बीएचयू (बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी) किसी परिचय की मोहताज नहीं है। भारतरत्न महामना पं. मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित ये संस्थान भारत में ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज विवि को टक्कर देने के उद्देश्य से खोला गया था। इसके स्तर का पता केवल इतने से ही चल जाता है कि पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन तथा रास्वसंघ के द्वितीय सर संघचालक एम.एस. गोलवलकर यहां अध्यापन कर चुके थे। लेकिन विगत दो-तीन दिनों से बीएचयू किसी दूसरे कारण से चर्चा में है। गत सप्ताह एक छात्रा के साथ रात्रि के समय हुई छेड़छाड़ के विरोध में छात्राएं भड़क उठीं तथा उन्होंने सुरक्षा की मांग लेकर आंदोलन शुरू कर दिया। कुलपति को बुलाने की उनकी जिद पूरी नहीं हुई तो वे जुलूस लेकर उनके आवास की तरफ बढ़ीं किन्तु वहाँ मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने लाठीचार्ज कर दिया। उसके बाद जैसा होता है वह सब हो गया। आगजनी, पेट्रोल बम जैसे प्रचलित तरीकों से माहौल गरमा गया। मामला छात्रों की पिटाई का होता तब शायद उस पर ज्यादा ध्यान न जाता परन्तु रात के समय छात्राओं पर डंडे बरसाए जाने का कोई भी समझदार व्यक्ति समर्थन नहीं करेगा। उस लिहाज से छात्राओं पर किया गया बल प्रयोग अनुचित एवं अनावश्यक ही कहा जाना चाहिए। छेड़छाड़ की घटना पर आक्रोशित छात्राएं जब कुलपति को बुलाने पर अड़ी थीं तब उन्हें वहां आकर छात्राओं के गुस्से को ठंडा करना चाहिये था। विवि के अन्य जिम्मेदार अधिकारी एवं अध्यापकों का उपयोग भी ऐसे अवसरों पर किया जाना उपयोगी होता है। कुलपति क्यों नहीं आए ये तो वही बता सकेंगे। हो सकता है पुलिस और विवि के सुरक्षा स्टॉफ ने सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें रोक दिया हो किन्तु छात्राओं पर बल प्रयोग ने मामले को दूसरी तरफ घुमा दिया। यदि इसे लेकर राजनीति हो रही है तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि विपक्ष में रहने पर भाजपा भी यही करती। उ.प्र. के मुख्यमंत्री ने तत्काल जाँच करवाने के आदेश दे दिये। तनाव को देखते हुए दशहरा अवकाश पहले ही घोषित कर छात्रावास खाली करवा लिये गये। मामला शुरू हुआ प्रधानमंत्री की वाराणसी यात्रा से। नरेन्द्र मोदी का काफिला जिस मार्ग से गुजरना था उसी पर छात्राएं उन्हें रोककर अपनी सुरक्षा संंबंधी मांग रखना चाह रही थीं परन्तु प्रशासन ने प्रधानमंत्री को दूसरे रास्ते से तो जाने की व्यवस्था कर दी। उसके बाद घटित घटनाक्रम ने न केवल राज्य अपितु केन्द्र सरकार को भी रक्षात्मक कर दिया। उधर कुलपति ने चुप्पी तोड़ते हुए बाहरी तत्वों की भूमिका की बात कह डाली। छात्राओं के आंदोलन में वाहनों को जलाने तथा पेट्रोल बम आदि के इस्तेमाल को लेकर भी सवाल उठने लगे। समूचे मामले का निष्पक्ष विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि प्रथम दृष्ट्या तो कुलपति एवं विवि प्रशासन स्थिति का जायजा लेने तथा तदनुसार तात्कालिक निर्णय लेने में चूक गया। दूसरी गलती छात्राओं पर किया गया लाठीचार्ज था। इसके औचित्य को साबित करने के लिये दिया गया कोई भी तर्क जनमानस को स्वीकार नहीं होगा क्योंकि ऐसे किसी