Thursday 14 September 2017

और भी चीजें है भारी कर लगाने लायक

पहले 15 दिनों में पेट्रोल-डीजल के दाम घटते-बढ़ते थे किन्तु गत जून माह से रोजाना भाव बदलने की व्यवस्था के बाद से पहले तो कीमतें कम होने का सिलसिला चला किन्तु बीते कुछ दिनों में वे सुरसा के मुुंह की तरह बढ़ते-बढ़ते गत तीन साल के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच गई। मुंबई में पेट्रोल 80 रुपये प्रति लीटर तक जब पहुंचा तब हो हल्ला मचा। अंतर्राष्ट्रीय मंडियों में कच्चे तेल का भाव लगातार गिरने से आम भारतीय अपेक्षा करता रहा कि उसे भी सस्ता पेट्रोल-डीजल  नसीब होगा किन्तु केन्द्र और राज्य सरकारों ने एक्साईज और स्थानीय करों के नाम पर दाम बढ़ाने का पक्का इंतजाम कर लिया। जीएसटी की दरें तय करने वाली समिति ने भी पेट्रोल-डीजल को सरकारों के रहमो-करम पर छोड़ दिया। इन दो चीजों पर सब्सिडी तो धीरे-धीरे खत्म हो ही चुकी थी किन्तु उससे भी जब सरकार का पेट नहीं भरा तब कभी एक्साईज तो कभी वैट बढ़ाकर दाम बढ़ाने का खेल जारी रखा गया। कई मर्तबा तो कच्चे तेल के दाम घटने की सूरत में जब सरकार को लगा कि करों की शक्ल में होने वाली उसकी कमाई कम हो गई तब उसने फटाफट उनमें वृद्धि कर उपभोक्ता से उसकी खुशी छीन ली। जो अधिकृत आँकड़े आये हैं उनके मुताबिक तेल कंपनियों का मुनाफा करोड़ और अरब नहीं खरबों का आँकड़ा छू रहा है। उसकी वजह से केन्द्र सरकार और पीछे-पीछे राज्य सरकारों के खजाने में भी जमकर पैसा आ रहा है। टैक्स लगाना सरकार का अधिकार भी है और जरूरत भी। एक समय था जब पेट्रोल-डीजल विलासिता की चीज थी। कार तो छोडिय़े, स्कूटर-मोटर सायकिल तक साधारण व्यक्ति की पहुंच से परे थे किंतु आज की स्थिति एकदम उलट है। पेट्रोल-डीजल का उपयोग जिस तेजी से बढ़ा और बढ़ता ही जा रहा है उसकी वजह से मांग में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होती चली गई लेकिन अब कच्चे तेल के आयात से होने वाला नुकसान खत्म हो चुका है। उल्टे ये सरकार की कमाई का बड़ा जरिया बन चुका है। परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने 2020 से पेट्रोल-डीजल चलित वाहनों का निर्माण बंद करने का जो दबाव कंपनियों पर बनाया है यदि वह काम कर गया तब निश्चित रूप से इनकी मांग और दाम दोनों में कमी की उम्मीद है परन्तु विगत कुछ समय में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार उछाल आने के पीछे सिर्फ और सिर्फ सरकारी टैक्स ही हैं। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने गत दिवस पेट्रोल के 80 रुपये का स्तर छूने पर जब चिंता व्यक्त की तो लगा वे जनता को राहत देने का कोई कदम उठायेंगे किन्तु उन्होंने ये कहते हुए कन्नी काट ली कि राज्यों को अपने कर घटाना चाहिये। इसी के साथ उन्होंने केन्द्र के हस्तक्षेप से भी इंकार कर दिया। जहां तक बात राज्यों की है तो कमोबेश सभी की आर्थिक स्थिति ओव्हर ड्राफ्ट वाली है। ऐसी स्थिति में वही राज्य सरकार शायद पेट्रोल-डीजल सस्ता करने की उदारता दिखा सकती हैं जहां निकट भविष्य में चुनाव होने को हैं।  नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापार में आये ठहराव के चलते सरकारी खजाने में आवक भी कम हुई है। इसकी भरपाई के लिये पेट्रोल-डीजल पर अधिकतम कर थोपने की सरकारी नीति के कारण ही वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम लुढ़कते जाने के बाद भी भारत में वे रिकार्ड ऊंचाई तक जा चहुंचे। दुर्भाग्य से सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को लेकर भी हमारे देश में जबर्दस्त उदासीन रवैया रहा जिसके कारण सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। इसके कारण एक तरफ वायु प्रदूषण है वहीं दूसरी तरफ पार्किंग की समस्या भी विकराल हो गई है। चूंकि बैटरी चलित वाहनों के आने में अभी देर है इसलिये तब तक पेट्रोल और डीजल का ही सहारा रहेगा। केन्द्र और राज्य दोनों की सरकार को ये सोचना चाहिये कि पेट्रोल और डीजल अब मात्र रईसों के उपयोग वाली चीजें नहीं रहीं अपितु साधारण जन भी इसका उपयोग कर रहे हैं। यहां तक कि अब तो किशोरावस्था के बच्चे तक सायकिलों की बजाय स्कूटी या बाईक चलाते देखे जा सकते हैं। ऐसे में यदि सरकार में बैठे लोग वाकई जनता के हमदर्द हैं तो पेट्रोल-डीजल सस्ता करने का एकमात्र उपाय उन पर लगने वाली  एक्साइज एवं अन्य करों में कमी करना ही है। सरकार को यदि राजस्व की इतनी ही जरूरत है तो वह लग्जरी कारों, पांच सितारा होटलों, सोने एवं हीरे के आभूषणों आदि पर और टैक्स लगा दे किन्तु पेट्रोल-डीजल के दामों को अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के मुताबिक ही रखे। भले ही इन पर भी करारोपण से उसके खजाने में रोजाना आवक होती है किन्तु ध्यान देने वाली बात ये भी है कि प्रगति की गाड़ी जिन पहियों पर दौड़ती है वे पेट्रोल-डीजल से ही गति पकड़ते हैं जिनकी बढ़ती कीमत से समूची अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। अब जबकि सरकार दावा कर रही है कि बीते वर्ष उसको कर देने वालों की संख्या बढ़ी है तथा कर के रूप में भी काफी धन आया है तब उसे चाहिये कि वह पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला टैक्स कम करे जिससे महंगाई घटने के साथ ही उत्पादन खर्च कम होगा तथा अर्थव्यवस्था में आये ठहराव को भी दूर किया जा सकेगा।

-रवींद्र वाजपेयी

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