Thursday 7 February 2019

वीआईपी : सम्मान ज्यादा तो सजा भी ज्यादा हो

कानून के सामने सब समान हैं किंतु कानून के सामने आने तक की प्रक्रिया में समानता का नितांत अभाव है। भले ही स्वाधीनता के पश्चात राजा-महाराजाओं को भूतपूर्व बनाकर देश में गणतंत्र की स्थापना कर ली गई हो लेकिन अब भी सामंतवाद किसी न किसी रूप में मौजूद है। फर्क केवल इतना है कि अब वे वीआईपी कहलाने लगे हैं। इस वर्ग को हर तरह की सुविधाएं और सुरक्षा उपलब्ध है। कानून भी इनकी मर्जी से चलने मजबूर है। ये अपनी शान में किसी भी तरह की गुस्ताखी पसंद नहीं करते। गत दिवस कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष पूछताछ हेतु उपस्थिति हुए। उनके ऊपर विदेशों में संपत्ति खरीदने के आरोप हैं। देश के भीतर उन्हें कांग्रेस राज में नियम विरुद्ध आवंटित भूमि के प्रकरण अलग से चल रहे हैं। श्री वाड्रा इस पूछताछ को जितना टाल सके टाला। और जब कोई रास्ता नहीं बचा तब हाजिर हुए और वह भी इस तुर्रे के साथ कि उन्हें राजनीतिक कारणों से प्रताडि़त किया जा रहा है। उनकी पत्नी ने भी सांकेतिक भाषा में ऐसा ही कुछ कहा। ऊपर से आरोप ये है कि केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव के ऐन पहले गांधी परिवार की छवि धूमिल करने के लिए ये सब करवा रही है। इसी तरह का मामला शारदा चिट फंड का है जिसे लेकर बीते दिनों कोलकाता से लेकर दिल्ली तक घमासान मचता रहा। इस घोटाले में भी बड़े-बड़े लोगों के शरीक होने का शक है। जिसकी वजह से सर्वोच्च न्यायालय के सख्त निर्देशों के बाद भी जांच बरसों बाद तक प्रारम्भिक अवस्था से ऊपर नहीं आ सकी। पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति भी प्रवर्तन निदेशालय की जांच में हैं। और कोई होता तो कभी का जेल जा चुका होता लेकिन श्री चिदंबरम खुद चूंकि देश के बड़े वकीलों में से हैं इसलिए हर पेशी में उन्हें और बेटे को किसी न किसी तरह की मोहलत मिलती जाती है। उनकी गिरफ्तारी कब से और क्यों टल रही है ये भी जांच का विषय है। एक और प्रकरण है तीस्ता सीतलवाड़ नामक महिला का जिसे बीते पाँच साल में गिरफ्तारी से लगातार राहत मिलती जा रही है। केवल उपयुक्त लोग ही  नहीं बल्कि पूरे देश में इस तरह के दर्जनों वीआईपी हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गम्भीर आर्थिक अपराध में फंसे हैं। इस जमात में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा,  राजद, तेलुगु देशम, डीएमके, अन्ना द्रमुक, टीएमसी सहित अन्य छोटी-छोटी पार्टियों के तमाम नेता हैं। कुछ तो जेल भी जा चुके हैं। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा इसका उदाहरण हैं। विडंबना ये है कि  वीआईपी कहलाने वाले ऐसे नेताओं को कानून के सामने भी बजाय बराबरी के विशिष्ट दर्जा हासिल होता है। ऊंची पहुंच वाले इन नेताओं के पास अवैध कमाई का जो भण्डार होता है उससे वे बड़े-बड़े वकीलों को अदालत में खड़ा कर देते हैं जिनकी जिरह से मामला बीरबल की खिचड़ी की तरह पकता जाता है। