Tuesday 19 February 2019

मंदसौर गोली कांड पर कांग्रेस की पलटी

हमारे देश में सत्ता भले बदलती रहती हो लेकिन व्यवस्था नहीं बदलती। गत दिवस मप्र विधानसभा में गृहमंत्री बाला बच्चन ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि जून 2017 में मंदसौर में किसानों पर हुए गोली कांड में प्रशासन पूरी तरह निर्दोष था। गोली चलाए जाने का कारण उन्होंने आत्मरक्षा और सरकारी  संपत्ति की सुरक्षा बताते हुए किसानों की भीड़ को हिंसक भी कह दिया। स्मरणीय है मंदसौर गोलीकांड पर कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए पूर्ववर्ती शिवराज सरकार पर जबरदस्त हमले किये थे। उसे किसानों की हत्यारी सरकार कहकर कठघरे में भी खड़ा किया जाता रहा। राहुल गांधी , हार्दिक पटैल, अरविंद केजरीवाल , शरद यादव सहित विपक्षी नेताओं ने मंदसौर पहुंचकर भाजपा को किसान विरोधी साबित करने  में जमीन - आसमान एक कर दिया था। चौतरफा हमले ने शिवराज सिंह चौहान को इस कदर अपराध बोध से ग्रसित कर दिया कि वे दौड़े-दौड़े गए और गोलीकांड में मारे गए किसानों के परिवारजनों को एक-एक करोड़ का मुआवजा देकर गुस्सा ठंडा करने का प्रयास किया। उस कांड की बरसी पर भी राहुल गांधी मंदसौर आए थे। यद्यपि विधानसभा चुनाव में मंदसौर में भाजपा को अच्छी खासी सफलता मिल गई लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि उस कांड ने किसानों के बीच श्री चौहान और भाजपा की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया। बहरहाल चुनाव बाद लोग सब भूल चुके थे लेकिन गत दिवस कांग्रेस की प्रदेश सरकार ने विधानसभा में जो जानकारी दी उसकी वजह से शिवराज सरकार मंदसौर गोली कांड के तमाम आरोपों से बरी हो गई। लेकिन इस स्पष्टीकरण के बाद कांग्रेस कठघरे में खड़ी हो गई। उस पर झूठ बोलने का आरोप लगना स्वाभाविक है। भाजपा ने इसकी शुरूवात भी कर दी है। इसी तरह सिंहस्थ मेले में भ्रष्टाचार के दर्जनों आरोप भी कांग्रेस ने उस दौरान शिवराज सरकार पर लगाते हुए जांच की बात कही थी किन्तु गत दिवस विभागीय मंत्री जयवर्धन सिंह ने उससे भी इंकार कर दिया। निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव में भाजपा और शिवराज सिंह इन मुद्दों पर क़मलनाथ सरकार को घेरने का पूरा प्रयास करेंगे। अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस का हृदय परिवर्तन हो गया या फिर उसके पुराने आरोप आधारहीन थे? इसका जवाब ये है कि सरकार कोई भी हो वह नौकरशाही को संरक्षण देने में पीछे नहीं रहती। मंदसौर गोलीकांड का राजनीतिक आरोप भले ही तत्कालीन राज्य सरकार पर लगा दिया गया लेकिन उसका वैधानिक दायित्व चूंकि पुलिस और प्रशासन पर ही होता है इसलिये यदि नई सरकार प्रशासन को दोषी करार देती तब उसका ठीकरा अंतत: वहां के तत्कालीन जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक सहित उन अधिकारियों पर ही फूटता जो गोली चलवाने के निर्णय में भागीदार थे। ऐसा ही सिंहस्थ की जांच से मनाही को लेकर कहा जा सकता है। कुल मिलाकर बात ये है कि विपक्ष में रहते हुए जो पार्टी सरकार पर नौकरशाही के हाथों में खेलने का आरोप