Thursday 28 March 2019

फिर गलती कर बैठा विपक्ष

यदि विपक्ष हायतौबा नहीं करता तब देश के अधिकतर लोग ये जानने की कोशिश भी नहीं करते कि आखिऱ हुआ क्या था? भारत द्वारा आंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण और मिसाइल परीक्षण अब चौंकाने वाली बात नहीं रही। गत दिवस दोपहर प्रधानमंत्री ने देश को सम्बोधित करते हुए बताया कि रक्षा अनुसंधान के क्षेत्र में कार्यरत डीआरडीओ ने अंतरिक्ष में विचरण करने वाले उपग्रह को मार गिराने वाली मिसाइल का सफल परीक्षण कर लिया है। अपने ही देश के एक बेकार उपग्रह को नष्ट करने की यह तकनीक पहले ही परीक्षण में सफल रही। सबसे बड़ी बात ये रही कि इसका निर्माण पूर्णत: देश में ही हुआ। इस सफलता से भारत विश्व का चौथा देश बन गया जिसने अंतरिक्ष में मिसाइल से लक्ष्य को भेदने की क्षमता अर्जित कर ली। रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ही ऐसा देश है। पहले तीनों को अनेक असफलताओं के बाद कामयाबी मिली लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने पहले प्रयास में ही सफलता के शिखर को छू लिया। प्रधानमंत्री ने देश को ये खुशखबरी देते हुए वैज्ञानिकों के योगदान के लिए पूरे राष्ट्र की तरफ से उन्हें बधाई भी दी। यहां तक तो सब ठीक था लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए जो ट्वीट किया उसमें प्रधानमंत्री को विश्व रंगमंच दिवस की बधाई भी दे डाली। राष्ट्रीय गौरव के एक विषय को इस तरह हल्का करने की उनकी कोशिश निश्चित तौर पर राजनीतिक उद्देश्य से की गई थी। देखादेखी अन्य विपक्षी दलों ने भी प्रधानमंत्री द्वारा टीवी पर राष्ट्र को संबोधित किये जाने पर ऐतराज जताया और उसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन निरूपित करते हुए चुनाव आयोग से शिकायत भी कर दी। प्राप्त जानकारी के अनुसार आयोग ने सुरक्षा से जुड़ा मामला बताते हुए प्रधानमंत्री के भाषण हेतु पूर्वानुमति की जरूरत को अनावश्यक बताया लेकिन बाद में विपक्ष का ज्यादा दबाव पडऩे के कारण उसने एक जांच समिति बना दी। होना तो ये चाहिये था कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में वैज्ञानिकों की सफलता को सभी देशवासियों के लिए गौरव का क्षण बताते हुए उनके अथक परिश्रम की प्रशंसा की तो विपक्ष भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर वैज्ञानिकों की जय-जयकार करने लगता। लेकिन कांग्रेस ने बिना देर किए याद दिलाया कि देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम और रक्षा अनुसंधान का काम पं नेहरू और इंदिरा जी के कार्यकाल में ही शुरू हो चुका था। इस पर किसी ने कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की क्योंकि इसमें असत्य कुछ भी नहीं था। हॉलांकि इसके पीछे उद्देश्य मौजूदा सरकार को श्रेय से वंचित करना था। जब विपक्ष ने हो हल्ला मचाया तब दोनों तरफ  से शब्द बाणों का आदान-प्रदान शुरू हो गया  और इसी बीच ये तथ्य भी सामने आ गया कि 2012 में ही डीआरडीओ ने यह क्षमता हासिल कर ली थी लेकिन तत्कालीन सरकार ने परीक्षण की अनुमति नहीं दी। यदि प्रधानमंत्री के सम्बोधन के बाद विपक्ष व्यर्थ में प्रलाप नहीं करता तब सत्ता पक्ष को भी ज्यादा मुंह चलाने का अवसर नहीं मिलता और पूरी खबर वैज्ञानिक उपलब्धि तक सीमित रह जाती। प्रधानमंत्री को विश्व रंगमंच दिवस की बधाई देने जैसा कृत्य कांग्रेस अध्यक्ष की अपरिपक्वता को ही उजागर कर गया। यहां तक कि गत दिवस बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी तक ने उन्हें बच्चा कह डाला। वहीं असदुद्दीन ओवैसी के मुताबिक राहुल अभी भी राजनीति सीख रहे हैं। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष में उपग्रहों को मार गिराने वाली मिसाइल के सफल परीक्षण को लेकर कांग्रेस ही नहीं शेष विपक्ष एक बार फिर वही गलती दोहरा गया जो बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाकर की गई थी। प्रधानमंत्री एक राजनीतिक शख्स हैं इसलिये उनके कामकाज में राजनीति झलकना स्वाभाविक है। लेकिन गत दिवस किये गए परीक्षण का संबंध चूंकि सुरक्षा, विशेष रूप से शत्रु के उपग्रहों को नष्ट करने  की क्षमता अर्जित करने से है इसलिए ये जरूरी था कि भारत एक जिम्मेदार देश होने के नाते पूरी  दुनिया को बताए कि ये उपलब्धि आत्मरक्षार्थ है। इससे भी बढ़कर तो अंतरिक्ष में विचरण कर रहे उन भारतीय उपग्रहों को, जिनकी समयावधि पूरी हो जाने के बाद वे वहां निरुद्देश्य भीड़ बढा रहे हों, नष्ट करने के लिए भी इस तकनीक को हासिल करना जरूरी था। आजकल उपग्रह के जरिये जासूसी के अलावा भविष्य में आक्रमण जैसी किसी आशंका के मद्देनजऱ अंतरिक्ष में मार करने वाली मिसाइल एक आवश्यकता थी जिसे प्राप्त करने के बाद भारत विश्व की महाशक्ति बनने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया। उस लिहाज से बेहतर होता यदि विपक्ष इस  उपलब्धि पर वैज्ञानिकों की पीठ थपथपाकर राष्ट्रीय गौरव के क्षणों में हिस्सेदार बनता लेकिन कोपभवन में जाकर बैठ जाने की उसकी नीति ने बेवजह सत्ता पक्ष को अवसर प्रदान कर दिया। पं नेहरू और इंदिरा जी को अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखने का श्रेय देने वालों को इस बात का जवाब भी देना चाहिए कि पिछली सरकार ने किस वजह से इस परीक्षण की अनुमति नहीं दी। चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं। लेकिन कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनमें देशहित ही देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में अपनी सरकार की उपलब्धि की बजाय पूरा श्रेय वैज्ञानिकों के नाम कर दिया था तब विपक्ष को भी समझदारी दिखाते हुए उसी भाषा में बात करनी चाहिए थी। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर किसी और संदर्भ में तंज कसा होता तो उसे साधारण तरीके से लिया जाता लेकिन ऐसा लगता है उनकी सलाहकार मंडली में कुछ ज्यादा ही अक्लमंद (?) बैठे हुए हैं। चुनाव आयोग विपक्ष की शिकायत पर विचार करने के उपरांत जो भी फैसला दे लेकिन विपक्ष ने आलोचना के लिए आलोचना की नीति पर चलते हुए एक गम्भीर विषय पर भी राजनीतिक रागद्वेष का परिचय देकर अपनी छवि खराब कर ली। प्रधानमंत्री और समूचा सत्ता पक्ष इस बात पर प्रसन्न हो रहा होगा कि जिस बात का श्रेय वह खुलकर नहीं लेना चाहता था वह बिना मांगे विपक्ष की गलती से उसके खाते में आ गया।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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