Wednesday 6 September 2017

भारत रेलगाड़ी का साधारण डिब्बा नहीं है

इन दिनों रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण देने का मामला गर्माया हुआ है। सोशल मीडिया से लेकर अदालत तक में इस पर बहस जारी है। भारत सरकार ने अपना रूख स्पष्ट करते हुए कहा कि 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को वापिस भेजने की तैयारी सरकार कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बावद पूछताछ की है। दरअसल हाल ही में प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण ने इन अवैध प्रवासियों को शरण देने हेतु याचिका लगाते हुए उन्हें जम्मू-कश्मीर में बसाने की पैरवी की। उसके बाद से ही इस मुद्दे पर बहस चल पड़ी। प्रश्न ये उठा कि जो कश्मीरी धारा 370 का हवाला देकर गैर कश्मीरी के वहां बसने की बात कर मरने-मारने उतारू हो जाते हैं वे इन विदेशियों को वहां जगह देने कैसे तैयार होंगे? फिर प्रश्न उठा कि म्यांमार (बर्मा) से खदेड़े जा रहे बांग्लादेश मूल के इन मुसलमानों को भारत क्यों शरण दें? जैसी खबर आ रही हैं उनके मुताबिक म्यांमार की सेना और सरकार सैकड़ों वर्षों से बसे रोहिंग्या मुसलमानों को घुसपैठिया मानकर निकाल बाहर करने में जुटी है। उसका आरोप है कि बौद्ध धर्म और संस्कृति के अनुयायी म्यांमार में ये मुसलमान एक तरह से वैसी ही समस्या उत्पन्न कर रहे हैं जैसी श्रीलंका में तमिलों के उग्रवादी संगठन लिट्टे ने कर रखी थी। लगता है वहां की सरकार ने भी श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति राजपक्षे से सीख लेकर रोहिंग्या मुसलमानों के सफाये का अभियान छेड़ दिया है। बांग्लादेश की सीमा से सटे म्यांमार के कुछ प्रान्तों में गृह युद्ध की परिस्थिति बन गई है। एक सप्ताह के भीतर ही एक लाख से ज्यादा रोहिंग्या बांग्लादेश आ चुके हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार 10 लाख रोहिंग्या म्यांमार में हैं जिनका दावा है कि उनके पूर्वज 400 वर्ष पूर्व यहां आए थे। बावजूद उसके म्यांमार सरकार ने अब तक उन्हें नागरिकता नहीं दी तथा अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी ही माना है। जाहिर है म्यांमार की अंदरूनी घटनाओं से भारत भी सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है। भारत में स्थायी रूप से बस चुके करोड़ों बांग्लादेशियों की पहिचान कर उन्हें वापिस भेजने की बात यदा-कदा उठती रही है। असम, बंगाल एवं बिहार के कई जिलों में तो ये बहुसंख्यक होने से चुनावी राजनीति को भी प्रभावित करने की स्थिति में हैं। पहले कांग्रेस और वामपंथी इनके संरक्षक बने और अब ममता बैनर्जी की पदलिप्सा के चलते बांग्लादेशी शरणार्थी अधिकृत तौर पर भारत के नागरिक बन गए हैं। अब तो पूरे भारत में ये फैल चुके हैं जिन्हें वापिस भेजना लगभग नामुमकिन है। यही वजह है कि ज्योंही 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की बात उठीं त्योंही उसका जबर्दस्त विरोध शुरू हो गया। वोट बैंक के नजरिये से हर चीज का विश्लेषण करने वाला तबका वसुधैव, कुटुम्कम का हवाला दे रहा है तो किसी को मानवता की चिंता है। मणिशंकर अय्यर सरीखे अति बौद्धिकता के शिकार नेता का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों को वापिस भेजने के निर्णय से शरणागत को शरण देने की हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय परंपरा