Monday 4 February 2019

बंगाल की खाड़ी से उठा सियासी चक्रवात

इसमें दो मत नहीं हैं कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी एक दबंग और जनाधार वाली नेत्री हैं। चार दशक तक वामपंथियों के अभेद्य दुर्ग के तौर पर स्थापित इस राज्य में सत्ता परिवर्तन का जो कारनामा इंदिरा जी, राजीव गांधी और अटल जी जैसे महारथी तक नहीं कर पाए वह ममता ने कर दिखाया। आगामी लोकसभा चुनाव में वामपंथी यदि एक सीट भी नहीं जीत सकें तो अचंभा नहीं होगा। ममता ने जब कांग्रेस को वामपंथियों की बी टीम कहकर तृणमूल कांग्रेस बनाई उसके बाद कांग्रेस भी घुटनों के बल आ गई। लेकिन बीते कुछ वर्षों में भाजपा ने बंगाल में अपना प्रभावक्षेत्र जिस तेजी से बढ़ाया उसने ममता की परेशानी बढ़ा दी है। असम, मणिपुर और त्रिपुरा में भाजपा की सरकार बनने के बाद सुश्री बैनर्जी की चिंताएं और बढ़ गईं। हॉलांकि वे वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री में रह चुकी थीं लेकिन बाद में उनका भाजपा से छत्तीस का आंकड़ा बन गया जो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के उभरने के बाद और भी तल्खी भरा होता गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बंगाल में अच्छे मत हासिल करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी। बाबुल सुप्रियो को केंद्र में मंत्री बनाकर भाजपा ने बंगाल में अपना फैलाव करने का जो प्रयास किया वह रंग लाने लगा और विधानसभा के बाद हुए निकाय चुनाव में भाजपा तृणमूल की निकटतम प्रतिद्वंदी बनकर सामने आ गई। अपने एकछत्र साम्राज्य को चुनौती मिलना ममता को भला कहां सहन होता और उस पर भी जब मोदी सरकार शारदा चिट फंड घोटाले सहित कुछ अन्य मामलों में उनकी सरकार के मंत्रियों और सांसदों पर शिकंजा कसने सक्रिय हो उठी हो। यही वजह है कि बीते कुछ समय से ममता केंद्र सरकार और भाजपा के प्रति बेहद असहिष्णु और आक्रामक हो उठी हैं। सीबीआई के दखल को रोकने के साथ ही उन्होंने राज्य सरकार का कोई भी डाटा केंद्र के साथ बाँटने पर पाबंदी लगा दी। अपनी पार्टी के कुछ बड़े चेहरों के भाजपा में चले जाने से भी उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा। दरअसल भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठियों सहित मुस्लिम तुष्टीकरण को लेकर जिस तरह से ममता को घेरा उससे वे बौखलाहट की स्थिति में पहुंच गई। कुछ समय पहले उन्होंने कोलकाता में सभी भाजपा विरोधी दलों की एक बड़ी रैली आयोजित कर मोदी सरकार के विरूद्ध  महौल बनाने का प्रयास किया। उस रैली के बाद भाजपा और सक्रिय हो गई। बीते सप्ताह ही प्रधानमंत्री ने बंगाल में जो रैली की उसमें इतनी भीड़ उमड़ पड़ी कि सभास्थल छोटा पड़ गया। काफी समय से बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं का वैसा ही दौर चल रहा है जैसा वामपंथी शासन में होता था। दरअसल साम्यवादी सत्ता का अंत होते ही वाममोर्चे के साथ जुड़े असामाजिक तत्व तृणमूल में घुस गए और वही सब करने लग गए जिसके खिलाफ  ममता ने बरसों लड़ाई लड़ी। भाजपा की रथ यात्रा को अनुमति नहीं देना, अमित शाह के हेलीकॉप्टर को उतरने से रोकना और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभा को रोकने जैसे कदम इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि ममता को भाजपा से खतरा महसूस होने लगा है। श्री मोदी और अमित शाह बंगाल में जब भी गए उन्होंने शारदा घोटाले का जिक्र प्रमुखता से किया। कुल मिलाकर सुश्री बैनर्जी के मन में केंद्र सरकार द्वारा की जा रही घेराबंदी का भय इस तरह बैठ चुका है कि वे कुछ भी करने पर आमादा हैं। दो-ढाई साल पहले उन्होंने सेना पर उनका तख्त पलट जैसा गम्भीर आरोप लगाकर सनसनी फैलाई थी। गत दिवस कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने पहुँची सीबीआई टीम के कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उल्लेखनीय है श्री कुमार शारदा घोटाले की जांच की लिए बने विशेष जांच दल के मुखिया रह चुके है और इस कारण एक गवाह भी हैं। सीबीआई का कहना है कि वे जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं तथा मांगे जाने पर भी जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं उपलब्ध करवा रहे। यही नहीं तो बकौल सीबीआई उन्होंने घोटाले से सम्बंधित कुछ प्रमाण नष्ट भी कर दिए। ये जांच सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर मोदी सरकार के पहले से चल रही है। गत शाम ज्योंही सीबीआई दल पूछताछ हेतु पहुँचा तो बजाय सहयोग करने के श्री कुमार ने उसके कुछ सदस्यों को गिरफ्तार करवा दिया। इसी बीच ममता उनके आवास पर आ गईं और केन्द्र सरकार पर संघीय ढांचे और संविधान के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाते हुए धरने पर बैठ गईं। घोटाले की जांच तो पीछे चली गई और राजनीतिक नाटक शुरू हो गया। देश भर से भाजपा विरोधी विपक्षी नेताओं ने सुश्री बैनर्जी को फोन करते हुए समर्थन दे दिया। इस अभूतपूर्व स्थिति के बाद सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय जाने का निर्णय लिया जो कल सुनवाई के उपरांत अपना अभिमत देगा जिसके बाद ही ये तय हो सकेगा कि सीबआई गलत थी या ममता? लेकिन इस सबसे हटकर एक सवाल ये उठ रहा है कि सीबीआई के नोटिस पर भी श्री कुमार ने पूछताछ में सहयोग क्यों नहीं किया और यदि उसकी टीम उनके घर पहुँच ही गई तब बजाय उसके सदस्यों को गिरफ्तार करने के वे मांगी गई जानकारी और दस्तावेज उपलब्ध करवा सकते थे। यदि जांच एजेंसी उन्हें गिरफ्तार करती तब तो ममता का बवाल मचाना वाजिब भी होता लेकिन महज सीबीआई के घर पर आ जाने से संघीय ढांचा और संविधान किस तरह खतरे में पड़ गया ये समझ से परे है। बहरहाल अब सभी को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों ही अपने को सही ठहराने में जुटे हुए हैं। ममता के आरोप सही हैं या गलत इस बहस में पड़े बिना ये तो पूछा ही जा सकता है कि एक अधिकारी के घर किसी जांच एजेंसी के जाने पर राज्य के मुख्यमंत्री का धरने पर बैठ जाना कहां तक संविधान सम्मत है? क्योंकि इससे एक नई परिपाटी जन्म ले सकती है। ममता को ये नहीं भूलना चाहिए कि श्री कुमार भले ही उनके राज्य में पदस्थ हों किन्तु वे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी होने  से केंद्र सरकार के अधीनस्थ ही होते हैं। यदि मोदी सरकार उन्हें कोलकाता से हटाकर दिल्ली बुलवा ले तब ममता क्या वहां जाकर भी धरने पर बैठेंगी? बंगाल की खाड़ी से उठा ये सियासी चक्रवात न तो संघीय ढांचा बचाने के लिए है और न ही संविधान की चिंता इसके पीछे है। केंद्र सरकार यदि राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से ममता सरकार को परेशान कर रही है तो वे भी कौन सी सौजन्यता दिख रही हैं? यदि राजीव कुमार पाक साफ हैं और शारदा घोटाले में ममता तथा उनके निकटस्थ निर्दोष हैं तो संबंधित कागजात एवं अन्य प्रमाण जांच एजेंन्सी को सौंपने में क्या आपत्ति थी? रही बात ममता के धरने की तो उनकी आदत और कार्यशैली से सभी परिचित हैं इसलिए उनके धरने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। लेकिन इस विवाद के बाद संघीय ढांचे और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को लेकर चलने वाली बहस नए मोड़ पर आ पहुंची है। कल को कोई राज्य सर्वोच्च न्यायालय को भी ठेंगा दिखाने लगे तब भी क्या संघीय ढांचे का रोना रोया जाएगा? राजीव कुमार जिस तरह से ममता के धरने में शिरकत कर रहे हैं उसकी वजह से वे सेवा शर्तों के उल्लंघन के आरोप में भी घिर गए हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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