Saturday 23 February 2019

आपसी कलह बढ़ा रही कमलनाथ का सिरदर्द

विधानसभा चुनाव के दौरान जिस एकता की वजह से कांग्रेस ने भाजपा के अभेद्य बन चुके किले में सेंध लगाई थी वह सत्ता मिलने के बाद इतनी जल्दी छिन्न-भिन्न होने लगेगी ये कोई नहीं सोचता था। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए चली खींचातानी तो सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका ने किसी तरह दूर करते हुए ज्योतिरादित्य सिन्धिया की तुलना में अनुभवी कमलनाथ को महत्व दे दिया। उसके बाद श्री सिंधिया को प्रदेश से हटाकर उप्र में लोकसभा चुनाव की व्यूहरचना में उलझा दिया गया।  लेकिन मप्र की सियासत के सबसे अनुभवी खिलाड़ी और दस वर्ष तक मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह की भूमिका स्पष्ट नहीं होने  के कारण सत्ता में आने के बाद भी कांग्रेस अपेक्षित प्रभाव नहीं छोड़ पा रही।  सही बात तो ये है कि ऊपर-ऊपर कहें कुछ भी लेकिन दिग्विजय सिंह की इच्छा एक बार फिर भोपाल की शामला हिल पर बने आलीशान मुख्यमंत्री निवास में रहने की थी।  2003 में सत्ता से हटने के बाद 10 वर्ष तक प्रदेश की राजनीति में नहीं लौटने की उनकी प्रतिज्ञा भी पूरी हो चुकी थी।  विधानसभा चुनाव के पूर्व उनकी पैदल नर्मदा परिक्रमा भले ही उनका निजी धार्मिक मसला था किंतु ये कहना भी गलत न  होगा कि राजनीति के चतुर खिलाड़ी के रूप में उन्होंने उस यात्रा के माध्यम से पूरे प्रदेश में अपनी प्रासंगिकता को पुनस्र्थापित करने के साथ ही अपनी छवि भी सुधार ली। यद्यपि मुख्यमंत्री की दौड़ से वे स्वयं को बाहर बताते रहे किन्तु पूरे चुनाव में जिस तरह सक्रिय रहे उससे वे कमलनाथ के बराबर की हैसियत बनाये रखने में कामयाब हो गए।  टिकिट वितरण में भी उन्होंने अपने समर्थकों को जमकर उपकृत किया। चुनाव बाद जब उन्हें लगा कि उनके पक्ष में हवा नहीं है तब बिना देर लगाए श्री सिंधिया को किनारे करते हुए कमलनाथ के पक्ष में माहौल बना दिया।  सरकार बनने के बाद मंत्रियों के चयन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उसके बाद जब प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले की बात आई तब भी वे समानांतर मुख्यमंत्री की भूमिका में नजर आए। यहां तक भी ठीक था लेकिन जब उन्होंने मंत्रियों को हांकने की कोशिश की तब बात बिगड़ गई। विधानसभा में पिछली सरकार के भ्रष्टाचार से जुड़े सवालों के जो उत्तर दिए गए वे शिवराज सरकार के लिए चरित्र प्रमाणपत्र जैसे साबित हुए। उसकी वजह से कांग्रेस की जमकर किरकिरी हुई।  मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तो उस पर नाराजगी नहीं दिखाई लेकिन दिग्विजय सिंह ने जबर्दस्त गुस्से का प्रदर्शन करते हुए मंत्रियों को जमकर लताड़ा। बाकी मंत्री तो उनकी नाराजगी पचा गए किन्तु उमंग सिंगार नामक मंत्री ने उन्हें पत्र लिखकर खुला विरोध व्यक्त कर दिया। और तो और उन्हें ये उलाहना भी दे डाला कि उनके पुत्र जयवर्धन सिंह भी उन मंत्रियों में शामिल थे जिनके जवाब से वे नाराज हो उठे। बाद में कमलनाथ ने मामले को ठंडा करने की कोशिश की किन्तु दूसरी तरफ  विधायकों की बड़ी संख्या मंत्रियों से नाराज होकर मुख्यमंत्री के पास शिकायत लेकर जाने लगी है।  प्रशासनिक ढांचे में पूरी तरह उथलपुथल हो जाने से नौकरशाही भी नई व्यवस्था से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रही है।  