Tuesday 26 September 2017

सौभाग्य को दुर्भाग्य से बचाना होगा

पूरा देश प्रतीक्षा करता रहा कि शायद प्रधानमंत्री कल शाम अर्थव्यवस्था में आये ठहराव को रोकने के लिये आर्थिक पैकेज की घोषणा करेंगे किन्तु भाजपा के पितृपुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती एवं शताब्दि वर्ष पर उन्होंने 4 करोड़ गरीबों के घरों में बिजली कनेक्शन देने हेतु सौभाग्य योजना का एलान कर सभी को चौंका दिया। राजनीतिक तौर पर इसे 2019 के चुनावी समर की तैयारी के रूप में देखा रहा है। जिन परिवारों के नाम 2011 की जनगणना के आधार पर गरीब के रूप में दर्ज हैं उन्हें बिजली कनेक्शन नि:शुल्क दिया जावेगा और जिनके नाम नहीं शामिल हो सके उनसे मात्र 500 रुपये लेकर बिजली कनेक्शन देने की योजना का शायद ही कोई विरोध करेगा। जिसके पास 500 रुपये भी नहीं होंगे उसे 10 मासिक किश्तों में भुगतान की सुविधा मिलेगी। एलईडी बल्ब, पंखा, मोबाईल चार्जिग प्वाईंट जैसी न्यूनतम विद्युत व्यवस्था से गरीब का घर रोशन हो तथा उसकी जिंदगी में सुविधाओं का उजाला हो सके ये कौन नहीं चाहेगा। जहां खंबे और तार नहीं पहुंच सकेंगे वहां सौर ऊर्जा से बिजली देने की बात भी नरेन्द्र मोदी ने की जिसका रख-रखाव पांच साल तक सरकार द्वारा किया जावेगा। सौभाग्य योजना के तहत सरकारी अमला विद्युत विहीन घरों में खुद जाकर उन्हें कनेक्शन देगा। 16000 करोड़ रुपये के खर्च वाले इस कार्यक्रम का लगभग 90 प्रतिशत भार केन्द्र तथा बचा हुआ राज्य वहन करेंगे। 2022 तक सभी को मकान देने की महत्वाकांक्षी योजना पर तेजी से काम कर रही मोदी सरकार ने 18000 ग्रामों तक विद्युत पहुंचाने के लक्ष्य को काफी हद तक पूरा कर ये तो साबित कर ही दिया कि यदि इच्छाशक्ति तथा उद्देश्य में ईमानदारी हो तो असंभव को भी आसान और संभव बनाया जा सकता है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का ये अप्रत्याशित कदम चुनावी पैंतरा है। हिमाचल और गुजरात के चुनाव में इसका लाभ शायद नहीं मिलेगा किन्तु लोकसभा चुनाव तक अवश्य इसके परिणाम महसूस किये जा सकेंगे। गत दिवस ही दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बड़ी बैठक शुरू हुई। दीनदयाल जी की जन्म शताब्दि के संदर्भ में ऐसी अनेक योजनाएं भाजपा शासित राज्य भी चला रहे हैं। श्री मोदी ने देश में बिजली के अतिरिक्त उत्पादन की बात कहकर इस सवाल को अभी से खत्म कर दिया कि जब बिजली है नहीं तो नए कनेक्शन देने का लाभ ही क्या है? दरअसल वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में जिस तेजी से काम चल रहा है उसे देखते हुए ऊर्जा संकट पर विजय प्राप्त करने की स्थिति बनती जा रही है। सौर ऊर्जा संबंधी उपकरण चूंकि विदेशों से आते थे अत: उनका लगाना घाटे का सौदा माना जाता रहा परन्तु अब उनका उत्पादन देश में भी होने लगा है जिसकी वजह से  प्रत्येक भवन की खाली छत पर सौर ऊर्जा के संयंत्र लगाने की तैयारी शासकीय स्तर पर की जा रही है। इस विषय में उत्साहित करने वाली बात ये है कि अब जनता के मन में भी सौर ऊर्जा के घरेलू उपयोग के फायदे बैठ गए हैं। कुल मिलाकर देखने वाली बात ये है कि यदि देश बिजली उत्पादन के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाता है तब गरीबों के घर का अंधेरा भी दूर होना जरूरी है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित सौभाग्य योजना का घोषित उद्देश्य तो मतदाता को लुभाना है लेकिन श्री मोदी की इस बात के लिये तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने मुफ्त बिजली के नाम पर बंटने वाली खैरात से परहेज किया। जिस तरह उज्ज्वला योजना के अंतर्गत मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन गरीब परिवारों में बांटे गए परन्तु नियमित रूप से गैस सिलेण्डर हेतु उसे भुगतान करना पड़ रहा है ठीक वैसे ही सौभाग्य योजना को सौजन्य भेंट का रूप दिया गया है जिसमें बिजली की खपत पर निर्धारित पैसा कनेक्शनधारी को देना पड़ेगा। इस आधार पर ये एक अच्छी सोच पर आधारित योजना है जिसके दूरगामी परिणाम गरीबों के जीवनस्तर में सुधार के रूप में सामने आने की उम्मीद की जा सकती है किन्तु प्रधानमंत्री द्वारा अतीत में की गई हर घोषणा अंजाम तक नहीं पहुंच सकी वरना विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचता। इस दृष्टि से ये भी देखा जाना चाहिए कि केन्द्र जिस उद्देश्य से सौभाग्य योजना लेकर आया है वह दुर्भाग्य का शिकार न हो जाए क्योंकि प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत ईमानदारी और दूरंदेशी के बावजूद अच्छे दिन का एहसास हो नहीं पा रहा। इस संबंध में ये सावधानी भी बरतनी होगी कि वास्तविक गरीब ही लाभान्वित हों वरना हाल ही में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) कार्डधारियों में संपन्न लोगों के शामिल होने का मामला भी सामने आया था। गरीबों के नाम पर चल रही तमाम कल्याणकारी योजनाओं का जिस तरह सरकारी विभाग तथा बिचौलिये मिलकर दुरूपयोग करते हैं उसकी वजह से इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ नारे से लगाकर तो नरेन्द्र मोदी की जन-धन योजना तक को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। लालकिले से होने वाली हर घोषणा पर यदि सही तरीके से अमल हो पाता तो हम चीन से काफी आगे निकल सकते थे।

-रवींद्र वाजपेयी

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