Thursday 14 March 2019

व्यापार पर चोट से ही सुधरेगा चीन

चीन ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने के प्रस्ताव को संरासंघ की सुरक्षा परिषद में वीटो कर दिया। ये पहला मौका नहीं है जब उसने इस तरह की हरकत से भारत को चिढ़ाया हो। पाकिस्तान के साथ हाल ही में उत्पन्न तनाव के बाद चीन ने जिस तरह से सहयोगात्मक रुख अपनाते हुए पाकिस्तान को इकतरफा समर्थन देने से परहेज किया। उससे ऐसा लगने लगा था कि वह भारत के साथ खड़ा होने को तैयार है किंतु अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसी महाशक्तियों द्वारा सुरक्षा परिषद में अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने के लिए लाये गए प्रस्ताव को चीन ने ये कहकर रोक दिया कि बिना पर्याप्त सबूतों के ऐसा करना उचित नहीं होगा। हालांकि उसके ऐसा करने से भारत को आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि पाकिस्तान के साथ चीन के केवल कूटनीतिक रिश्ते ही नहीं हैं। दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के रास्ते में वह भारत को सबसे बड़ा रोड़ा मानता है। पाकिस्तान से खैरात में मिली जमीन पर वन बेल्ट वन रोड के उसके महत्वाकांक्षी प्रकल्प में भारत ने जिस तरह अड़ंगा लगाया उससे भी वह भीतर-भीतर काफी नाराज है। पुलवामा हमले के बाद के घटनाचक्र में भले ही उसने भारत के साथ सौजन्यतापूर्ण व्यवहार किया हो किन्तु उसे ये डर भी सता रहा था कि पाकिस्तान के पूरी तरह दब जाने से भारत का पलड़ा यदि भारी हो गया तब वह चीन के दूरगामी हितों के लिए नुकसानदेह होगा। पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के संभावित हस्तक्षेप और बलूचिस्तान की आज़ादी की मुहिम को भारत का अप्रत्यक्ष समर्थन भी चीन की परेशानी का कारण हैं। उसे इस बात की भी चिंता सताने लगी है कि भारत के प्रति अंतर्राष्ट्रीय समर्थन अचानक बढऩे लगा है। हालांकि चीन के हुक्मरान मोदी सरकार से अच्छे रिश्ते बनाकर चल रहे हैं लेकिन वे पाकिस्तान को छोडऩे की हिम्मत भी नहीं कर पा रहे क्योंकि चीन ने वहां बड़ी मात्रा में पूंजी का निवेश कर रखा है। बहरहाल अब जबकि उसने एक बार फिर भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का साथ देने की नीति अपनाई है इसलिए हमें भी उसे अपनी नाराजगी का एहसास करवाना चाहिये। मौजूदा दौर की विश्व राजनीति में चीन निश्चित रूप से एक बड़ी ताकत है। आर्थिक दृष्टि से भी पश्चिमी देशों की ये मजबूरी हो गई है कि वे चीन के साथ रिश्ते कायम रखें क्योंकि लगभग सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अरबों-खरबों का निवेश चीन में हो चुका है। भले ही चीन अब माओ और चाऊ एन लाई द्वारा बनाए गए लौह आवरण से बाहर आ गया हो किन्तु उसकी विस्तारवादी सोच और गतिविधियां यथावत हैं। इसलिए मसूद अजहर को लेकर उसने जो अडिय़ल रवैया अपना रखा है वह आश्चर्यचकित नहीं करता। सवाल ये है कि भारत इसके जवाब में क्या करे? रही बात सबूत देने की तो ये चीन का कुतर्क है। कहा जाता है वह तिब्बत के निर्वासित नेता दलाई लामा को भारत द्वारा शरण और समर्थन देने से भन्नाया रहता है। उनके अरुणाचल जाने पर भी उसने आपत्ति जताई थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जब हाल में वहां गए तब भी चीन ने एतराज व्यक्त  किया था। बीते पांच साल में अरुणाचल सहित चीन से सटी सीमा पर सड़कें, पुल, हवाई अड्डे आदि विकसित किये जाने से भी बीजिंग खफा है। डोकलाम विवाद में भारत का सख्त रवैया भी उसे खटक रहा है। ऐसी स्थिति में भारत के पास केवल एक ही तरीका है जिससे चीन के ऊपर दबाव बनाया जा सकता है और वह है चीनी सामान के उपयोग को घटाना। विश्व व्यापार संगठन से बंधा होने की वजह से सरकारी स्तर पर ज्यादा कुछ किये जाने की स्थिति तो नहीं है लेकिन गैर राजनीतिक संगठनों के जरिये चीनी सामान के विरुद्ध माहौल बनाया जा सकता है। स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन इस बारे में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। इस बारे में एक बात उल्लेखनीय है कि भारत की जनता राष्ट्र की सुरक्षा और सम्मान को लेकर बहुत ही भावुक और संवेदनशील है। यदि उसके मन में ये बात बैठ जाए कि चीनी सामान के बहिष्कार से देश के हितों की रक्षा संभव है तो वह उसके लिए सहर्ष तत्पर हो जयेगी। लेकिन ऐसी कोशिशों में प्रतिबद्धता और ईमानदारी होनी चाहिए। चीन के हालिया रवैये से जो उम्मीद जागी थी वह सुरक्षा परिषद में उसकी शरारत से खत्म हो गई है। केंद्र सरकार ने तो कूटनीतिक मर्यादाओं के मुताबिक प्रतिक्रिया दे दी लेकिन जनता को भी चीन के विरुद्ध संगठित होना पड़ेगा। आधुनिक चीन के प्राण उसके व्यापार में बसते हैं। उस पर चोट होते ही वह सीधा हो जाएगा। ज्यादा न सही यदि महीने भर भी उसके सामान का आयात कम हो जाये तो उसके सुर बदल जाएंगे।  अभी तक के अनुभव ये बताते हैं कि पाकिस्तान की किसी भी हरकत के विरुद्ध तो पूरे देश में गुस्सा दिखाई दे जाता है परन्तु चीन द्वारा समय-समय पर की जाने वाली भारत विरोधी गतिविधियों को लेकर वैसी उग्र प्रतिक्रिया नहीं दिखाई देती। समय आ गया है जब पाकिस्तान की तरह से ही चीन विरोधी माहौल भी बनाया जाए।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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