चुनाव के दौरान किये गए वायदे पूरे करने में धन की कमी आड़े आ रही है। किसानों के कर्जे माफ  करने के काम में देर होने से लोकसभा चुनाव में किसानों के बीच जाने में जो कठिनाई होगी वह भी चिंता का कारण बनती जा रही है। कमलनाथ के पास मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का दोहरा दायित्व होने से वे सत्ता और संगठन में समन्वय और सन्तुलन बनाये रखने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं लेकिन सत्ता के समानांतर उभर रहे शक्ति केंद्र उनकी मुसीबत बढ़ा रहे हैं। बहुमत जुटाने के लिए जिन बाहरी विधायकों का समर्थन लिया गया वे भी आए दिन आंखें तरेरते रहते हैं। इन सब बातों के कारण सरकार अपना असर नहीं दिखा पा रही।  जिन तीन नेताओं की एकता को प्रचारित करते हुए कांग्रेस ने जनता का समर्थन प्राप्त किया वे विपरीत धु्रवों में खड़े होते दिख रहे हैं।  उमंग सिंगार जैसे युवा मंत्री का दिग्विजय सिंह सदृश वरिष्ठ नेता को लिखा गया पत्र साधारण बात नहीं है।  अप्रत्यक्ष रूप से ये कमलनाथ को भी संकेत है कि उनके मंत्रीमंडल के सदस्य होने के बावजूद भी अनेक मंत्रियों की निष्ठा अपने उन आकाओं के प्रति है जिनकी कृपा से वे मंत्री पद प्राप्त कर सके। सरकार बनने के उपरांत शुरुवाती दौर में ऐसा होना स्वाभाविक माना जाता है लेकिन अब काफी समय बीत चुका है। चूंकि लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता कभी भी लग सकती है इसलिये कांग्रेस के लिए जरूरी हो चला है कि वह विधानसभा चुनाव के पहले वाली एकता का प्रदर्शन फिर करे।  विभिन्न पदों पर नियुक्तियों को लोकसभा चुनाव के बाद टालने के कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढऩे लगी है।  उन्हें ये डर सताने लगा है कि लोकसभा चुनाव के बाद बड़े नेताओं और मंत्रियों के खासमखास बने लोगों को उपकृत करते हुए उनकी उपेक्षा कर दी जाएगी।  कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि यही हालात रहे तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं रहेगी। ज्योतिरादित्य भले उप्र में व्यस्त हों लेकिन वे ग्वालियर, भिंड, मुरैना, गुना, उज्जैन, विदिशा, रतलाम के अलावा पन्ना, सागर आदि में अपने समर्थकों को टिकिट दिलवाने की भरपूर कोशिश करेंगे।  दिग्विजय सिंह भी ज्यादा से ज्यादा सीटें झटकने का प्रयास करेंगे। सत्ता संचालन में व्यस्तता के वजह से कमलनाथ संगठन के कार्यों के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं जिसके कारण पार्टी का प्रदेश कार्यालय भी व्यवस्थित नहीं हो पा रहा। इस सबसे हटकर देखें तो सरकार के अस्तित्व पर मंडराता खतरा भी कांग्रेस की चिंता का कारण है।  भाजपा के अनेक नेता कह चुके हैं कि उन्हें ऊपर से इशारा मिलते ही वे सत्ता पलट देंगे।  खुदा न खास्ता लोकसभा चुनाव के पहले ऐसा कुछ हुआ तब कांग्रेस के अच्छे दिन जिस तरह आए उसी तरह लौट भी सकते हैं। कमलनाथ के लिए परिस्थितियां दिन ब दिन चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं।  बाहरी लोगों से वे एक बार निबट भी लें किन्तु घर के भीतर की कलह उनका बड़ा सिरदर्द बनती जा रही है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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