Friday 1 March 2019

इमरान की प्रशंसा करने वालों को क्या कहा जाए

अपने एक वीर सैनिक के दुश्मन के कब्जे में होने से चिंतित देश को उस समय हर्षमिश्रित राहत मिली जब पता चला पाकिस्तान ने उसे रिहा करने का फैसला कर लिया है। बुधवार की सुबह पाकिस्तान के हवाई हमले को विफल करने के लिए विंग कमांडर अभिनंदन ने अपने मिग 21 लडाकू विमान से दुश्मन के  स्न-16 विमान का पीछा किया। इसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ और अजेय लड़ाकू विमानों में माना जाता है। अभिनंदन ने उसे निशाने पर लेकर  ध्वस्त कर दिया। लेकिन इस दौरान वे पाक अधिकृत कश्मीर में प्रविष्ट हो गए जहां उनके विमान को दुश्मन की मिसाइल ने मार गिराया और वे पैराशूट से नीचे उतर आए। उसके बाद की कहानी सभी जानते हैं। उनके साथ स्थानीय लोगों द्वारा किये गए दुव्र्यवहार के जो चित्र प्रसारित हुए उनकी वजह से पूरा देश अपने जाबांज सैनिक की सुरक्षा के लिए चिंतित  हो उठा। कुछ देर के लिए लगा कि पाकिस्तान के पास हमारी नस दबाने का हथियार आ गया है। घरेलू मोर्चे पर एक बड़ा वर्ग युद्ध के नुकसान पर प्रवचन झाडऩे में जुट गया। मकसद ये था कि अभिनंदन के बहाने सरकार पर पाकिस्तान का वार्ता प्रस्ताव मंजूर करने का दबाव बना दिया जाए। उधर पाकिस्तान के विदेश मंत्री द्वारा बंधक पायलट की रिहाई के लिए भारत के सामने हालात सामान्य बनाने की शर्त रख दी। उसे लगा कि भारत अपने सैनिक की रिहाई के लिये झुकने को तैयार हो जायेगा लेकिन इसके उलट उसे कड़ी भाषा में समझा दिया गया कि अभिनंदन को युद्ध बंदी के रूप में जिनेवा संधि के तहत बिना शर्त छोड़ा जाए। उल्लेखनीय है पाकिस्तान के विदेश मंत्री कल सुबह तक कहते रहे कि भारतीय पायलट को युद्ध बंदी मानने संबंधी निर्णय उस वक्त तक नहीं लिया गया था। कुलभूषण जादव और सरबजीत जैसे उदाहरणों की वजह से भारत का चिंतित होना स्वाभाविक भी था। पाकिस्तान की  गिरफ्त में आए भारतीय नागरिकों के साथ किये जाने वाले अमानुषिक व्यवहार के किस्से दिल दहलाने वाले रहे हैं। ऐसे में इस बात का डर था कि अभिनंदन  को बजाय युद्ध बंदी के घुसपैठिया मानकर कुलभूषण जादव जैसा सलूक न किया जाए । लेकिन पिछली परिपाटियों से अलग हटते हुए भारत की सरकार और सेना दोनों ने कह दिया कि अभिनंदन के नाम पर किसी भी तरह की सौदेबाजी मंजूर नहीं होगी। उधर संरासंघ में अमेरिका और फ्रांस जैसे बड़े देशों ने मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित किये जाने का प्रस्ताव रखकर इमरान सरकार पर दबाव बना दिया। अंतत: पाकिस्तान की संसद में इमरान ने अभिनंदन को रिहा करने की घोषणा कर दी और उसे शांति की दिशा में एक कदम बताया। यही नहीं तो इमरान ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत करने का प्रयास किया लेकिन इस तरफ से उन्हें कोई जवाब नहीं मिल सका। इस तरह अभी तक भारत का पलड़ा युद्ध और कूटनीति दोनों मोर्चों पर भारी  साबित हुआ। लंबे समय बाद भारत की सामरिक और कूटनीतिक ताकत का डंका पूरे विश्व में बजा है। चीन को लेकर जो शंकाएं थीं वे भी निर्मूल साबित हुईं। हालांकि उसका पाकिस्तान प्रेम छिपा नहीं हैं लेकिन मौके की नजाकत और विश्व बिरादरी के रुख को देखते हुए वह अभी तक तो ठंडा पड़ा हुआ है। कुल