Thursday 28 February 2019

सरकार और सेना को उसका काम करने दें

हम भारतीय बहुत भावुक होते हैं। परसों सुबह जब पता चला कि हमारे विमानों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादी अड्डों को तबाह कर दिया तब हर किसी की जुबान पर इस बार-आरपार की रट थी। टीवी चैनल सेना की शौर्य गाथा और भारत की सैन्य क्षमता का बखान करने में जुटे हुए थे। कल सुबह जब भारत में घुसे पाकिस्तानी एफ 16 को मार गिराने की खबर आई तब परसों वाली खुशी और उत्साह द्विगुणित हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ज्योंही पता लगा कि हमारा मिग लड़ाकू विमान भी मार गिराया गया और उसका पायलट लापता है त्योंही सीमा से दूर बैठे लोगों का मन भी दुखी हो गया। शुरू-शुरू में तो टीवी चैनलों ने पाकिस्तान द्वारा  पायलट के उसके कब्जे में होने के दावे की जमकर खिल्ली उड़ाई किन्तु जब उसके वीडियो फुटेज सामने आ गए तब युद्ध का उन्माद उस पायलट की सलामती की चिंताओं में बदल गया। दोपहर विदेश मंत्रालय ने भी पायलट के लापता होने की बात कहकर सन्देह की पुष्टि कर दी। पाकिस्तानी सेना की पकड़ में आने के पहले अभिनंदन नामक उस पायलट के साथ हुई मारपीट के दृश्य देखकर पूरा देश मानसिक रूप से विचलित हो उठा और उसकी सलामती के लिए दुआ करने लगा। अपनी सेना और सैनिकों के प्रति सम्मान और सम्वेदनशीलता भारतीय चरित्र में है। यही वजह है कि हमारी सेना भी देशवासियों की भावनाओं को सदैव महत्व देती हैं। लेकिन इस भावनात्मक रिश्ते से अलग हटकर सेना को अपने दायित्व के निर्वहन में अनगिनत कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ता है। सैनिक का प्रशिक्षण भी इस तरह का होता है जिससे वह विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत और हौसला नहीं छोड़ता। इसका ताजा प्रमाण विंग कमांडर अभिनंदन द्वारा शत्रु के कब्जे में आने के बाद भी भयमुक्त बने रहने से मिला। इसी सन्तुलित व्यवहार की अपेक्षा ऐसे अवसरों पर देश के प्रत्येक जिम्मेदार व्यक्ति और वर्ग से की जाती है। विशेष रूप से टीवी चैनलों और सोशल मीडिया से जुड़े लोगों से ये अपेक्षा सबसे ज्यादा है क्योंकि अति उत्साह और जल्दबाजी की धुन में बहुत सी ऐसी खबरें और जानकारियां प्रस्तुत कर दी जाती हैं जो अपरिपक्व और अनावश्यक होने के साथ ही नुकसानदेह भी होती हैं। कल भारतीय पायलट के साथ की गई मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित करने वालों ने ये नहीं सोचा कि उसके परिवार वालों पर उसे देखकर क्या बीती होगी? उनके साथ ही पूरा देश भाव विव्हल हो गया जिसका असर सरकार और सेना दोनों पर पड़ता है। इस संबंध में भारत के लोगों को इजरायल से सीखना चाहिये। सेना के एक सेवा निवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने टीवी चैनल पर चल रही बहस में इस बात को उछाला भी कि पुलवामा की घटना की बाद सेना और सरकार दोनों पर जो मानसिक दबाव बनाया गया उसकी वजह से शत्रु पक्ष काफी सतर्क हो गया वरना बालाकोट में मारे गए आतंकवादियों की संख्या कई गुनी ज्यादा होती। सैन्य सामग्री से लदी ट्रेनों की आवाजाही के चित्रों का प्रसारण करने के साथ ही सीमा पर हो रही सैनिक और नागरिक