Thursday 21 September 2017

ममता द्वारा तुष्टीकरण से हो रहा ध्रुवीकरण

आजकल ममता बैनर्जी पर मुस्लिम परस्ती का जुनून सवार है। एक जमाने में मुलायम सिंह भी इसी के लिये कुख्यात हुए थे। रास्वसंघ प्रमुख डा. मोहन भागवत और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कोलकाता में भाषण देने पर रोक लगाने वाली ममता सरकार के राज में परसों एक मुस्लिम नेता ने रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण नहीं देने की केन्द्र सरकार की नीति पर जो भड़काऊ तकरीर हजारों श्रोताओं के समक्ष दी उस पर बंगाल सरकार को कोई ऐतराज नहीं हुआ। उसकी इसी दोमुंही धर्मनिरपेक्षता पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने गत दिवस तीखे सवाल किये। विजयादशमी बंगाल का सबसे बड़ा लोक महोत्सव है। देश के अन्य हिस्सों  में जो धूम दीपावली पर होती है वैसा ही नजारा बंगाल सहित पूर्वी भारत में पूजा (शारदेय नवरात्रि) के दौरान दिखाई देता है। इस वर्ष मोहर्रम, दशहरा के एक दिन बाद है। चूंकि दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन दशहरे के बाद तक चलता है इसलिये ममता सरकार ने मोहर्रम के दिन उस पर रोक लगा दी जिससे ताजियों के जुलूस के कारण हिन्दू-मुस्लिम समुदायों में टकराव की आशंका नहीं रहे। इस आदेश से हिन्दू समुदाय आक्रोशित हो उठा। राजनीति भी शुरू हो गई। कांग्रेस और वामपंथियों के हॉशिये पर खिसकते जाने से उपजे खाली स्थान को भरने हेतु लालायित भाजपा के लिये ममता का ये निर्णय मुंह मांगी मुराद बन गया। उधर प्रकरण उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया जिसने सरकार पर तीखा सवाल दागते हुए पूछ लिया कि एक तरफ वह राज्य में साम्प्रदायिक भाईचारे और सद्भाव का दावा करती है वहीं दूसरी तरफ दुर्गा प्रतिमाओं एवं ताजियों के एक साथ विसर्जन पर साम्प्रदायिक तनाव की आशंका भी व्यक्त करती है। दशहरा के दिन राज्य सरकार ने पहले शाम छह बजे तक दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन का समय निर्धारित किया था जिसे बढ़ाकर रात्रि 10 बजे तक कर दिया। उनके बाद ताजियों का जुलूस निकालने की अनुमति दी गई। उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राकेश तिवारी ने इस पर राज्य सरकार को लताड़ते हुए कहा कि वह अपनी प्रशासनिक अक्षमता को छिपाने के लिये इस तरह की आशंका जता रही है। ये भी पूछा गया कि यदि दशहरा और मोहर्रम एक ही दिन पड़ जाते तो सरकार क्या करती?  जो प्रश्न न्यायालय ने पूछे हैं यदि वे संघ, भाजपा और किसी अन्य संगठन द्वारा पूछे  जाते तब उसे साम्प्रदायिक रूप देकर राजनीति शुरू हो जाती। न्यायालय का ये पूछना कहीं से भी गलत नहीं है कि यदि बंगाल में हिन्दू-मुस्लिम समुदायों के बीच सौहाद्र्र है तब दोनों धर्मों के आयोजनों को लेकर इस तरह की प्रतिबंधात्मक कार्यवाही क्यों की गई? न्यायालय द्वारा उठाये गये अन्य सवालों के घेरे में भी राज्य सरकार फंसती दिखी। प्रकरण पर फैसला आज आयेगा लेकिन गत दिवस अदालत द्वारा राज्य सरकार पर जिस तरह प्रश्न दागे गये उससे ममता पर लग रहा मुस्लिम परस्ती का आरोप और पुख्ता हो गया। दशहरा और मोहर्रम गत वर्ष भी एक साथ पड़े थे। जबलपुर जैसे शहर में दशहरा और मोहर्रम दोनों काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं। दुर्गा प्रतिमाओं एवं ताजिये तथा सवारियों के विसर्जन पर एक समान भीड़ उमड़ती है। लेकिन प्रशासन द्वारा सूझ-बूझ के साथ निर्णय लिये जाने से दोनों आयोजन शांति पूर्वक संपन्न होते रहे हैं। कोलकाता में भी गत वर्ष ऐसा हुआ होगा किन्तु बीते एक वर्ष में ममता मुसलमानों के प्रति कुछ ज्यादा ही सौजन्यता दिखा रही हैं। इसका कारण बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि समय-समय पर सारी बातें सामने आ चुकी रही हैं। हिन्दू संगठनों के बढ़ते प्रभाव से वे बुरी तरह बौखला गई हैं जिसके चलते ऊल-जलूल फैसले लेती जा रही हैं। पूर्व में कई जगह हुए साम्प्रदायिक उपद्रवों के समय भी बंगाल सरकार का रवैया पूरी तरह हिंदू विरोधी रहा। इसकी वजह एकदम साफ है। ममता को पता है कि बांग्लादेश से अवैध रूप से आकर बस गए मुस्लिमों के कारण बंगाल का राजनीतिक संतुलन काफी कुछ उनकी तरफ झुक गया है। वामपंथी एवं कांग्रेस के बीच बंटते रहे मुस्लिम समुदाय के सामने वर्तमान स्थिति में सिवाय तृणमूल कांग्रेस के साथ जुडऩे के और कोई विकल्प नहीं है क्योंकि बंगाल सहित पूरे पूर्वोत्तर में भाजपा तेजी से पैर फैला रही है। असम, मणिपुर तथा अरूणाचल में वह सत्ता में आ गई है। बंगाल में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भले ही भाजपा को कहीं सफलता नहीं मिली किन्तु वह सीपीएम और कांग्रेस को धकेलकर दूसरे स्थान पर आ गई। उ.प्र., बिहार एवं अन्य राज्यों के जो लोग बंगाल में बसे हैं उन्हें भाजपा में अपना भविष्य नजर आने लगा है, ऐसे में ममता का खुलकर मुस्लिम समर्थक हो जाना छद्म निरपेक्ष राजनीति का ताजा उदाहरण है किन्तु वे भूल रही हैं कि जिन-जिन नेताओं ने हिन्दू विरोध का परचम उठाकर सत्ता पानी चाही वे कुछ समय तक तो सफल रहे लेकिन देर सबेर या तो सत्ता से बाहर हो गये या फिर घूम-फिरकर भाजपा की गोद में आ बैठे। मुलायम और लालू की स्थिति किसी से छिपी नहीं है वहीं रामविलास पासवान और नीतिश कुमार का वापिस एनडीए से जुडऩा काफी कुछ कह जाता है। इस लिहाज से सुश्री बैनर्जी जो भी कर रही हैं उससे उन्हें आज भले फायदा नजर आ रहा हो किन्तु भविष्य की दृष्टि से देखें तो वे भी हॉशिये में जगह बनाने मजबूर हो जायेंगी। कोलकाता उच्च न्यायालय का जो भी फैसला आए लेकिन इस विवाद ने राज्य की सीमा से बाहर निकलकर भी तुष्टीकरण के विरुद्ध माहौल बनाने में मदद की है। कोलकाता में बैठे कतिपय मुस्लिम धर्मगुरूओं को कुछ भी बोलने की आजादी मिली होने से भी ममता के विरुद्ध वातावरण पूरे देश में बन रहा है। यदि अब भी उन्हें समझ नहीं आई तब वे बंगाल में हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण में ही मददगार बनेंगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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