Wednesday 13 September 2017

अहंकार और संवादहीनता का दोषी कौन ?

राहुल गांधी के प्रशिक्षकों ने ये तय किया है कि विदेशों में उनकी छवि सुधारी जाए जिसका असर देश के भीतर भी होगा। उसी के तहत वे दो सप्ताह के अमेरिका दौरे पर हैं। गत दिवस एक विश्वविद्यालय में उनका संबोधन एवं सवाल जवाब कार्यक्रम समाचार माध्यमों में तेजी  से प्रसारित हुआ। मोदी सरकार की जो आलोचना उन्होंने की वह पुरानी बातों पर ही आधारित थी किन्तु दो मुद्दों पर राहुल के जवाब से राजनीतिक हलचल मची। इनमें पहला था कांग्रेस की हार की वजह और दूसरा वंशवाद का आरोप। श्री गांधी दोनों के बारे में खुलकर बोले किन्तु ऐसा करते समय वे एक बार फिर विवादों में उलझकर रह गए जिनसे फायदा कम नुकसान ज्यादा होने की स्थिति बन गई। काँग्रेस उपाध्यक्ष ने ये स्वीकार तो किया कि पार्टी 2012 में अहंकार में डूब गई थी जिसके अंतर्गत उसने जनता से बात करना बंद कर दिया था। राहुल की ये स्पष्टवादिता पूरी तरह सच है परन्तु उन्हें ये भी बताना चाहिए था कि अहंकार एवं संवादहीनता का कारण क्या था ? कांग्रेस में जो कुछ होता है वह गाँधी परिवार की सहमति और अनुमति के बिना संभव नहीं है। ऐसे में यदि पार्टी सत्ता के मद में डूबकर जनता से दूर हो गई तो क्या इसके लिये सोनिया गांधी और राहुल प्रथम दृष्टया दोषी नहीं थे? जनता तो दूर की बात है खुद काँग्रेसी भी गाँधी परिवार रूपी पार्टी की सर्वोच्च सत्ता के साथ कितना संवाद स्थापित कर पाते हैं ? युवा पीढ़ी के अनेक काँग्रेस नेता और कार्यकर्ता दबी जुबान ये शिकायत करते पाये जाते हैं कि राहुल से मिलना आसमान से तारे तोड़कर लाने सरीखा है। जिन बातों को श्री गाँधी ने 2014 की जबर्दस्त पराजय का कारण बताया क्या काँग्रेस उनसे उबर पाई है, ये भी बड़ा सवाल है। दूसरी बात जिस पर काँग्रेस उपाध्यक्ष ने स्वयं को और पार्टी को हँसी का पात्र बना डाला वह थी वंशवाद के आरोप पर उनकी सफाई। उनका ये कहना कि मेरे पीछे मत पड़ो क्योंकि भारत में ऐसा ही चलता है, उनकी अपरिपक्वता का ताजा प्रमाण बन गया। अखिलेश, स्टालिन, अनुराग ठाकुर, अभिषेक बच्चन, अंबानी और इन्फोसिस का उल्लेख करते हुए उन्होंने दूसरी पीढ़ी द्वारा विरासत को संभाले जाने का जो तर्क दिया उससे उन्होंने खुद ही ये साबित कर दिया कि वे वंशवाद की ही उपज हैं। और फिर जितने भी उदाहरण श्री गाँधी द्वारा दिये गये वे सभी दूसरी पीढ़ी के हैं किन्तु नेहरू-गांधी परिवार के वारिस के तौर पर राहुल चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बेहतर होता यदि जिन नामों का जिक्र उन्होंने किया उन सबसे बेहतर स्वयं को साबित कर ये स्पष्ट करते कि वे वंशवाद के दम पर नहीं वरन अपनी काबलियत के कारण पार्टी के शीर्ष पर जा पहुंचे हैं। 2019 के लिये प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के लिये उनका रजामंद होना गलत नहीं है क्योंकि कड़वा सच ये है कि काँग्रेस चेहरा विहीन हो चुकी है । गाँधी परिवार के करिश्मे पर अति-निर्भरता ने पार्टी के भीतर नये नेतृत्व के स्वाभाविक विकास को पूरी तरह ठप्प कर रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीखी आलोचना के बाद भी राहुल ने ये माना कि वे उनकी अपेक्षा कहीं बेहतर वक्ता हैं, जिनमें आम जनता के साथ संवाद स्थापित करने की जबर्दस्त क्षमता है किन्तु श्री गाँधी को ये भी स्वीकार करना चाहिये कि विदेशी दौरे में नरेन्द्र मोदी जहां भारत माँ की जय के नारे लगवाकर स्वयं को राष्ट्रीय नेता के रूप में पेश करते हैं वहीं राहुल काँग्रेस नेता की छवि में ही कैद होकर रह गए।

-रवींद्र वाजपेयी

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