भी मामले में सहानुभूति सदैव महिलाओं के पक्ष में रहती है। तीसरी और सबसे बड़ी गलती बनारस के स्थानीय प्रशासन की भी रही जो ये पता कर पाने में विफल रहा कि छात्राओं के एक छोटे से आंदोलन को उग्र रूप देने के लिये कुछ तत्व सक्रिय थे। ये बाहरी थे या विवि के भीतर के ये तो जांच से ही पता चलेगा किन्तु ये कहना कतई गलत नहीं होगा कि छात्राएं चाहे कितनी भी दबंग और आधुनिक क्यों न हो जाएं पर वे आगजनी तथा बम जैसे तरीके का उपयोग नहीं कर सकती। जाहिर है छात्र आंदोलनों के दौरान हमारे देश में जो होता रहा है वही बीएचयू में भी हुआ लेकिन प्रधानमंत्री के वाराणसी दौरे के समय अचानक आंदोलन का भड़क जाना कई संदेह भी उत्पन्न कर रहा है। जेएनयू तथा हैदराबाद विवि की जो घटनाएं देश भर में चर्चित हुई उनमें जिन वामपंथी ताकतों का हाथ था उन्हीं की भूमिका भी बीएचयू में होने का अंदेशा व्यक्त किया जाने लगा है। जिस फुर्ती से एक वर्ग विशेष ने घटना को तूल दिया वह भी कम रहस्यमय नहीं है। ये भी कहा जा सकता है कि विवि प्रशासन खास तौर पर कुलपति द्वारा आंदोलनकारी छात्राओं के गुस्से को हल्के में लेने की वजह से बिगड़ी स्थिति का लाभ उठाते हुए उपद्रवी तत्वों ने आग में मिट्टी का तेल डालने जैसी हरकत कर डाली हो। वैसे छात्राओं के धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी के जो फुटेज टीवी चैनलों पर दिखाई दिये उनसे ये तो लगता है कि अगुआई कर रही कुछ छात्राएं उस विचारधारा में प्रशिक्षित दिखीं जिसने जेएनयू में अपना आधिपत्य जमा रखा है। बीएचयू में छात्र राजनीति पहले सरीखी नहीं रही। अचानक भड़की इस आग को पूर्व नियोजित भले न कहा जाए किन्तु एक शान्तिपूर्ण आंदोलन को उग्ररूप देने के पीछे शातिर दिमाग हो सकते हैं। वरना रात में छात्राएं इतनी उत्तेजित शायद नहीं हुई होतीं। अब जो होना था सो हो चुका। विवि कई दिनों तक बंद रहेगा। शासन जाँच करवाएगा। दो-चार निलंबित हो जायेंगे। कुछ छात्र-छात्राएं भी दंडित किये जा सकते हैं किन्तु जिस मुद्दे पर विवाद शुरू हुआ उस पर ध्यान देना जरूरी है। रात के वक्त छात्राएं बाहर क्यों घूम रही थीं ये प्रश्न अस्वाभाविक नहीं है। रात में छात्राओं के बाहर जाने पर समय की पाबंदी भी विवाद के पीछे का एक कारण मानी जा रही है। बावजूद इसके अपने पवित्र वातावरण के लिये प्रतिष्ठित बीएचयू परिसर में रात के समय ही क्यों न सही किसी छात्रा के साथ अश्लील हरकत होना हर दृष्टि से निंदनीय और चिंतनीय है। उ.प्र. सरकार को चाहिए वह घटना की सूक्ष्म जाँच करवाए क्योंकि अब ये महज एक छेडख़ानी तक सीमित नहीं रही। अहिष्णुता का ढोल पीटने वाली विचारधारा जिस तरह अप्रासंगिक होकर मुख्यधारा से अलग हो रही है उससे उत्पन्न कुंठा इस तरह के घटनाक्रम को जहां मौका मिलता है दोहराने का काम कर रही है किन्तु दूसरी तरफ ये भी सही है कि राष्ट्रवादी सोच के लोग भी जिस आत्ममुग्धता तथा निश्चिंतता में जी रहे हैं उसकी वजह से भी इस तरह के हालात उत्पन्न होते रहते हैं। जेएनयू हैदराबाद, अलीगढ़ और अब बीएचयू की घटनाओं को टुकड़ों-टुकड़ों में देखने की बजाय यदि एक-दूसरे से जोड़कर देखें तो पता चल जाएगा कि माजरा क्या है?
-रवींद्र वाजपेयी
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