का उल्लंघन होगा। एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि तिब्बत से आये लाखों बौद्धों को जब भारत ने स्थायी रूप से शरण दे दी तथा यही रवैया अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान से आये अन्य शरणार्थियों के बारे में अपनाया गया तब रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने में क्यों आनाकानी हो रही है? सवा अरब आबादी वाले देश में 40-50 हजार और आ गये तो क्या फर्क पड़ेगा, ये मानने वाले भी कम नहीं हैं किन्तु हमारे देश में आंतरिक सुरक्षा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति बरती गई जरा सी नरमी नासूर बन जायेगी। निश्चित रूप से तब म्यांमार से खदड़े जा रहे शरणार्थी धर्मशाला बन चुके भारत में घुसेंगे। यही स्थिति श्रीलंका में चले गृह-युद्ध के दौरान बनी थी। जहां तक सवाल मानवीय आधार पर सोचने का है तो इसमें भी सबसे पहले राष्ट्रहित देखना जरूरी है। 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान द्वारा जो अत्याचार किया गया उसके परिणामस्वरूप लाखों शरणार्थी भारत आने लगे। शुरू-शुरू में इसे गंभीरता से नहीं लिया गया परन्तु जब पानी गर्दन से ऊपर आने लगा तब भारत को सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी जिसके बाद बांग्लादेश रूपी नये राष्ट्र का जन्म तो हो गया किन्तुू जो शरणार्थी शिविरों में बसाए गए उनमें से शायद ही कोई भारत से वापिस लौटा। इससे भी बढ़कर बात ये रही कि बीते लगभग 45-46 वर्ष में उससे भी ज्यादा लोग अवैध रूप से सीमा पर कर भारत में आ बसे। उनमें से अधिकतर के पास नागरिकता संबंधी सारे दस्तावेज होने से उन्हें लौटने के लिये मजबूर कर पाना असंभव बन गया है। ऐसे में रोहिंग्या मुसलमानों के रूप में आई नई खेप के प्रति सहानुभूति रखना नई बीमारी को न्यौता देना होगा। इस बारे में हाल ही के कुछ वर्षों में प. एशियाई देशों में आईएसआईएस द्वारा उत्पन्न संकट के कारण सीरिया सहित अन्य देशों से पलायन कर यूरोपीय देशों में पहुंचे शरणार्थियों द्वारा उत्पन्न समस्या है। पहले तो ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी के अलावा अन्य देशों ने मानवीयता के आधार पर इन लोगों को पनाह दी किन्तु शीघ्र ही इसके घातक परिणाम मुस्लिम आतंकवाद के सिर उठाने के तौर पर इन पश्चिमी देशों को भुगतने पड़ गये। भारत में जनसंख्या असंतुलन को बिगाडऩे का जो सुनियोजित षडयंत्र चल रहा है उसे वोट बैंक की राजनीति खाद-पानी देकर बड़ा कर रही है। यही वजह है कि लगभग अनजानी सी रोहिंग्या मुसलमानों कौम को शरण देने का मुद्दा इतना गरमा गया। भारत इस समय जिस मजबूत स्थिति में आ गया है उसे देखते हुए उसे म्यांमार और बांग्लादेश दोनों को साफ शब्दों में समझा देना चाहिए कि हमारे यहां अब अवैध प्रवासियों को समायोजित करने की गुंजाईश नहीं है और यदि वे आते हैं तब उनके विरुद्ध भी वैसा ही व्यवहार होगा जैसा सीमा  पार कर रहे दुश्मन के साथ होता है। पूरी दुनिया को ये बताने का वक्त आ गया है कि भारत द्वितीय श्रेणी की साधरण रेल बोगी नहीं है जिसमें चाहे जितने लोग घुसते चले आयें। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प जिस तरह से अवैध प्रवासियों को निकाल बाहर करने के लिये कड़े कदम उठा रहे हैं उनसे भारत को भी सीख लेनी चाहिए।

-रवींद्र वाजपेयी

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