Monday 18 March 2019

देश को स्व. पर्रिकर जैसे नेताओं की जरूरत


किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसके बारे में अच्छी-अच्छी बातें कहना लोकाचार है। उसके सद्गुणों और व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं को भी उजागर किया जाता है। लेकिन कुछ विरले ही होते हैं जो अपने आचरण के आधार पर जीते जी किंवदंती बन जाते हैं। मृत्यु से जबर्दस्त संघर्ष करते हुए अंतत: संसार को अलविदा कह देने वाले गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर उन्हीं गिने चुने लोगों में से थे जो अपने जीवनकाल में ही सादगी, सरलता और ईमानदारी के जीवंत प्रतीक चिन्ह बन चुके थे। मुंबई आईआईटी से बी.टेक करने के बाद राजनीति में आये स्व. पर्रिकर ने रास्वसंघ के माध्यम से जिन संस्कारों को ग्रहण किया उनका जीवनपर्यंत पालन करते हुए जो उदाहरण प्रस्तुत किया वह अनुकरणीय होते हुए भी भारतीय राजनीति में अपवादस्वरूप ही देखने मिलता है। वामपंथी मुख्यमंत्री नृपेन चक्रवर्ती और मानक सरकार जरूर पर्रिकर जी के समकक्ष रखे जा सकते हैं। संयोगवश ये तीनों त्रिपुरा और गोवा जैसे छोटे से राज्य के शासक बने। स्व. पर्रिकर को जरूर मोदी सरकार में रक्षा मंत्री बनने का अवसर मिला लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका अतिथि कलाकार जैसी रही और नियति उन्हें गोवा लौटा लाई। बावजूद उसके उन्हें पूरे देश में सम्मान की दृष्टि से देखा गया तो उसकी वजह भाजपा का एक राष्ट्रीय दल के रूप में उभरना था। नृपेन दा और मानक सरकार ने भी सत्ता में रहते हुए वही आदर्श प्रस्तुत किया किन्तु वामपंथी विचारधारा के पराभव से उन दोनों की प्रसिद्धि को ग्रहण लग गया। वैसे तो ममता बैनर्जी सत्ता में आकर भी सादगी की जि़ंदगी जीने के लिए प्रसिद्ध हैं लेकिन उनके साथ अन्य विवाद जिस तरह जुड़ते रहते हैं उनकी वजह से वे सरलता वाली छवि नहीं बना सकीं। और फिर भ्रष्टाचार भी उनके इर्द गिर्द मंडराता देखा जा सकता है। आज देश का जो माहौल है उसमें सर्वत्र विकास की चर्चा होती है। उसके विभिन्न मॉडल भी उल्लेखित होते हैं। एक समय था जब पंजाब ने तरक्की का उदाहरण देश के समक्ष रखा। उसके बाद महाराष्ट्र प्रकाश में आया। आंध्र में चन्द्रबाबू नायडू ने सायबर क्रांति के जरिये खुद को विकास पुरुष के तौर पर स्थापित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात मॉडल को प्रचारित करते हुए देश की सत्ता हसिल करने का कारनामा कर दिखाया। सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाएं और कार्यक्रम शुरु करने वाले अनेक मुख्यमंत्री भी मॉडल बनकर उभरे लेकिन सही मायनों में आज देश को जिस मॉडल की जरूरत है वह स्व. मनोहर पर्रिकर जैसा होना चाहिये जो उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त हो, जिसकी सोच आधुनिक हो और जो अपनी निजी उन्नति की चिंता छोड़कर समाज के विकास के लिये अपनी योग्यता और क्षमता का उपयोग करे। मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने और उनकी स्व. पत्नी ने एक आम आदमी की जि़ंदगी जीने का जो आदर्श पेश किया वह समाचार माध्यमों के जरिये काफी पहले से देश और दुनिया की जानकारी में आ चुका था। अनेक लोगों के अनुसार ये सब केवल दिखावा है लेकिन स्व.पर्रिकर ने अपने राज्य के विकास के लिए जो कार्य किये उनसे ये साबित हो गया कि उनकी सादगी केवल स्वान्त: सुखाय नहीं वरन बहुजन हिताय भी थी। रक्षा मंत्री के रूप में उनका सीमित कार्यकाल उनकी असीमित क्षमता का दस्तावेज़ बन गया है। उनके निधन पर श्रद्धांजलि देने वाले सभी नेताओं ने उनकी सादगी, सरलता और ईमानदारी का बखान तो किया किन्तु उनमें से किसी ने भी ये आश्वासन नहीं दिया कि वह दिवंगत नेता के पदचिन्हों पर चलते हुए सत्ता सुंदरी के आकर्षणों से दूर रहकर नि:स्वार्थ सेवा का उदाहरण पेश करेगा। भारतीय राजनीति में गांधी, लोहिया और दीनदयाल नामक तीन धाराएं मुख्य रूप से बह रही हैं। वहीं साम्यवाद बंगाल और त्रिपुरा से उखड़कर केवल केरल में सीमित है। पहली तीन विचारधाराओं से जुड़ी पार्टियों को सत्ता में आने के भरपूर अवसर जनता ने दिए किन्तु उनके अधिकतर या यूं कहें कि 99 प्रतिशत नेताओं ने उक्त महापुरुषों के आदर्शों और अपेक्षाओं के साथ सरे आम धोखाधड़ी की। लेकिन स्वर्गीय हो चुके मनोहर पर्रिकर ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से साबित कर दिखाया कि यदि आत्मबल हो तो सत्तारूपी कोई भी मेनका आपकी तपस्या और एकाग्रता को भंग नहीं कर सकती। काजल की कोठरी में रहकर भी बेदाग बने रहने का कारनामा उनकी स्मृति को चिर स्थायी बनाकर रखेगा। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद समाजसेवा और राजनीति में उतरने की इच्छुक नई पीढ़ी के लिए पर्रिकर जी एक अनुकरणीय मिसाल बने रहेंगे। कहते हैं सही अर्थों में बड़ा वही होता है जो सफलता के आसमान को छू लेने के बाद भी अपने पैर जमीन पर टिकाए रखे। ये कहना गलत नहीं होगा कि स्व.पर्रिकर ऐसे ही व्यक्ति थे। उनका न रहना केवल एक राज्य या राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि पूरे देश की बड़ी क्षति है।  कैंसर की अंतिम अवस्था में मृत्यु से उनका संघर्ष उनकी जिजीविषा का अनोखा उदाहरण था। तन समर्पित, मन समर्पित, आयु का क्षण-क्षण समर्पित, जैसी पंक्तियां उन जैसों के लिए ही रचित लगती हैं। ईश्वर उन्हें पुनर्जन्म देकर भारत माँ की सेवा में भेजे इसी प्रार्थना के साथ उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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