मिलाकर पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करने और फिर अभिनंदन की रिहाई की खबर तक जो कुछ भी हुआ उससे हर देशवासी खुद को गौरवान्वित अनुभव कर रहा है लेकिन आज भी देश में एक लॉबी उन लोगों की है जिन्हें ये सब अच्छा नहीं लग रहा। ये वही लोग हैं जो श्री मोदी के छप्पन इंची सीने के दावे का मखौल उड़ाने में  आगे-आगे रहते थे। किसी भी बड़ी आतंकवादी वारदात के बाद ये तबका सरकार की नाकामी को मुद्दा बनाकर आसमान सिर पर उठाने में जुट जाता था। पुलवामा की घटना के  दो-चार दिन की ख़ामोशी के बाद जब भारतीय सेना ने दुश्मन के घर के भीतर घुसकर प्रहार किया तब उन सबकी बोलती बंद हो गई जो ऐसा करने के लिए सरकार को उकसाया करते थे। हद तो तब हो गई जब सर्जिकल स्ट्राइक और मारे गए आतंकवादियों की संख्या पर ही सवाल उठाए जाने लगे। जब इस सबका जनता पर असर नहीं हुआ तब इमरान खान की तारीफ में कसीदे पढऩे की प्रतिस्पर्धा शुरु हो गई। अपने देश की सेना और सरकार की बजाय शत्रु राष्ट्र के प्रधानमंत्री को शांति का मसीहा साबित करने वाले लोगों को किस श्रेणी में रखा जाए ये बहुत ही विचारणीय मुद्दा है। पूरे घटनाक्रम को चुनाव से जोडऩे की आपाधापी में ये लोग देश का मनोबल गिराने जैसा अपराध कर रहे हैं। यदि पुलवामा हमले का माकूल जवाब नहीं दिया गया होता तब शांति के हिमायती ये लोग केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री की फजीहत करने पर आमादा हो गए होते।  निश्चित रूप से ये राजनीति का नकारात्मक रूप है। जहाँ तक बात चुनाव में लाभ लेने की है तो क्या अतीत में ऐसा नहीं हुआ ? 1972 में विधानसभा चुनावों के पहले हुए बांग्ला देश युद्ध की विजय का श्रेय लेकर इंदिरा जी ने कांग्रेस के पक्ष में उसे जमकर भुनाया था ? यदि श्री मोदी ने आतंकवाद के विरुद्ध बड़ा और कड़ा कदम उठाते हुए देश की सुरक्षा और सम्मान की दिशा में शानदार कदम उठाये तो उसकी प्रशंसा करने का  बड़प्पन भले न दिखाया जाए लेकिन सेना के साहस और शौर्य पर सन्देह व्यक्त करने जैसा कुकृत्य भी नहीं होना चाहिए। लोकसभा  चुनाव में सत्तारूढ़ दल अपनी उपलब्धियाँ प्रचारित करेगा तब विपक्ष के पास भी कहने को बहुत कुछ होगा। जनता इतनी मूर्ख नहीं है कि वह प्रधानमंत्री अगर झूठ बोलेंगे तो उसे बिना सोच स्वीकार कर लेगी। सूचना क्रांति के इस दौर में कुछ भी दबा - छिपा नहीं रह पाता। इसलिए विपक्ष या मौजूदा सरकार को फूटी आंखों से भी नहीं देखने के इच्छुक महानुभाव निराश होकर इमरान की तारीफ के पुल बांधने की बजाय अपने देश की गौरवगाथा का गान करें। नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी यदि देश हित के विरुद्ध कुछ भी करती है तो दो महीने बाद राष्ट्र की जनता उनका हिसाब-किताब कर देगी । लेकिन इस समय जो भी सरकार और सेना के निर्णयों पर सवाल करेगा उसकी नीयत पर सन्देह होना सहज और स्वाभाविक ही है । अपने लड़ाकू विमान भेजकर भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश करने वाले इमरान खान का गुणगान करने वालों को लेकर जनमानस में जबर्दस्त गुस्सा है जो समय आने पर सामने आए बिना नहीं रहेगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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