Thursday 7 March 2019

स्वच्छता को संस्कार बनाना होगा

राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण में मप्र के इंदौर को एक बार फिर देश के सबसे स्वच्छ शहर और भोपाल को सबसे स्वच्छ राजधानी होने का जो गौरव प्राप्त हुआ वह पूरे प्रदेश के लिए सम्मान की बात है । देश भर में किए गये सर्वेक्षण के उपरांत गत दिवस जो परिणाम आए उनसे ये तो लगा ही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारम्भ राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन जनता के स्तर पर भी मुख्यधारा का एजेंडा बन गया है। हालांकि अभी भी इस मुहिम में सरकारी भागीदारी ही ज्यादा है लेकिन ये स्वीकार करना गलत नहीं होगा कि स्वच्छता को लेकर प्रारम्भ प्रतियोगिता ने एक उपेक्षित समझे जाने वाले विषय को प्रासंगिक बना दिया है । यद्यपि पुरस्कार बांटने मात्र से स्वच्छता नहीं लाई जा सकती । भारतीय जीवनशैली में स्वच्छता का विशेष महत्व होता है । इसे संस्कार कहना भी उचित ही होगा । इसीलिए जब विश्व हैंड वॉश डे पर हाथ धोने जैसी बातें प्रचारित होती हैं तब हंसी आती है क्योंकि ये तो हमारे समाज में बचपन से ही सिखाया जाता है । आज भी ग्रामीण क्षेत्रों और गरीबों की बस्तियों में घर के सामने लिपाई-पुताई के जरिये सफाई रखी जाती है । बेहतर हो स्वच्छता को प्रतियोगिता और पुरस्कार से आगे बढ़ाकर दैनिक जीवन का संस्कार बनाने की मुहिम चलाई जाए। इसमें दो मत नहीं है कि इस तरह के अभियान से नागरिकों की सोच भी प्रभावित होती है । मसलन चंडीगढ़ के लोग अपने शहर को सिटी ब्यूटीफुल कहे जाने से केवल गौरवान्वित ही नहीं महसूस करते अपितु इस विशेषण को बनाए रखने के प्रति सजग भी रहते हैं । मप्र के इंदौर शहर में भी स्वच्छता लोगों की आदत में शुमार हुई है। ये प्रतियोगिता लोगों में जागरूकता फैलाने के लिहाज से नितांत उपयोगी और लाभदायक है लेकिन अब जरूरी हो गया है कि इस अभियान को केवल प्रतियोगिता और सर्वेक्षण से बढ़ाकर एक दैनिक क्रिया के तौर पर विकसित किया जाए । सिंगापुर एक शहर का देश है जो पांच दशक पहले तक गंदगी से पटा था किंतु वहां के प्रधानमंत्री  ने खुद होकर सफाई अभियान का नेतृत्व किया जिसने सिंगापुर की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल दी । जिन शहरों ने इस वर्ष बाजी मारी उनकी प्रशंसा होनी चाहिए और जो पिछड़ गए वे अगले साल के सर्वेक्षण का इंतजार किये बिना स्वच्छता को कर्तव्य के तौर पर अपना लें तो वे किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं रहेंगे ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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