उंगलियां उठीं परन्तु कोई गंभीर आरोप नहीं लग सका। बाद में प्रधानमंत्री ने उन्हें वित्त से हटाकर उड्डयन मंत्रालय दे दिया। इस बारे में कहा गया कि निवेश के क्षेत्र में जयंत के व्यापक अनुभव के कारण एयर इंडिया की दशा सुधारने हेतु उनका मंत्रालय बदला गया। लेकिन शान्त स्वभाव के माने जा रहे जयंत के विपरीत उनके पिता यशवंश बाबू समय-समय पर मोदी सरकार की नीतियों की मुखर होकर आलोचना करने लगे। बयान और लेख इसका जरिया बने। बौद्धिक वर्ग से जुड़े श्री सिन्हा की आलोचना के पीछे एक कारण ये भी बताया जाता है कि बेटे को लोकसभा में भेजने के बाद वेे झारखंड के मुख्यमंत्री पद के आकांक्षी थे जो उन्हें नहीं मिला। नीति आयोग, वित्त आयोग या अन्य कोई पद भी झोली में नहीं आया तब उन्हें राज्यसभा सीट की तलब हुई लेकिन पूर्व में की गई आलोचनात्मक टिप्पणियों के उपरांत प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की नजरों में वे उस बुजर्ग जमात के हिस्से मान लिये गये जो अपनी पूछ-परख कम होने पर बड़बड़ाया करती है। गत दिवस यशवंत बाबू फिर सुर्खियों में आ गए। एक अंग्रेजी दैनिक में लिखे लेख में उन्होंने नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक के लिये वित्तमंत्री अरुण जेटली को कठघरे में खड़ा करते हुए जो-जो कहा उससे भाजपा जितनी आहत हुई उससे ज्यादा कांग्रेस प्रफुल्लित हो गई क्योंकि अर्थव्यवस्था के ढलान पर होने को लेकर जो कुछ भी कांग्रेस कहती आ रही थी उसे श्री सिन्हा ने अपने लेख के माध्यम से विधिवत सत्यापित कर दिया। लेख की टाइमिंग भी विपक्ष को काफी अनुकूल लगी। राहुल गांधी और पी. चिदम्बरम ने बिना देर किये पूर्व वित्तमंत्री के तमाम आरापों को हाथों-हाथ लिया। सरकार की तरफ से यशवंत जी के विश्लेषण पर कोई खास टिप्पणी नहीं आई किन्तु गृहमंत्री राजनाथ ने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने विषयक बयान देकर जरूर चौंकाया क्योंकि वित्तीय विषयों पर उनका न कोई दखल रहा, न ही रुचि। बहरहाल वित्तमंत्री श्री जेटली की चुप्पी जरूर काबिले गौर रही क्योंकि श्री सिन्हा के तरकश में जितने भी तीर थे वे सभी उन्हीं पर छोड़े गये। इस संबंध में सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि यशवंत जी ने अपने पुत्र जयंत को आलोचना से सदैव परे रखा जो मोदी सरकार के बनते ही वित्त विभाग में बिठाए गए थे। यही नहीं सरकार की आर्थिक नीतियों के विश्लेषण और बचाव में भी उन्हें आगे किया जाता रहा। पिता की तरह जयंत भी अत्यंत सौम्य एवं कुशाग्र बुद्धि संपन्न दिखते हैं। गत दिवस वित्तमंत्री पर पिता द्वारा छोड़ी गई मिसाईलों के प्रत्युत्तर में आज बेटे ने भी अंग्रेजी समाचार पत्र में लेख लिखकर सारे आरोपों को खारिज कर दिया तथा एक-दो तिमाही के आधार पर निष्कर्ष निकालने को जल्दबाजी बताते हुए दावा किया कि प्रधानमंत्री द्वारा जिस नये भारत के निर्माण की परिकल्पना की गई है उसमें ये आर्थिक नीतियां सहायक होंगी जिनका उद्देश्य तात्कालिक की बजाय दूरगामी फायदे दिलवाना है। अभी तक यशवंत सिन्हा को भाजपा के भीतर से केवल एक समर्थक मिल सका है और वे हैं शत्रुघन सिन्हा जो मंत्री नहीं बनाए जाने की वजह से स्थायी तौर पर कोप भवन में जाकर बैठ गये। यशवंत बाबू के धमाके ने शत्रु का हौसला बढ़ाया किन्तु जयंत ने पिता के सारे आरोपों को उन्हीं की शैली में नकारकर एक रोचक स्थिति उत्पन्न कर दी है। चूंकि वित्तमंत्री पर किये गये हमले का जवाब बेटे की तरफ से दिया गया इसलिये अब देखने वाली बात ये रहेगी कि यशवंत बाबू अपनी तोपों का मुंह क्या बेटे की तरफ भी मोड़ते हैं या फिर अपनी बात का गलत अर्थ निकाले जाने जैसी सफाई देकर ठंडे हो जायेंगे। यूं भी उन्होंने जो कुछ कहा वह न तो नया था न ही अनोखा। नोटबंदी और जीएसटी के विरोध में वह सब रोजाना कहा सुना जाता रहा है। उस लिहाज से यशवंत बाबू का पूरा लेख अरुण जेटली पर खुन्नस निकालने वाला बन गया। प्रधानमंत्री ने गरीबी देखी है लेकिन वित्तमंत्री सभी को गरीबी देखने बाध्य कर देंगे जैसा कटाक्ष एक तरह से श्री सिन्हा की उस भड़ास जैसा दिखता है जो अपेक्षाएं पूरी न होने का परिणाम है। इतना जरूर है कि उनकी आलोचना ने कांग्रेस के हाथ में एक हथियार दे दिया। खासतौर पर पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम को जो अपने बेटे कार्ति पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के कसते शिकंजे से परेशान हैं। यशवंत बाबू का ये कहना कि वे नहीं बोले तो राष्ट्रीय कर्तव्य निभाने में विफल रहेंगे, अपनी जगह ठीक है। उनका ये कहना भी गलत नहीं है कि उनकी राय से सहमत होने के बाद भी भयवश तमाम भाजपा नेता चुप हैं। लेकिन श्री सिन्हा आलोचना के अपने नैसर्गिक अधिकार का उपयोग करते हुए एक अनुभवी बुजुर्ग की तरह वित्तमंत्री और सरकार को सलाह देने के अपने कर्तव्य को भूल गये। जो राहुल और पी. चिदम्बरम श्री सिन्हा द्वारा श्री जेटली की आलोचना को शत-प्रतिशत सही मान रहे हैं क्या उन्होंने बतौर वित्तमंत्री यशवंत बाबू की नीति और निर्णयों की प्रशंसा की थी? इस आधार पर श्री सिन्हा ने जो लिखा वह समीक्षत्मक तौर पर रहता तब ज्यादा उपयोगी माना जाता परन्तु उन्होंने अपने चर्चित लेख में पहले से चल रही बातों को ही दोहराया है जिससे बात असल मुद्दों से भटककर राजनीतिक दाँव-पेंच में उलझकर रह गई। अब चूंकि बेटे ने बिना विलंब किये पिता की तमाम टिप्पणियों का सिलसिलेवार जवाब दे ही दिया है तब इस बात की प्रतीक्षा रहेगी कि पिता श्री बेटे के कान खींचते हुए उसे बड़ों से जुबान लड़ाने के लिये फटकारते हैं या फिर मुलायम सिंह शैली में दांत निपोरते हुए कहेंगे कि क्या करें नालायक तो है पर फिर भी बाप होने के नाते मेरा आशीर्वाद उसे रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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