लगाते नहीं थकती वही सत्ता मिलते ही उसी नौकरशाही को बचाने में लग जाती है। क़मलनाथ सरकार ने जिस बड़े पैमाने पर प्रशासन में उलटफेर किया उससे ये साफ हो गया कि वह भी अफसरशाही के भरोसे ही राज करेगी और दागी अफसरों को बचाने से भी उसे परहेज नहीं रहा। मुख्य सचिव पद पर नियुक्त अधिकारी पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप होने पर भी उसे महिमामंडित करने में कोई संकोच नहीं किया गया। विधानसभा में मंदसौर गोली कांड संबंधी यही जवाब यदि भाजपा सरकार की ओर से दिया गया होता तब कांग्रेस सदन में हंगामा करते हुए बहिर्गमन कर जाती। इसी तरह यदि वह वारदात कांग्रेस राज में हुई होती तब भाजपा भी विपक्ष में रहकर वही करती। कहने का आशय यही है कि सरकार चलाने के तौर-तरीकों को लेकर सभी पार्टियां तकरीबन एक जैसी हैं। चूंकि नौकरशाही की मदद से ही सत्ताधारी उल्टे-सीधे काम करवाते हैं इसलिए उसके हाथों उनकी नस दबी रहती है। ये चलन केवल मप्र का ही नहीं वरन पूरे देश में करीब-करीब एक जैसा ही है। इसीलिए जब भी किसी घपले-घोटाले की जांच होती है तो उसमें सत्ताधारी नेता और उनके बगलगीर नौकरशाह भी बराबरी से घेरे में आते हैं। नेता और नौकरशाहों का ये गठबंधन एक लाइलाज बीमारी बन गया है। सरकार का संचालन बिना आईएएस और आईपीएस के नहीं हो सकता, ये बात तो ध्रुव सत्य है। सरकारें आती-जाती रहती हैं किंतु प्रशासनिक ढांचा यथावत रहता है जिसकी निष्ठा नेताओं और राजनीति में न होकर नियम-कानून के दायरे में रहकर सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन के कर्तव्य के ईमानदारी से निर्वहन में रहनी चाहिए। लेकिन यह आदर्श स्थिति न जाने कबकी लुप्त होकर प्रतिबद्ध नौकरशाही की स्थितियां उत्पन्न हो गईं। यही वजह है कि जनता द्वारा चुने गए सत्ताधीश  बजाय जनता के अपने दरबारी नौकरशाहों के हितों को ज्यादा महत्व देते हैं। सता के साथ व्यवस्था नहीं बदलने जैसी जो विडंबना हमारे देश की पहिचान बन गई है उसी के कारण विश्वास का संकट सर्वत्र व्याप्त है। मंदसौर गोली कांड में प्रशासन को पूरी तरह बेकसूर और कर्तव्यनिष्ठ बताकऱ कांग्रेस सरकार ने विपक्ष में रहते हुए जो कुछ किया और कहा क्या उसे पूरी तरह राजनीतिक स्टंटबाजी और गैरजिम्मेदाराना नहीं कहा जाना चाहिए? ऐसे ही सवाल और भी उठ खड़े होंगे। बतौर निष्कर्ष ये मान लेने में कुछ भी गलत नहीं है कि सभी राजनीतिक दलों की नीति येन-केन-प्रकारेण सत्ता हथियाना मात्र है। एक बार गद्दी मिलते ही सभी की नीयत बदलते देर नहीं लगती। यदि सरकार में आने के बाद कांग्रेस को ये एहसास हुआ कि मंदसौर कांड में प्रशासन ने अपने कर्तव्य का पालन किया और आंदोलनकारी किसान हिंसक हो उठे थे तब उसे अपने पिछले क्रियाकलापों पर माफी मांगनी चाहिये। यही नहीं तो हिंसा फैलाने वालों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई भी होनी चाहिये। यदि कमलनाथ सरकार ऐसा नहीं करती तब उस पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगे बिना नहीं रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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