Wednesday 27 September 2017

घाटी में लौट रही है अमन की बहार

काफी समय से कश्मीर को लेकर राजनीति काफी हद तक उदासीन है। रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने को लेकर उठे विवाद के परिप्रेक्ष्य में अवश्य घाटी से निकाल बाहर किये गये कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की चर्चा चली परन्तु फिर बात यहां-वहां घूमती रही। यूं भी देश में कहीं न कहीं कुछ न कुछ ऐसा होता है जिसके कारण समाचार माध्यम सारा काम छोड़ उस पर जुट जाते हैं। बीते काफी दिनों से हनीप्रीत खबरों की मंडी में ऊँचे भाव पर चल रही हैं। गत दिवस उनकी अग्रिम जमानत रद्द होने की ब्रेकिंग न्यूज देर रात तक हड़कंप मचाती रही। लेकिन सारा दोष समाचार बेचने वाली जमात को भी नहीं दिया जा सकता क्योंकि फिल्मों की तरह ही खबरों का भी एक बॉक्स ऑफिस बन गया है जिसमें कला फिल्मों की तरह अच्छी रचनात्मक खबर कब आती और चली जाती है पता ही नहीं चलता वहीं रोमांस, एक्शन, कॉमेडी जैसे नुस्खों पर आधारित फिल्म हफ्ते भर में 100-200 करोड़ समेट लेती है। राम-रहीम की गुफा और हनीप्रीत के हुस्न ने गौरी लंकेश को विस्मृतियों की गहरी खाई में धकेल दिया। चंडीगढ़ के करीब मोहाली में एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या को भी प्राईम टाईम में अपेक्षित जगह नहीं मिली। कहने का आशय इतना ही है कि कश्मीर घाटी के हालातों पर शाम को चार-छह जाने-पहिचाने चेहरों को बिठाकर अंतहीन चों-चों करवाने वाले टीवी चैनल ही नहीं समाचार पत्रों में भी घाटी के तेजी से सुधर रहे हालातों की वैसी जानकारी नहीं आती जैसी अपेक्षित है। 2017 की शुरूवात से ही केन्द्र सरकार द्वारा दिये गये खुले हाथ के कारण सुरक्षा बलों ने चुन-चुनकर आतंकवादियों को निपटाना शुरू कर दिया। एनआईए ने हुर्रियत पर छापेमारी कर धन की आपूर्ति रोक दी। न केवल घाटी वरन् देश के अन्य हिस्सों में बैठे अलगाववाद के समर्थकों की गर्दन में भी फंदा कस दिया गया। हुर्रियत के लगभग सभी बड़े नेताओं और उनके नाते-रिश्तेदारों की ऐसी घेराबंदी कर दी गई कि वे उससे निकल ही नहीं पा रहे। सीमा पर घुसपैठ रोकने के बारे में भी सुरक्षा बल बेहद सतर्क हो गये जिससे घाटी में बड़ी वारदात नहीं हो सकी। पत्थर फेंकने वाली भीड़ को भुगतान करने वाले ठेकेदारों पर शिकंजा कसने के भी अच्छे परिणाम निकले हैं। ऑपरेशन ऑल आऊट के जरिये सेना तथा उसके सहयोगी सुरक्षा बलों ने घाटी के आतंक प्रभावित इलाकों के कोने-कोने से पाक समर्थक दहशतगर्दों को निकालकर उनके सही अंजाम तक पहुंचा दिया। बड़ी आतंकी घटनाओं के सूत्रधारों को चुन-चुनकर मार दिये जाने से न केवल घाटी का दक्षिणी हिस्सा बल्कि अन्य इलाकों में भी आतंकवादियों की गतिविधियां खत्म भले न हुईं हों परन्तु ठहर जरूर गई हैं। पहले ये देखने में आता था कि आये दिन सुरक्षा बलों के जवान और अधिकारी शहीद हो जाया करते थे परन्तु अब बाजी पलट गई है। आतंकवादी और घुसपैठियों को मार गिराये जाने का समाचार दिनचर्या जैसा बन गया है। थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत सहित अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी ऑपरेशन ऑल आऊट पर पैनी नजर रख रहे हैं। इसी संदर्भ में जनरल का दो दिन पहले का बयान काफी उत्साहवर्धक रहा जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों को जमीन में ढाई फुट नीचे पहुंचाने जैसी बात कही थी। खबर है केन्द्र सरकार ने भी फौज को परिस्थितियों के अनुसार निर्णय करने की छूट दे दी है। तभी तो सेना की तरफ से जरूरत पडऩे पर दोबारा सर्जिकल स्ट्राइक सरीखा कदम उठाने जैसा बयान आता रहता है। जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती का ताजा बयान इस बात का प्रमाण है कि घाटी में हालात सामान्य होने की तरफ बढ़ रहे हैं। अब आतंकवादी के मारे जाने पर भीड़ का उन्मादी रूप नजर नहीं आ रहा। एन्काउन्टर स्थल पर सुरक्षा बलों के अभियान में बाधा डालकर आतंकवादी को सुरक्षित निकल भागने में मदद करने जैसी घटनाएं भी नहीं सुनाई दे रहीं। यद्यपि ये मान लेना तो पूरी तरह सही नहीं होगा कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद पूरी तरह समाप्त हो गया है परन्तु ये तो माना ही जा सकता है कि अब सुरक्षा बलों का दबाव बढ़ गया है। यही कारण है कि न हुर्रियत की तरफ से जहर बुझे तीर छोड़े जा रहे हैं और न ही अलगाववाद का बीजारोपण करने वाले शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूख और पोते उमर की जुबान ज्यादा चल पा रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये देखी जा रही है कि आतंकवादी गुटों का नेतृत्व करने वालों का सफाया करने में सुरक्षा बलों की रणनीति जिस तरह कामयाब रही उसने लगभग हाथ से निकल चुकी बाजी को काफी हद तक उलट दिया है। 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री ने जब कश्मीर पर गले लगाने वाली टिप्पणी की तब ये लगा कि शायद ढुलमुल नीतियां फिर वापिस आ जायेंगी। बीच में भाजपा नेता राम माधव द्वारा सभी से बात करने जैसा बयान देकर हुर्रियत के प्रति नरम रूख का संकेत दिया था। उसके बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी श्रीनगर गये तो लगा कि वे भी वार्ता का घिसापिटा सिलसिला फिर शुरू करेंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अलगाववादियों पर बल प्रयोग को लेकर नाक-मुंह सिकोडऩे वाली मेहबूबा मुफ्ती भी अब केन्द्र के साथ पूरी तरह सामंजस्य बनाकर चल रही हैं। इस प्रकार ये कहा जा सकता है कि विगत कुछ महीनों से चल रहा ऑपरेशन ऑल आऊट नामक अभियान अपने उद्देश्य में अब तक तो काफी सफल रहा है। केन्द्र सरकार ने भी जिस तरह धैर्य के साथ स्थितियों का विश्लेषण कर विश्व बिरादरी के सामने पाकिस्तान के कपड़े उतारे उससे भी काफी फायदा हुआ है। अच्छा होगा यदि समाचार माध्यम और विभिन्न राजनीतिक दल कश्मीर में सुधर रहे हालातों पर सकारात्म्क चर्चा एवं प्रतिक्रियाएं दें जिससे सुरक्षा बलों का उत्साहवर्धन हो तथा अलगाववादियों की हिम्मत टूटे। रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने का विरोध कर केन्द्र सरकार ने जो सख्ती दिखाई उसका भी सकारात्मक परिणाम देखने मिल रहा है।

-रवींद्र वाजपेयी

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