Tuesday 5 March 2019

इस अभियान को अधूरा छोडऩा आत्मघाती होगा

जो लोग ये समझ बैठे थे कि विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा की गई शांति की पेशकश और कई बड़े देशों द्वारा दिये गए मध्यस्थता प्रस्ताव के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे मौजूदा तनाव की इतिश्री हो जाएगी, उनकी गलतफहमी गत दिवस दूर हो गई होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वायु सेनाध्यक्ष बीएस धनोआ ने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई का जो कदम उठाया गया है वह पीछे नहीं हटेगा। श्री मोदी ने तो साफ -साफ  कह दिया कि पाकिस्तान के भीतर घुसकर मारेंगे। 26 फरवरी की एयर स्ट्राइक पर सन्देह करने वालों को वायु सेनाध्यक्ष ने जवाब दिया कि यदि हमारे पायलट खाली जंगल में बम गिरा आए थे तब पाकिस्तान जवाब क्यों देता? उन्होंने मारे गए आतंकवादियों की संख्या पर भी साफ  कर दिया कि वायुसेना उसे दिए गए लक्ष्य पर निशाना साधती है, लाशें नहीं गिनती। वैसे भी चंद मिनिटों के अभियान में ये सब सम्भव भी नहीं था। बहरहाल प्रधानमंत्री और वायु सेनाध्यक्ष के बयानों से एक बात स्पष्ट हो गई कि विपक्ष के अलावा केंद्र सरकार के अन्य आलोचकों द्वारा बनाए जा रहे भ्रमजाल से सरकार और सेना दोनों अप्रभावित हैं और पाकिस्तान के प्रति आक्रामक रवैये में कोई कमी नहीं आई है। भले ही इसे आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा हो लेकिन देशहित के लिहाज से देखने पर ये लगेगा कि आतंकवाद के विरुद्ध जो अभियान शुरू किया गया है उसे अंजाम तक पहुंचाए बिना यदि बीच में रोक दिया गया तो ये दोहरा नुकसान पहुंचाने वाला होगा। पुलवामा हमले के बाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को जो सहानुभूति और समर्थन मिला वह अभूतपूर्व कहा जा सकता है। पहली बार पाकिस्तान को विश्व की लगभग सभी महाशक्तियों ने जमकर लताड़ा जिसका नतीजा ये हुआ कि इमरान खान चिकनी-चुपड़ी बातें करने लगे। वरना और कोई समय होता तो वे भारत सरकार द्वारा औपचारिक निवेदन के बगैर अभिनंदन को इतनी आसानी से रिहा नहीं करते। संरासंघ में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने संबंधी प्रस्ताव का विरोध न करने की पाकिस्तानी नीति भी इस बात का संकेत है कि भारत के हमलावर रुख से वह भारी दबाव में है। मसूद की बीमारी का प्रचार कर वह उस दबाव को कम करने की कोशिश जरूर कर रहा है लेकिन उसकी विश्वसनीयता चूंकि न के बराबर है इसलिए उस पर किसी को भरोसा नहीं रहा। शायद यही वजह है कि पुलवामा हमले के बाद सेना को पूरी छूट देने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया और उसी के परिणामस्वरूप वायुसेना ने बालाकोट में जैश ए मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर बम गिराए। इस हमले के बाद भारत पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता था। लेकिन अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, द. अफ्रीका जैसे देशों ने भारतीय कार्रवाई का न सिर्फ समर्थन किया बल्कि पाकिस्तान को आतंकवादियों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के लिए भी कहा। इसी का प्रभाव हुआ जो हमेशा ऐंठ कर बात करने वाले पाकिस्तान के मुंह से मिल-बैठकर