Friday 29 September 2017

सवाल शिवपाल के भविष्य का है

लगता है मुलायम सिंह यादव के भीतर छिपा पहलवानी जोश ठंडा पड़ गया। तभी तो गत 25 तारीख को नई पार्टी की घोषणा करते-करते वे अपने बेटे को नालायक कहते हुए उस पर आशीर्वाद बरसाने में नहीं चूके और अब वे उसके आमंत्रण पर सपा के सम्मेलन में जाने को राजी होते बताए जा रहे हैं। गत दिवस अखिलेश तीन महीने बाद पिताश्री से मिले जबकि दोनों के घरों की बीच चन्द कदम का फासला ही है। अब यदि मुलायम सिंह अखिलेश के न्यौते पर पार्टी के अधिवेशन में चले गए तो उनके हनुमान बने भाई शिवपाल का क्या होगा ये बड़ा सवाल बनकर सामने आ रहा है और फिर उस मंच पर वे रामगोपाल यादव भी होंगे जिन्होंने मुलायम को हटाकर अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पेश किया था। बाप-बेटे के बीच की कलह यदि सुलह में बदलती है जो इसका असर सपा-बसपा के संभावित गठजोड़ पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा। विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो जाने के बाद ये चर्चा तेजी से चल पड़ी थी कि भाजपा को रोकने के लिये अखिलेश बसपा के साथ हाथ मिलाने की तरफ बढ़ रहे हैं। इसे बुआ (मायावती) और भतीजे का गठबंधन भी कहा जाने लगा किन्तु ये तब की स्थिति थी जब मुलायम और शिवपाल, अखिलेश की सपा से बाहर थे। यदि यादव परिवार की अंर्तकलह खत्म हो गई तब मायावती सपा के साथ आने की शायद ही सोचेंगी। हालांकि पिता-पुत्र के बीच ्रसौजन्यता और परस्पर प्रेम व सम्मान का आदान-प्रदान होता रहा और जैसी स्थितियां बन रही हैं उनके मद्देनजर पुनर्मिलन समारोह भी शीघ्र संभावित है किन्तु लाख टके का सवाल ये है कि तब शिवपाल क्या करेंगे? कुल मिलाकर ये लग रहा है कि समाजवादी पार्टी के भीतर हुआ महाभारत बाप-बेटे के बीच नहीं वरन चाचा-भतीजे में पार्टी पर वर्चस्व कायम करने को लेकर हुआ था। मुलायम सिंह ये समझ गए हैं कि अब कोई करिश्मा करने का दम-खम उनमें बचा नहीं है। इसीलिये वे भूल जाओ और माफ करो कि नीति पर चल पड़े हैं। देखने वाली बात ये होगी कि शिवपाल बड़े भाई को तो एक बार बर्दाश्त कर भी लें किन्तु वे उस रामगोपाल के साथ किस तरह बैठ सकेंगे जिसने उनकी जड़ें खोदने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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