Monday 4 September 2017

मंत्रीमंडल : कम समय में ज्यादा काम करने की चुनौती

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत दिवस मंत्रिमंडल का तीसरा विस्तार और पुनर्गठन किया। इसमें शिवसेना, अद्रमुक तथा जद (यू) को चँूकि जगह नहीं मिली इस कारण एक बार फिर ये एनडीए की बजाय भाजपा का आयोजन बनकर रह गया किन्तु श्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने चौकाने वाले फैसले लेने की परंपरा जारी रखते हुए नये चेहरों के चयन, कुछ राज्यमंत्रियों की पदोन्नति तथा मंत्रालयों में परिवर्तन के जरिये ये दर्शा दिया कि ये खाली स्थान भरे की कवायद मात्र नहीं थी। जिस तरह कई राज्य मंत्री अपने काम के कारण केबिनेट में लाये गये तथा प्रदर्शन के आधार पर मौजूदा केबिनेट मंत्रियों के विभागों में फेरदबल किया गया उससे यह साफ हो गया कि प्रधानमंत्री सरकार के कामकाज को लेकर गंभीर और सतर्क दोनों हैं। जिन नये चेहरों को शामिल किया यद्यपि वे सभी राज्यमंत्री बनाये गये लेकिन उनमें से कुछ को स्वतंत्र प्रभार देना उनके अनुभव और दक्षता का सम्मान करना है। आर.के. सिंह, सत्यपाल सिंह, अल्फांजो कन्ननथनम एवं हरदीप पुरी के रूप में जिन चार नौकरशाहों को मंत्री बनाए जाने की सर्वाधिक चर्चा हुई वे सभी अपने सेवाकाल में काफी प्रसिद्ध हुए। उनकी कार्य के प्रति ईमानदारी तथा निर्णय क्षमता को सभी ने स्वीकार किया था। प्रधानमंत्री जिस कार्यशैली की अपेक्षा मंत्रियों से रखते हैं उसका एहसास कराने के लिये ही पार्टी के नेताओं को छोड़ चार पूर्व ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों को सरकार का हिस्सा बनाया गया जो अपनी विशिष्ट कार्यक्षमता के कारण सम्मानित रहे। इनमें भी श्री पुरी और श्री कन्ननथनम तो सांसद तक नहीं हैं। लेकिन जो सबसे बड़ा धमाका प्रधानमंत्री ने किया वह रहा निर्मला सीतारमण को केबिनेट मंत्री पदोन्नत कर रक्षामंत्री जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंप देना। श्री पार्रिकर और फिर अरुण जेटली समान वरिष्ठ तथा अनुभवी नेताओं के जिम्मे रखा गया रक्षा मंत्रालय अचानक श्रीमती सीतारमण सदृश अपेक्षाकृत कम अनुभवी मंत्री को सौंप देना प्रधानमंत्री की उस सोच का प्रमाण है जिसमें नई प्रतिभाओं की खोज कर उसे और संवारना है। वैसे तो रक्षा मंत्रालय का काम हर समय महत्वपूर्ण रहता है किन्तु मौजूदा स्थितियों में जब पाकिस्तान  के अलावा चीन के साथ भी सीमा पर तनाव का माहौल हो तब निर्मला जैसी साधारण सी नजर आने वाली महिला को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना खतरा उठाने जैसा है लेकिन श्री मोदी ऐसा करने के लिये ही जाने जाते हैं। मंत्रिमंडल में विभागों की अदला-बदली में जहां नितिन गड़करी को गंगा सफाई जैसा विभाग अतिरिक्त दिया गया वहीं उमाश्री भारती के स्तीफे की पेशकश के बाद चिरपरिचित शैली में रूठने की स्थिति के कारण यद्यपि उनकी छुट्टी तो नहीं की गई परन्तु पेयजल तथा स्वच्छता जैसा विभाग थमा दिया गया जो वैसे तो बेहद महत्वपूर्ण है परन्तु साध्वी को शायद उतनी चर्चा में नहीं रख सकेगा,  जितनी गंगा सफाई में मिलती थी। इसी तरह पियूष गोयल को ऊर्जा विभाग में उल्लेखनीय कार्य के पुरस्कार स्वरूप रेल मंत्रालय देना भी सही लगता है। लगातार हुई रेल दुर्घटनाओं से चौतरफा आलोचनाओं के शिकार हो गये सुरेश प्रभु की ईमानदारी का सम्मान करते हुए प्रधानमंत्री उन्हें मंत्री बनाए रखा तथा व्यापार और वाणिज्य मंत्रालय सौंप दिया जो अभी तक श्रीमती निर्मला सीतारमण के पास था। संयोग ये है कि श्री गोयल और श्री प्रभु दोनों ही पेशे से चार्टड अकांउटेंट हैं। धर्मेन्द्र प्रधान की पदोन्नति भी उनके बेहतर काम की वजह से होने के साथ उड़ीसा में भाजपा का जनाधार बढ़ाने का प्रयास है। श्री मोदी ने कई मंत्रियों को जहां अच्छे काम के लिये ईनाम दिया वहीं कुछ के पर कतरने के बाद भी संभलने का अवसर दिया। राजस्थान के गजेन्द्र सिंह शेखावत अपने जमीनी काम के चलते सरकार का हिस्सा बने जबकि अनंत कुमार हेगड़े भी कनार्टक विधानसभा के चुनाव के मद्देनजर एक दमदार चेहरे के तौर पर पेश किये जाने के कारण मंत्री बनाए गए। राज्यवर्धन राठौड़ को खेल विभाग में लाने के फैसले का तो विपक्ष भी विरोध नहीं कर सकेगा। राधामोहन सिंह से कृषि विभाग नहीं लेना जरूर चौंकाने वाला रहा। इस फेरबदल के पीछे 2019 के महा-मुकाबले की तैयारी के साथ-साथ पार्टी के परंपरागत मतदाताओं को साधे रखने का प्रयास भी है। उ.