बातचीत के जरिये विवाद सुलझाने जैसी बातें निकलने लगीं। चूंकि चीन ने भी पाकिस्तान को अपेक्षित सहयोग नहीं दिया उसके कारण वहां की सरकार और सेना दोनों का मनोबल गिर गया। ये भी संभव है कि इमरान खान को भारत की तरफ  से इस तरह के आक्रामक रवैये की उम्मीद नहीं रही होगी। पठानकोट और उरी पर हुए हमले के बाद भी मोदी सरकार ने हालांकि बदला लेने की बात कही तथा थलसेना ने एक सर्जिकल स्ट्राइक भी की किन्तु वह पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके तक ही  सीमित रही। लेकिन बीती 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने न केवल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से बल्कि पाकिस्तान के भीतर घुसकर बालाकोट नामक पहाड़ी एवं जंगली क्षेत्र में चल रहे आतंकवादी शिविर पर बम गिराने जैसा दुस्साहसिक कारनामा कर दिखाया। वैसे किसी देश की सीमा में इस तरह घुसकर सैन्य कार्रवाई करना हमले की परिभाषा में आता है किंतु भारत की तरफ  से ये सावधानी बरती गई कि वायुसेना के निशाने पर केवल आतंकवादी अड्डे रहें। चूंकि पाकिस्तान की धरती पर न तो एक भी नागरिक की मौत हुई और न ही किसी संपत्ति को क्षति पहुँची इसलिये भारतीय कार्रवाई का नैतिक पक्ष मजबूत हुआ। आत्मरक्षा के सिद्धांत के आधार पर किये गए इस हवाई हमले को इसीलिए विश्वव्यापी समर्थन मिला। उस लिहाज से प्रधानमंत्री और वायु सेनाध्यक्ष ने गत दिवस 26 फरवरी की कार्रवाई को दोहराए जाने की जो बात कही वह भारत के ऊंचे हौसले का परिचायक है। श्री मोदी का लहजा तो कुछ ज्यादा ही सख्त था। उन्होंने विपक्ष द्वारा उठाये जा रहे सवालों पर भी नाराजगी व्यक्त की वहीं श्री धनोआ ने फौजी मर्यादाओं का पालन करते हुए राजनीतिक सत्ता की सर्वोच्चता को स्वीकार भी किया। सरकार और सेना के बीच का ये संतुलन शत्रु के विरुद्ध हमलावर रुख अपनाने के लिए बेहद जरूरी होता है। आतंकवादी वारदातों में आए दिन होने वाली फौजियों की शहादत से सेना के मन में भी भीतर-भीतर गुस्सा तो था ही। हर वारदात के बाद केंद्र सरकार कड़ी कार्रवाई का दम तो भरती थी लेकिन वह हवा-हवाई होता रहा। इसकी वजह से पूरे देश में मोदी सरकार के प्रति नाराजगी थी। लेकिन बालाकोट पर हमले के बाद से ये भरोसा दोबारा कायम हो सका है कि भारत केवल कागजों पर ही एक बड़ी सामरिक शक्ति नहीं वरन युद्ध के मैदान में भी इसे सिद्ध करने में सक्षम है। पाकिस्तान के जवाबी हमले में एक एफ-16 लड़ाकू विमान को गिराकर भारतीय वायुसेना ने अमेरिका तक को चौंका दिया। ये सब देखते हुए प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान में घुसकर मारने और वायु सेनाध्यक्ष द्वारा कार्रवाई जारी रखने जैसी बातें आश्वस्त करने वाली हैं। ये मुहिम कब तक चलेगी कहना कठिन है। अन्तर्राष्ट्रीय दबाव और अपनी घरेलू स्थितियों की वजह से इमरान सरकार ज्यादा प्रतिरोध करने में भी सक्षम नहीं है। यूँ भी यदि पाकिस्तान आतंकवाद से मुक्त हो सका तो ये उसके लिए भी लिए भी बेहतर होगा। भारत को चाहिए वह इन अनुकूल हालातों का पूरा-पूरा फायदा उठाए और इस अभियान को पूर्णता तक पहुंचाए। रही बात चुनाव और आचार संहिता की तो बाकी सब बातें देश की सुरक्षा के आगे महत्वहीन हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment