Monday 18 September 2017

कौशल और लेट लतीफी दोनों का स्मारक

गुजरात के बहुचर्चित सरदार सरोवर बांध का गत दिवस लोकार्पण निश्चित रूप से एक उल्लेखनीय घटना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा कि इसके निर्माण में दुनिया की ऐसी कोई ताकत नहीं थी जिसने रूकावटें उत्पन्न नहीं की। इसे लेकर राजनीति भी खूब हुई। मामला न्यायपालिका की सर्वोच्च आसंदी तक भी जा पहुंचा  आर्थिक संसाधनों की कमी से भी इस परियोजना को जूझना पड़ा। पर्यावरणवादियों द्वारा किये जा रहे जनांदोलन तो कल तक जारी रहे। खैर, देर आये दुरुस्त आये की कहावत को चरितार्थ करते हुए भगवान विश्वकर्मा की जयंती के पावन अवसर पर इस बांध का विधिवत शुभारंभ हो गया। ये अमेरिका के ग्रांट कोली के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। निश्चित रूप से ये भारत के लिये गौरव का क्षण है किन्तु इसी के साथ ही गंभीर चिंतन का विषय है कि अमेरिका ने ग्रांट कोली को मात्र 9 वर्ष में बना डाला और हमारे देश में सरदार सरोवर को पूरा होने में दस-बीस नहीं बल्कि 56 साल लग गये। 65 हजार करोड़ की इस विराट परियोजना से गुजरात, म.प्र., महाराष्ट्र और राजस्थान को बिजली और पानी के तौर पर उनका हिस्सा मिलेगा। पूरा होने के पहले ही बांध से बनने वाली बिजली से लगभग 25 प्रतिशत लागत वसूल हो चुकी है। 1945 में सरदार पटैल ने इसकी कल्पना की और 1961 में पं. नेहरू ने शिलान्यास किया लेकिन निर्माण का काम 1987 में जाकर शुरू हो सका। मात्र इतने से ही पता चल जाता है कि हमारे देश में नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली कहावत पर कितनी ईमानदारी से अमल होता है। मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी ने सरदार सरोवर परियोजना में काफी रूचि ली। संयोगवश म.प्र. में भी उनकी पार्टी सत्ता में थी। इस वजह से तमाम रूकावटें दूर की गईं और आखिरकार गत दिवस सरदार पटैल की दूरदर्शिता का यह स्मारक राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया। श्री मोदी ने इसे इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना बताकर गलत नहीं कहा लेकिन करोड़ों लोगों को बिजली और पानी उपलब्ध कराने वाली इस महत्वाकांक्षी परियोजना में हुए अकल्पनीय विलंब पर भी गहन चिंतन होना चाहिये। भारत एक लोकतांत्रिक संघीय गणराज्य है जहां व्यक्ति नहीं विधि (संविधान) का शासन है। स्वतंत्र न्यायपालिका भी है, जो व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को संरक्षण देती है। राज्यों के बीच उत्पन्न विवाद सुलझाने के लिये भी तरह-तरह के उपाय किये जाते हैं लेकिन ये कहने में कोई बुराई नहीं होगी कि बीते 70 साल में हमारा देश उस कार्य संस्कृति को नहीं अपना सका जिसके अंतर्गत किसी भी छोटे-बड़े काम में आने वाली बाधाओं एवं मतभेदों को एक निश्चित समय-सीमा में सुलझाकर रास्ता निकाला जाए। उस दृष्टि से आजादी के बाद बना भाखरा नंगल बांध निश्चित रूप से एक मील का पत्थर रहा जो बिना किसी रूकावट के बन गया तथा पंजाब की तरक्की का बड़ा कारण बना। फर्ज कीजिये सरदार सरोवर यदि 2017 की बजाय 20 वर्ष पूर्व तैयार कर लिया जाता तो अब तक बिजली उत्पादन के जरिये इसकी लागत वसूल हो जाती या उसके करीब पहुंचा गया होता। यही नहीं तो सिंचाई से बहुत बड़े क्षेत्र के किसानों की जिंदगी संवरने के साथ लाखों लोगों को पीने के पानी की किल्लत से राहत मिल जाती। केवल सरदार सरोवर ही क्यों अपितु हर छोटी-बड़ी परियोजना के शिलान्यास से उसके उद्घाटन के बीच लगने वाला समय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त भार के तौर पर सामने आता है। जबलपुर और गोंदिया के बीच नैरोगेज रेल लाईन को बदलकर ब्रॉडगेज करने में लंबा समय लगने से परियोजना की लागत कई गुना बढ़ गई। हॉलांकि इसके लिये कोई एक व्यक्ति या विभाग दोषी नहीं कहा जा सकता। जिसे जहां और जब भी अवसर मिला उसने पूरी ताकत से टाँग अड़ा दी। कुछ मामलों में न्यायपालिका की सुस्ती और अति सक्रियता भी गति अवरोधक बन जाती है। राजमार्गों का निर्माण हो या फ्लाय ओवर का, हर काम में अड़ंगा लगाने की विशेषज्ञता हमारे देश में पाई जाती है। यही वजह है कि 1945 में परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला जापान हमें बुलेट ट्रेन  के लिये कर्ज और तकनीकी कौशल दे रहा है वहीं हमसे दो वर्ष बाद साम्यवादी क्रांति के जरिये एक नई करवट लेने वाले चीन ने प्रगति का इतिहास रच दिया। सरदार सरोवर को लेकर हो चुकी राजनीति से ऊपर उठकर सोचें तो उसका उद्घाटन एक तरफ तो हमें विश्व के दूसरे सबसे बड़े बांध बनाने की गौवानुभूति करवाता है वहीं इसके निर्माण में में 56 साल का लंबा समय लगना इस बात के लिये शर्मिन्दा भी करता है कि विकास की राह पर हमारी रफ्तार कितनी धीमी है? बेहतर हो इस तरह के महत्वाकांक्षी और राष्ट्रीय महत्व के कार्यों को निश्चित समय में पूरा करने संबंधी व्यवस्था हर स्तर पर बनाई जावे। विवादों को निपटाने के लिये भी दृढ़ मानसिकता की जरूरत है वरना पंजाब-हरियाणा एवं कर्नाटक-तमिलनाडु नदी जल के लिये लड़ते रहेंगे तो महाराष्ट्र-कर्नाटक बेलगाम के लिये। सरदार पटैल और पं. नेहरू की आत्मा एक तरफ तो सरदार सरोवर बांध का लोकार्पण देखकर खुश हुई होगी किन्तु इस बात पर दुखी भी कम नहीं होगी कि जिस सपने को उन्होंने देखा था उसको साकार करने में न जाने कितना धन और पानी व्यर्थ में बहा दिया गया। सरदार सरोवर एक ओर तो हमारी तकनीकी कुशलता का प्रमाण है वहीं दूसरी तरफ इस बात को भी साबित करता है कि कोई काम समय पर नहीं करना हमारा चारित्रिक गुण बन गया है।

-रवींद्र वाजपेयी

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