Friday 15 September 2017

चीनी चालाकी का चतुराई से मुकाबला

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की भारत यात्रा का शुरुवाती उद्देश्य भले ही बुलेट ट्रेन परियोजना का शिलान्यास रहा हो लेकिन इसका समापन जिस कूटनीतिक कदम से हुआ उसका तात्कालिक असर चीन की बौखलाहट के तौर पर सामने आ गया। भारत में एक तबका विगत दो दिनों से जापानी प्रधानमंत्री की अहमदाबाद यात्रा, नरेन्द्र मोदी के साथ रोड शो, मस्जिद का भ्रमण तथा बुलेट ट्रेन के शिलान्यास को गुजरात चुनाव के प्रचार के श्रीगणेश  के तौर पर ले रहा है। प्रधानमंत्री के इस महत्वाकांक्षी प्रकल्प को अनावश्यक मानकर उसका मजाक भी उड़ाया गया। लगातार हो रहे रेल हादसों को आधार बनाकर ये भी पूछा जा रहा है कि जब 120 किमी गति वाली गाडिय़ां पटरी से उतर रही हैं तब बुलेट ट्रेन को सुरक्षित चलाने की गारंटी कौन देगा? एक लाख करोड़ रुपये एक ही ट्रेन चलाने पर खर्च करने पर भी सवाल दागे जा रहे हैं। आखिर-आखिर में तो यहां तक कहा जाने लगा कि पितृ पक्ष में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। ऐसे में बुलेट ट्रेन का शिलान्यास करना अपशकुनी है जो 2019  में मोदी जी की सरकार के पतन के रूप में सामने आयेगा। लेकिन इस तरह की बातों को करने वाले अपनी कुंठा ही निकाल रहे हैं वरना 0.1 फीसदी की ब्याज दर पर 50 वर्ष के लिये जापान से ऋण का मिलना तथा 15 वर्ष बाद से उसकी अदायगी शुरू होने जैसी सुविधा के साथ यदि जापान बुलेट ट्रेन परियोजना को पूरा करने तैयार हुआ तब भारत तो हर तरह से फायदे में ही रहेगा। साथ ही एक विकसित देश के रूप में उसकी छवि भी सारी दुनिया में कायम होगी। लेकिन इससे हटकर शिंजो आबे की इस यात्रा से सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि ब्रिक्स सम्मेलन के बाद चीन को एक बार फिर भारतीय कूटनीतिक सफलता का जायजा मिल गया। जापानी प्रधानमंत्री ने जिस तरह खुलकर पाकिस्तान को मुंबई तथा पननकोट पर हुए आतंकी हमले के लिये लताड़ा वह निश्चित रूप मोदी सरकार की बड़ी कामयाबी है। पाकिस्तान को बीते दिनों अमेरिका भी धमका चुका है। ब्रिक्स सम्मेलन में भी चीन के होते हुए जो साझा बयान जारी हुआ उसमें आतंकवाद को संरक्षण देने के लिये पाकिस्तान की कड़ी आलोचना करते हुए जैश ए मोहम्मद एवं लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों के मुख्यालयों के पाकिस्तान में रहकर काम करने पर एतराज व्यक्त करते हुए कहा गया कि इसकी वजह से क्षेत्रीय सुरक्षा को जबर्दस्त खतरा है। शिंजो आबे और नरेन्द्र मोदी के बीच कूटनीतिक चर्चा के बाद जो बयान जारी हुआ उसमें पाकिस्तान को तो खरी-खरी सुनाई ही गई वहीं हिन्द और प्रशान्त महासागर में चीन द्वारा दिखाई जा रही दादागिरी के विरुद्ध भी आवाज उठाई गई। जगजाहिर है कि जापान के साथ चीन के रिश्ते लंबे समय से बेहद तनावपूर्ण चले आ रहे हैं। ऊपर से उत्तर कोरिया का झगड़ालू रवैया भी जापान की चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है। ऐसे वक्त में जापान और भारत की दोस्ती में आई अभूतपूर्व मजबूती से दक्षिण पूर्व एशिया की राजनीति में बड़ा एवं असरकारी बदलाव आना तय है। जापान की गणना विकसित देशों में होती है। इसे इत्तेफाक भी कह सकते हैं कि भारत के साथ उसकी दोस्ती ऐसे समय परवान चढ़ रही है जब दोनों देशों के रिश्ते चीन के साथ बेहद खराब हैं। चीन चूंकि पाकिस्तान की पीठ पर हाथ रखकर भारत को चिढ़ाने और डराने का काम करता रहा है इसलिये जापान ने भी पाकिस्तान की कड़ी निंदा कर चीन को ये संकेत देने की कोशिश की है कि वह भी उसकी दुखती रग को दबाना जानता है। भारत और जापान की मैत्री का दायरा व्यापार एवं विकास संबंधी गतिविधियों से ऊपर उठकर चीन विरोधी कूटनीतिक मोर्चा खोलने  की हद तक बढऩा समूचे एशिया में शक्ति संतुलन को प्रभावित करेगा। शीतयुद्ध के दौर की खेमे बाजी जिस तरह उ.कोरिया के बहाने नजर आ रही है उसके चलते रूस और अमेरिका एक बार फिर एक दूसरे को आंखे दिखाने पर उतारू हैं। ऐसी स्थिति में विकसित जापान और विकासशील भारत का कूटनीतिक गठजोड़ निश्चित तौर पर एक उल्लेखनीय घटना है। यही वजह है कि चीन ने शिंजो आबे और नरेन्द्र मोदी के बीच हुई वार्ता के बाद आये संयुक्त बयान पर नाराजगी भरी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। इसकी एक वजह बुलेट ट्रेन परियोजना का काम उसके हाथ से निकलना भी रहा। यद्यपि सत्ता में आने के बाद श्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति का भी अहमदाबाद में इसी तरह आत्मीय स्वागत किया था किन्तु पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को खुला संरक्षण देकर चीन ने भारत के प्रति अपनी दुर्भावना व्यक्त करने में संकोच नहीं किया। वन बेल्ट वन रोड नामक चीन की महत्वाकांक्षी योजना से दूरी बनाने की भारतीय नीति से नाराज चीन ने डोकलाम विवाद खड़ा कर दबाव बनाने की जो कोशिश की उसे भी मोदी सरकार ने बेअसर कर दिया। ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान की निंदा रोकने में असफल रहने के बाद चीन भारत को उपदेशात्मक लहजे में समझाइश देने लगा था किन्तु जापान के साथ साझेदारी कर नरेन्द्र मोदी ने जो कूटनीतिक दांव चला वह चीन को ये समझाने के लिये पर्याप्त है कि उसकी चालाकी का मुकाबला करने की चतुराई अब भारत में भी आ गई है।

-रवींद्र वाजपेयी

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