गतिविधियों की सविस्तार जानकारी भी सुरक्षा की दृष्टि से हानिकारक हो सकती है। टीवी चैनलों द्वारा ऐसे अवसरों पर सुबह से रात तक बिना रुके जो कुछ भी दिखाया और बताया जाता है उससे भी जनता और सरकार उत्तेजना के शिकार होते हैं। टीवी चैनलों पर युद्धोन्माद भड़काने का आरोप लगाने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। सैनिक क्षमता और लड़ाकू विमानों सहित अन्य युद्ध उपकरणों तथा तकनीक का विवरण सार्वजनिक करना भी एक तरह से गैर जरूरी लगता है। समाचार चैनलों पर बैठे नेता और अन्य विशेषज्ञ सरकार और सेना को जिस तरह से सुझाव देने लग जाते हैं वह भी  अनावश्यक और अतिशयोक्तिपूर्ण होता है। समाचार माध्यम चूंकि जनमत को भी प्रभावित करते हैं इसलिए उनका ये दायित्व हो जाता है कि वे उन्माद और उत्तेजना फैलाने से परहेज करें। कतिपय टीवी चैनलों द्वारा पाकिस्तान के सेवा निवृत्त फौजी जनरलों को बहस के पैनल में शामिल किया जाता है जो खुलकर भारत को गालियां देते हैं। पता नहीं इससे उन्हें क्या लाभ मिलता है लेकिन देशहित में उनका ऐसा करना हर किसी को नागवार गुजरता है। यही गलती सोशल मीडिया पर अति सक्रिय अनेक महानुभाव करते हैं। अधकचरी जानकारी और आपत्तिजनक टिप्पणियों से वे पूरे वातवारण को प्रदूषित करते हैं। दुख की बात है कि पूरा देश जहाँ सेना के पराक्रम और केंद्र सरकार की निर्णय क्षमता की प्रशंसा कर रहा है तथा पूरी दुनिया आतंकवाद के  विरुद्ध भारत की पहल का समर्थन कर रही है तब एक तबका सेना के हमले में मारे गए आतंकवादियों की संख्या को झूठा बताने में जुटा हुआ है। अति बुद्धिजीविता के शिकार कई लोगों ने पुलवामा के हमले को  प्रायोजित बताने की धृष्टता तक कर डाली। ये सब देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि युद्ध के बारे में नीति और निर्णय करने का अधिकार पूरी तरह से चुनी हुई सरकार और उसके निर्देश पर कार्य करने वाली सेना का ही होता है। सामान्य परिस्थिति में सरकार की आलोचना लोकतंत्र में स्वीकार्य है किंतु जब देश संकट में हो तब मतभेदों और आलोचना से परहेज करना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि समाचार के साथ ही अभिव्यक्ति के अन्य प्रचलित माध्यम पूरी तरह से दायित्वबोध और देशहित का ध्यान रखें। देश की सम्प्रभुता और सुरक्षा के लिए युध्द यदि अपरिहार्य है तो उससे परहेज नहीं करना चाहिए लेकिन युद्धोन्माद और अनावश्यक टीका-टिप्पणियां व्यर्थ का तनाव उत्पन्न करते हुए सेना और सरकार दोनों पर जो मनोवैज्ञानिक दबाव बनाती हैं वह नुकसानदेह होता है। युद्ध के समय सेना के शौर्य  और सरकार की दृढ़ता के साथ ही जनता के धैर्य और समझदारी का भी इम्तिहान होता है। हालांकि ऐसे अवसरों पर भावनाओं का अपना महत्व है किन्तु उनमें भी संयम और अनुशासन होना चाहिए। वर्तमान स्थिति में सेना और सरकार अपना काम बखूबी कर रही हैं। समाचार माध्यमों, राजनीतिक नेताओं, बुद्धिजीवियों, और सोशल मीडिया के महारथियों सहित जनता का भी ये फर्ज है कि अपनी-अपनी भूमिका का अपेक्षित सीमा में रहकर निर्वहन करें।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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