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि जनता के मन में न्यायपालिका के प्रति भी एक तरह का अविश्वास जन्म ले चुका है। आज भी जेलों में हजारों ऐसे कैदी हैं जो अपने लिए वकील का इंतजाम नहीं कर पाने की वजह से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। समय आ गया है जब वीआईपी पर चल रहे आपराधिक प्रकरणों का निपटारा भी वीआईपी शैली में जल्दी से जल्दी हो। मोदी सरकार ने जनप्रतिनिधियों के मामले निश्चित समयावधि में निपटाने के लिए विशेष अदालतें बनाने की पहल की थी किन्तु वह भी हवा-हवाई होकर रह गई। देश के कई प्रख्यात वकील ऐसे हैं जो बिना राजनीतिक भेदभाव के भ्रष्टाचार में फंसे नेताओं के मुकदमे लड़ते हैं। बदले में उन्हें फीस के साथ राज्यसभा की सीट भी हासिल हो जाती है। दरअसल प्रकरण को टालते रहने की रणनीति के पीछे सत्ता परिवर्तन की प्रतीक्षा है। यदि भविष्य में मोदी सरकार की जगह कोई और सरकार आ गई  तो फिर कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के तमाम नेता भ्रष्टाचार के मामलों से बरी कर दिए जाएंगे या फिर जांच अधर में लटका दी जाएगी। ऐसे नेता तो रहे नहीं जो नैतिकता के नाम पर पद छोडऩे में एक क्षण भी नहीं लगाते थे। उल्टे हर आरोप को राजनीति प्रेरित बताकऱ सीनाजोरी की जाती है। रॉबर्ट वाड्रा या उनके समर्थन में उतरी कांग्रेस का ये कहना गलत नहीं है कि बीते पौने पांच साल तक केंद्र सरकार क्या करती रही लेकिन ये भी तो सच है कि चाहे श्री वाड्रा हों या अन्य विशिष्टजन, सभी जांच और सुनवाई को टलवाने के लिए धरती आसमान एक कर देते हैं। इसके पीछे उनकी सामंतवादी मानसिकता है जिसकी वजह से उन्हें ये नागवार गुजरता है कि कोई उनसे सवाल-जवाब करे या फिर वे अदालत के कठघरे में आम आदमी की तरह से खड़े हों। मप्र के चर्चित व्यापमं घोटाले में भी ऐसा ही हुआ और अंत में  शिवराज सिंह चौहान बेदाग होकर निकल गए। ये स्थिति बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि साधारण व्यक्ति के आरोपी होने से जहां समाज में उसकी प्रतिष्ठा घट जाती है लेकिन जब ऐसा किसी बड़े नेता या श्री वाड्रा जैसों के साथ होता है तो भी वह सिर ऊंचा करते हुए घूमता रहता है। न्याय की आसन्दी पर बैठने वाले पंच परमेश्वरों से ये आशा की जाती है कि वे वीआईपी समुदाय के प्रति सीमा से बाहर जाकर नरमी या रियायत दिखाना तो बन्द करें ही साथ ही साथ अपराध साबित होने पर उन्हें कुछ अतिरिक्त दंड भी दिया जाये जिससे लोगों को वाकई ये लगे कि कानून गरीब-अमीर और ओहदेदार में कोई भेद नहीं करता। किसी सामान्य व्यक्ति को घर से उठा लेने वाली पुलिस और अन्य जांच एजेन्सी वीआईपी की लंबे समय तक मनुहार करती रहती हैं तब जाकर वे हाजिर होने का उपकार करते हैं। लालू यादव कहने को सजा काट रहे हैं किंतु जेल की जगह अस्पताल में पड़े हुए राजनीतिक गठबन्धन बनाने हेतु विभिन्न नेताओं से वार्ता करते रहते हैं। अपराध करने के बाद भी छुट्टा घूमने वाले ये विशिष्ट जन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए नासूर बन चुके हैं। वामपंथी नेता आर्थिक घोटालों में तो नहीं लिप्त होते किन्तु देशविरोधी गतिविधियों को समर्थन और संरक्षण देने का आरोप उन पर भी लगता है। कोलकाता में सीबीआई की कार्रवाई के बाद ये सवाल भी उठा कि शारदा घोटाले के छींटे जिन बाबुल सुप्रियो और मुकुल रॉय पर भी हैं वे भाजपा की गोद में आकर बैठे हैं इसलिए उन्हें सीबीआई नहीं छू रही। यदि हालात ऐसे ही रहे तो फिर लोकतंत्र भले कायम रहे लेकिन उसके प्रति आस्था घटती जाएगी जो अच्छा नहीं होगा। बेहतर हो कानून के समक्ष समानता के सिद्धान्त का ईमानदारी से पालन किया जावे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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