प्र. में एक ब्राम्हण को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद कलराज मिश्रा की छुट्टी के एवज में गोरखपुर के शिवप्रताप शुक्ल को शामिल किया गया वहीं बिहार से पार्टी के पुराने नेता अश्विनी चौबे को लाकर ब्राम्हण वर्ग के सम्मोहन का प्रयास किया गया जिसे ये लगने लगा था कि भाजपा भी मतों की लालच में दलित और पिछड़ी जातियों को ज्यादा महत्व देने लगी है। वैंकेया नायडू को उप राष्ट्रपति बनाने के बाद निर्मला  की बतौर रक्षामंत्री नियुक्ति के द्वारा प्रधानमंत्री ने दक्षिण भारत में भाजपा के अपने बूते खड़े होने की कार्ययोजना को स्पष्ट कर दिया। केरल के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी श्री कन्ननथनम का मंत्री बनना भी इसी का हिस्सा रहा। यद्यपि म.प्र. से आदिवासी कोटे के फग्गन सिंह कुलस्ते की विदाई के बदले टीकमगढ़ के सांसद वीरेन्द्र कुमार का चयन सबको आश्चर्यचकित कर गया क्योंकि दमोह सीट के सांसद प्रहलाद पटेल का नाम लगभग तय था। वीरेन्द्र कुमार छह बार के सांसद हैं तथा काफी पढ़े-लिखे हैं किन्तु न तो वे म.प्र. में दलित नेता के तौर पर धाक रखते हैं और न ही पार्टी संगठन में उनकी जोरदार पकड़ है। ऐसा लगता है प्रारंभिक ना-नुकुर के बाद उमाश्री भारती द्वारा मंत्री पद से नहीं हटने की जिद के चलते प्रहलाद पटेल की गाड़ी रुक गई क्योंकि दोनों लोधी जाति के नेता हैं। श्री कुलस्ते के क्षेत्र से आदिवासी महिला संपतिया उइके को राज्यसभा में भेजकर भाजपा ने पहले ही दाँव खेल दिया था, किन्तु वीरेन्द्र कुमार की लॉटरी लगने के पीछे उमाश्री की जिद ही रही वरना श्री पटैल को लंबे अरसे बाद मंत्री पद मिलना तय था। वे वर्तमान में भले ही बुंदेलखंड क्षेत्र से सांसद हों किन्तु म.प्र. के महाकौशल अंचल में  भाजपा के सबसे मजबूत जनाधार वाले नेता हैं, ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है।उ.प्र. से संजीव बालियान सरीखे विवादित मंत्री को हटाकर सत्यपाल सिंह जैसे जाट को जगह देकर श्री मोदी ने अजित सिंह की सियासत को भी धक्का दिया है। बागपत से उन्हें हराकर ही श्री सिंह सांसद बने। रिश्ते में अजित उनके साले होते हैं। कुल मिलाकर मंत्रिमंडल का पुनर्गठन तथाा फेरबदल समय की जरूरत के मुताबिक किया गया है। प्रधानमंत्री की इच्छा ये है कि मंत्रीगण तेजी के साथ ऐसा काम करें जिससे जनता को उसका लाभ न सिर्फ दिखाई दे, बल्कि महसूस भी हो। 2014 के वायदों को जमीन पर उतारने के लिये अब ज्यादा वक्त इस सरकार के पास नहीं है। नोट बंदी और जीएसटी के कारण अर्थव्यवस्था की गति धीमी पडऩा भी बड़ी चुनौती है। गुजरात सहित अनेक राज्यों के चुनाव 2019 की रिहर्सल के तौर पर होंगे। हताशा में डूबा विपक्ष संयुक्त होकर भाजपा को रोकने का जो प्रयास कर रहा है उससे निपटने के लिये भी प्रधानमंत्री को सतर्क रहना पड़ेगा। भले ही तमाम सर्वेक्षणों तथा आंकलनों के मुताबिक श्री मोदी तथा भाजपा  की स्थिति  अब भी काफी मजबूत है किन्तु संचार क्रांति के इस दौर में छोटी सी घटना भी हवा का रुख बदल सकती है। नरेन्द्र मोदी के बारे में ये प्रसिद्ध है कि वे सदैव भविष्य की चुनौतियों से निपटने के बारे में योजना बनाते रहते हैं तथा उनका हर कदम दूरगामी लक्ष्यों की तरफ होता है। डोकलाम विवाद पर चीन को कूटनीतिक शिकस्त देने के बाद प्रधानमंत्री की छबि और मजबूत हुई है। कल शपथ विधि के फौरन बाद वे ब्रिक्स सम्मेलन हेतु चीन चले गये किन्तु उसके पहले सभी मंत्रियों को विभागों का बंटवारा करने जैसा निर्णय ये दर्शाता है कि वे केवल दूसरों से ही अपेक्षा नहीं करते वरन स्वयं भी कार्यकुशलता का उदाहरण पेश करते हैं। उनका यही गुण उन्हें औरों से अलग और ऊंचा बना देता है। वैसे अभी 7-8  मंत्रियों की जगह है जो सहयोगी दलों के खाते में देर-सबेर जाना तय है।

- रवींद्र वाजपेयी

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